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महाराष्ट्र में बढ़ रही है बीजेपी की मुश्किलें, पुराने साथी से तलाक की कगार पर रिश्ता!

कही एक-दूसरे के दोस्त रहे शिवसेना और बीजेपी की हालत इन दिनों जानी दुश्मन जैसी होती जा रही है. अविश्वास प्रस्ताव में सरकार का साथ न देने से जाहिर है की बीजेपी शिवसेना से खफा है. तभी तो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने महाराष्ट्र में पार्टी कार्यकर्ताओं से अकेले चुनाव लड़ने के लिए तैयार रहने को कह दिया है. साफ है कि बीजेपी को अब अपने पुराने सहयोगी शिवसेना पर भरोसा नहीं रहा गया. अविश्वास प्रस्ताव के साथ ही बीजेपी का शिवसेना पर अविश्वास बढ़ गया. उधर आज शिवसेना ने भी ऐलान कर दिया कि वो लोकसभा 2019 का चुनाव अकेले ही लड़ेगी.

 

अमित शाह जहां महाराष्ट्र में पार्टी कार्यर्ताओं से मिलकर उन्हें किसी भी तरह की स्थिति के लिए तैयार कर रहे हैं यानी की बिना गठबंधन के अकेले चुनाव लड़ने के लिए भी. उधर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के कड़वे बोल से भी यह साबित होता है कि शिवसेना और बीजेपी की दोस्ती तलाक की कगार पर पहुंच चुकी है. उद्धव ठाकरे ने कहा है कि उनकी पार्टी पीएम मोदी के सपनों के लिए नहीं लड़ रही है. उद्धव ने कहा, ‘मैं आम लोगों के सपनों के लिए लड़ रहा हूं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपनों के लिए नहीं. इतना ही नहीं उन्होंने ये भी कहा कि हमारे पास केवल एक ही दोस्त नहीं है, हम जनता के दोस्त हैं. मैं शिकार करूंगा लेकिन किसी और के कंधे से शूट करने की आवश्यकता नहीं है. न ही मुझे शिकार के लिए बंदूक की आवश्यकता होगी. साथ ही उन्होंने ये भी ऐलान कर दिया कि आगामी लोकसभा चुनाव शिवसेना अकेले ही लड़ेगी. उद्धव की बातों से तो यही लगता है कि बीजेपी के साथ उनके रिश्तों की तल्खी और बढ़ चुकी है और अगले चुनाव में शायद ही वो अपने पुराने साथी से गठजोड़ करें.

शिवसेना और बीजेपी के रिश्तों में दरार तो 2014 के लोकसभा चुनाव के समय ही आ गई थी, उस समय बीजेपी ने महाराष्ट्र में 23 और शिवसेना ने 18 लोकसभा सीटे जीती थी. विधानसभा चुनाव आते-आते बीजेपी ने मोदी लहर के दम पर सालों पुराने गठबंधन में ज़्यादा सीटो की मांग की और दोनों पार्टी 25 साल बाद अलग-अलग चुनाव लड़ी. जिसमें बीजेपी को 122 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल हुई और शिवसेना को 63 सीटों पर जीत हासिल हुई. इसके बाद सरकार बनाने के लिए शिवसेना ने बीजेपी को समर्थन तो दिया, मगर उनके रिश्ते में तल्खी बनी रही.

अब जिस तरह से अमित शाह पार्टी कार्यकर्ताओं को अकेले चुनाव के लिए तैयार कर रहे हैं और उद्धव बीजेपी पर तीखा हमला कर रहे हैं, इससे तो इन दोनों के साथ आने के आसार कम ही लग रहे हैं, लेकिन राजनीति में कुछ कहा नहीं जा सकता. यहां दोस्त को दुश्मन और दुश्मन को दोस्त बनते देर नहीं लगती.