परायी स्त्री पर बुरी नजर डालने से धर्म का नाश होता है।
परदारावरोधस्य प्रसुप्तस्य निरीक्षणम्।
इदं खलु ममात्यर्थं धर्मलोपं करिष्यति।।
हनुमानजी जब सीताजी को खोजते हुए रावण के महल में पहुंचे तब उन्होनें ने कई स्त्रीयों को रावण के महल में मदीरापान किए हुए सोते हुए देखा.
उन्होनें सीताजी को कभी देखा नही था, इसलिए वह एक-एक रावण की पत्नी को ध्यान से देखते हुए जा रहे थे, जो बेसुध अवस्था में रावण के महल में सोयी हुयी थी।
तभी हनुमानजी के मन में यह विचार आया कि इस तरह गाढ़ निद्रा में सोयी हुयी परायी स्त्रीयों को देखना अच्छा नही। इससे तो मेरे धर्म का नाश हो जाएगा। मेरी दृष्टि अब तक परायी स्त्री पर पड़ी नही यहां आकर मुझे परायी स्त्री का हरण करने वाले रावण को भी देखना पड़ा. इससे से भी मेरे धर्म को हानि होगी, क्योंकि बुरे कर्म को करने वालें को देखना भी पाप को बढ़ाने वाला होता है।
हनुमानजी के मन में यह विचार आया कि मैनें इन स्त्रीयों को सुप्त अवस्था मेें अच्छी तरह से देखा अवश्य, परंतु इनको देखने पर मेंरें मन में कोई विकार नही आया तथा मै अपने लक्ष्य की तरफ से विचलित नही हुआ। समस्त इंद्रियों को अच्छी और बुरी अवस्थाओं में लगाने का कारण मन ही होता है, किंतु मेरा मन स्थिर है, इसमें कोई राग द्वेष नही है, अत: मेरा यह परस्त्री दर्शन मेरे धर्म का लोप नही करेगा।
हनुमानजी उस समय अकेले थे तथा शत्रु के स्थान में उपस्थित थे फिर भी वह परस्त्री दर्शन को वहां पाप समझते थे।
परस्त्री मे सदैव माता लक्ष्मी का दर्शन करना चाहिए और लक्ष्मी का सम्मान किया जाता है।
उनको भोगने की कामना कोई नही करता। परायी स्त्री मे कामना रखना या उसको पाने की इच्छा रखने वाला अपनी तीन पीढियों को नष्ट कर लेता है तथा उसको ना तो इस लोक में और ना परलोक में सुख प्राप्त होता है।