समाज में तवायफों को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता है लेकिन एक ऐसा भी समय था जब तवायफो पर सारे अधिकार हुआ करते थे। वह चाहती तो शादी कर के अपना घर भी बसा सकती थी।
आज हम आपको पुराने ज़माने की ऐसी कुछ तवायफों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन तवायफों को सम्मान था और जो गरिमा और संगीत को एक समृद्ध विरासत सौंप गईं।
तवायफों को सम्मान –
1. गौहर जान
2 नवम्बर 1902 को भारत का पहला संगीत रिकार्ड हुआ था। तभी से भारतीय संगीत हर घर तक पहुंच पाया था। संगीत का नाम था “खयाल” और गायका थी बनारस व कलकत्ते की मशहूर तवायफ गौहर जान। इस एक घटना ने उन्हें इतिहास में अमर कर दिया। गौहर जान की आवाज़ उस दौर में रिकॉर्डिंग के ज़रिए घर-घर में सुनी जाने लगी थी।
2. बेग़म हज़रत महल
अवध के नवाब से शादी करने के बाद इन्हें‘अवध की बेगम’के नाम से भी जाना जाने लगा। 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ चलने वाली क्रांति में बेगम हजरत महल ने उनके नाक में दम कर रखा था। यहां तक कि वह अंग्रेजोंकी प्रमुख दुशमन तक बन चुकी थी।
3. जद्दनबाई
जद्द्नबाई फिल्म एक्ट्रेस नर्गिस की मां और संजय दत्त की नानी थी।उन्नीसवीं सदी में जद्दनबाई का नाम हर संगीत का दीवाना बडे ही अदब से लेता था। यह वो दौर था जब जद्द्नबाई का नाम हिंदुस्तान के हर व्यक्ति के मुंह पर था। वो भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की पहली महिला संगीत निर्देशक थी।
4. ज़ोहरा बाई
जोहरा बाई को भारतीय शास्त्रीय संगीत के पिलर्स में से एक माना जाता है। उनके संगीत का प्रभाव उनके बाद के फनकारों पर साफ देखा जा सकता है। गोहर जान की ही तरह जोहरा बाई का नाम भी भारत के इतिहास में बड़ेहीआदर और सम्मान से लिया जाता है।
5. रसूलन बाई
बंटवारे के बाद रसूलन बाई के शौहर सुलेमान पाकिस्तान चले गये, मगर रसूलन को ये गंवारा ना हुआ और वह भारत में ही रहीं। आपने उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का नाम तो सुना ही होगा, तो आपको यह भी बता दें की खान साहब रसूलन बाई का बेहद आदर करते थे और उन्हें ईशवरीय आवाज़ कहा करते थे।
इस तरह से तवायफों को सम्मान किया जाता था – यह थी वह 5 तवायफें जिनका नाम आज भी भारतीय इतिहास में बडे ही आदर से लिया जाता है।