एकादशी पर चावल – हमारे प्राचीन शास्त्रों में कई रीति-रिवाज, व्रत-वर्प और अनुष्ठान बताये गए है.
इन ख़ास रिवाजों का धार्मिक महत्त्व तो होता ही है लेकिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी ये बहुत उपयोगी साबित हुए है. आज हम आपको ऐसी एक व्रत और उसके बारे में बताने जा रहे है.
जी हाँ कई लोग एकादशी का व्रत रखते है और इस दिन लगभग सभी घरों में चावल नहीं बनता है क्योंकि एकादशी के दिन चावल ना खाए जाने का रिवाज़ है.
पूरे वर्ष में एकादशी 24 होती है, शास्त्रों में कहा गया है कि एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों और स्वरूपों का ध्यान करते हुए इनकी पूजा करनी चाहिए. ऐसा कहा जाता है कि एकादशी का व्रत विष्णु भगवान को अतिप्रिय है.
एकादशी व्रत का महत्त्व-
शास्त्रों के अनुसार शरीर रथ है और बुद्धि उस रथ की सारथी है. इंसानी शरीर में कुल 11 इन्द्रियां है और मन एकादश यानी ग्यारहवीं इंद्री है. एकादशी के दिन चंद्रमा आकाश में 11 वें अक्ष पर होता है और इस समय मन की दशा बहुत चंचल होती है. इसलिए एकादशी का व्रत करके मन को वश में किया जाता है. चंचल मन को एकाग्र करने के लिए एकादशी व्रत बहुत उपयोगी होता है. अगर आपका मन बहुत अशांत है तो एकादशी का व्रत रखने से आपका मन बिलकुल शांत हो जाएगा. शांत मन से आप जो भी काम करेंगे उसमे सफलता निश्चित ही मिलती है.
एकादशी पर चावल नहीं खाने का धार्मिक महत्व–
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वर्ष की चौबीसों एकादशियों पर चावल नहीं खाने की सलाह दी जाती है. कहा जाता है कि इस दिन चावल खाने से उस व्यक्ति का जन्म रेंगने वाले जीव की योनि में होता है, लेकिन द्वादशी के दिन चावल खाने से इस योनि से मुक्ति भी मिल जाती है. जिस तरह चावल और जौ को उत्पन्न करने के लिए मिट्टी की भी जरूरत नहीं होती है उसी तरह जीव के उत्पन्न होने के लिए भी मिट्टी की जरुरत नहीं होती है. चावल और जौ जल में ही उत्पन्न होते है इसलिए इनको जीव के समान माना गया है. इसलिए एकादशी पर चावल ना खाने की सलाह दी गई है.
एकादशी पर चावल नहीं खाने का वैज्ञानिक महत्व-
जिस तरह चंद्रमा का संबंध मन से है उसी तरह जल उसका प्रधान देवता माना गया है. वहीं चावल की खेती में सबसे ज्यादा जल की आवश्यकता होती है यानि चावल भी जल प्रधान ही हुआ. एकादशी पर चावल का सेवन करने से चंद्रमा की किरणें शरीर के जल तत्व में हलचल मचाएगी जिस वजह से मन अशांत हो जाएगा. इसलिए एकादशी पर चावल न खाने से और मंत्र जाप करने से अगले 15 दिनों के लिए शरीर में असीमित उर्जा एकत्र हो जाती है. वहीं एकादशी के व्रत से पेट में जमा दूषित पदार्थ बाहर आ जाते है और शरीर को नई कांति और उर्जा मिलती है.
हमारे धार्मिक शास्त्रों में एकादशी का बहुत महत्त्व बताया गया है. यहाँ पर हमने एकादशी पर चावल नहीं खाने का धार्मिक महत्त्व के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्त्व भी बताया है.