भारत

आरक्षण : जातियों का खेल !

आज आरक्षण एक लम्बे समय तक जाति आधारित भेदभाव के चलते समाज में पिछड़ों के सशक्तिकरण का एक संवैधानिक हथियार बन चुका हैI

एक निश्चित समयावधि के लिए शुरू की गई इस व्यवस्था को राजनीतिक एवं सामाजिक कारणों से बारंबार बढ़ाया और विस्तार देते हुए चलाया गया हैI वैसे सरकार की तरफ से तो अबतक गरीबी मिटाने के लिए इतनी योजनाएं बनाई गईं हैं जिनके अगर नाम गिनाएं जाएं तो एक लम्बी सूचि बन सकती हैI फिर आखिर क्या कारण हैं कि आरक्षण के बाद भी ज़रुरतमंदों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा हैI इसी के साथ आज जाति आधारित आरक्षण की जगह आर्थिक आधार पर आरक्षण दिए जाने की बहस भी हो रही हैI

गौरतलब है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण देने पर न तो जातीय और न ही क्षेत्रीय भेदभाव हो सकता हैI इसका सीधा संबंध तो भारत के नागरिकों से हैI बेशक ही आर्थिक न्याय सामाजिक न्याय का विकल्प नहीं हो सकता पर सामाजिक न्याय के साथ आर्थिक न्याय के संवैधानिक संकल्प को पूरा करना भी राज्य का ही कर्तव्य हैI बहरहाल, आरक्षण दिए जाने के तरीके एवं प्रावधानों की जांच करना आज हम सबके लिए ज़रूरी हो गया हैI

भारत के अंग्रेज़ी दौर में सरकारी प्रतिष्ठानों में कामकाज हेतु अंग्रेजों ने जाति के रूप को संस्थागत कियाI जिससे सबसे अधिक लाभ उच्च जातियों को प्राप्त हुआI वहीं, सत्ता तक पहुंचने में जाति व्यवस्था के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकताI जातियों की इस वर्गीकरण के कारण ही विभिन्न जातियों को अलग-अलग आर्थिक ताकतें मिलींI इस आर्थिक ताकत से ही राजनीतिक ताकत को भी ताप मिलती रहीI

उत्तर भारत के गावों में हमेशा ही इसीलिए भू-स्वामित्व पर दखल उच्च एवं मंझले दर्जे की जातियों का रहा हैI वे अपनी ताकत का इस्तेमाल पंचायतों के निर्णयों में किया करते आ रहे हैंI राजनीतिक रेखा भी आज जाति समीकरण के साथ ही आगे बढ़ती हुई दिख रही हैI ज्ञात हो, वोट बैंक की राजनीति कांग्रेस पार्टी के साथ शुरू हो गई थीI बाद में विरोधी दलों ने भी अपने वोट बैंक को बनाने व बढ़ाने के लिए जातियों का बेजा इस्तेमाल कियाI इसी फ़लस्वरूप पिछली सदी के अंतिम दशकों तक आते-आते जाति आधारित राजनीति ने अपनी पैठ बना लीI आज की तारीख में पार्टियों ने निम्न जातियों के सशक्तिकरण के नाम पर राजनीति करके इसे ही उन्होंने अपना केन्द्रीय मुद्दा बना लिया हैI ऐसी पार्टियां राष्ट्रिय स्तर पर तो नहीं पर क्षेत्रीय स्तर पर प्रभावी होकर मुख्यता उत्तर भारत में देखने को मिलींI इसी के साथ ही राजनीतिक हलकों में ऊंची जातियों का प्रभाव कम हो गयाI लेकिन आज भी राजनीतिक पार्टियां अपने वोट बैंक के लिए जाति का गलत इस्तेमाल बदस्तूर करती आ रहीं हैंI

राजनीतिक पार्टियां को देश के नागरिकों को वोट बैंक के ज़रिए बांटने के बारे में नहीं बल्कि उनकी जिंदगियों को खुशहाल करने के बारे में सोचना चाहिएI हमारे संविधान निर्माता सजग थेI उन्होंने अनुच्छेद 338 में ‘अनुसूचित जातियों, जनजातियों व अन्य पिछड़े वर्गों’ को मिलीं सुविधाओं आदि की सतत जांच के लिए एक विशेष अधिकारी की भी व्यवस्था करने को कहा थाI फिर बाद में इसे अनुसूचित जाति राष्ट्रिय आयोग कहा गयाI लेकिन आजतक आयोग ने ये नहीं बताया कि आरक्षण का लाभ लेकर कितने लोग शेष समाज के बराबर आ चुके हैंI

आरक्षण ऐसा नहीं होना चाहिए कि संपन्न व्यक्ति या समाज और संपन्न होता जाए वहीं आर्थिक रूप से कमज़ोर व्यक्ति या समाज पिछड़ता जाएI ऐसा भी ज़रूरी नहीं कि समाज की जो वर्तमान स्थिति है वैसी ही स्थिति आने वाले सालों तक रहेI इसीलिए आज ये ज़रूरी हो गया है कि आरक्षण की नीतियों को लेकर सरकार इसकी समय-समय पर समीक्षा करे ताकि हमारे समाज में व्याप्त असमानता को ख़त्म किया जा सकेI

Devansh Tripathi

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