रिचर्ड थालेर एक अर्थशास्त्री हैं जो अपनी बड़ी-बड़ी थ्योरीज़ को डरावने शब्दों में ढालने की बजाय उन्हें मनोविज्ञान से जोड़कर प्रस्तुत करते हैं। थालेर का भारत से गहरा नाता रहा है।
जब 8 नवंबर, 2016 को मोदी जी ने 500 और 1000 के नोट बंद किए थे तब रिचर्ड थालेर ने उनका समर्थन किया था और कहा था कि मैंने इस पॉलिसी का लंबे समय से समर्थन किया है और ये कैशलेस की तरफ पहला कदम है और इससे भ्रष्टाचार भी कम होगा।
लेकिन जब 2000 के नोट जारी किए गए है और इस बारे में थालेर से पूछा गया कि दो हज़ार रुपए का नोट जारी कर देने से मोदी जी का मकसद पूरा हो जाएगा, तो उनका जवाब था – सच में, ओह नो…
इस बात से पता चलता है कि रिचर्ड थालेर नहीं चाहते थे कि भारत आगे बढ़े।
रिचर्ड थालेर की थ्योरीज़ से भी इस बात का पता चलता है कि वो चाहते हैं भारत आगे ना बढ़ सके और वो अपने विकास के लिए बस ऐसे ही हाथ-पैर मारता रहे लेकिन उसे कभी सफलता ना मिल पाए।
इसके अलावा रिचर्ड थालेर का भारत से एक और रिश्ता है और वो रघु राम राजन की वजह से है। पिछले दिनों सोशल मीडिया पर ये चर्चा थी कि रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को अर्थशास्त्र के नोबल के लिए नॉमिनेट किया गया है।
आपको बता दें कि ये अवॉर्ड स्वीडन के आविष्कारण अल्फ्रेड नोबेल के नाम पर स्वीडन की रॉयल एकेडमी ऑफ साइंसेज़ द्वारा दिया जाता है। राजन के नॉमिनेशन वाली बात सच भी हो सकती थी और मात्र अफवाह भी क्योंकि 50 साल से इस अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट किए गए नामों की घोषणा नहीं की गई है। हालांकि, राजन को अवॉर्ड देने वाली बात तब झूठ साबित हो गई जब इस अवॉर्ड से शिकागो यूनिवर्सिटी के बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस के अर्थशास्त्री रिचर्ड थालेर को नवाज़ा गया।
इन दो वाक्यों के लिए रिचर्ड थालेर को भारत में जाना गया। वैसे तो ऐसी कई विदेशी हस्तियां होंगीं जो भारत को आगे बढ़ते हुए नहीं देखना चाहती हैं लेकिन थालेर ने कम शब्दों में इस बात को साफ कह दिया।