“धर्म आम आदमी की अफ़ीम है”
दशकों पहले मशहूर जर्मन क्रन्तिकारी और बुद्धिजीवी कार्ल मार्क्स की कही यह बात आज भी कितनी सच है, इसका अंदाज़ा आप लगा सकते हैं!
सरहद पर लड़ाई हो ना हो, आज के दौर में सोशल मीडिया पर दिन-रात हिन्दुस्तानियों और पाकिस्तानियों के बीच तू तू-मैं मैं चलती रहती है, एक दुसरे को नीचा दिखाने की हर संभव कोशिश की जाती है लेकिन कभी ये भी तो सोचिये कि आखिर इसकी मूल वजह क्या है? बंटवारे से पहले हम सब एक साथ ही तो थे, एक ही देश था, एक ही रेहन-सेहन का तरीका और भी जाने कितनी समानताएँ| आज भी इंसानी रूप में तो कुछ नहीं बदला, बस कुछ अलग है तो धर्म के नाम पर एक राष्ट्र का निर्माण हो गया|
ये धर्म आखिर चीज़ क्या है?
मरहूम अमरीकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के शब्दों में, ‘जब मैं अच्छा करता हूँ, मुझे अच्छा लगता है जब मैं बुरा करता हूँ, मुझे बुरा लगता है, यही मेरा धर्म है!’
कितना सच है, है ना?
असल में हिन्दू-मुसलमान और कुछ नहीं बस इंसान पर राज करने के लिए बनाये गए कुछ नियम हैं जिनकी मदद से कुछ स्वार्थी लोग आम आदमी को अपने काबू में रखते हैं| इसका यह मतलब नहीं कि भगवन नहीं है या हमसे बड़ी एक अपार शक्ति नहीं है जो इस सारे ब्रह्माण्ड को चला रही है| लेकिन वो शक्ति ऐसी नहीं है जो आपसे कहे कि एक दुसरे को काट डालो, मार डालो| उस शक्ति के हमने अपनी सहूलियत और विश्वास के बल पर अलग-अलग नाम दे दिए हैं और चाहते हैं कि हमारा दिया हुआ नाम सबसे ऊपर हो! कितनी मूर्खता से भरी सोच है यह!
इस बारे में महात्मा गांधी ने बहुत अच्छी बात कही है| कहते हैं, ‘भगवन का कोई धर्म नहीं होता और विश्व के सभी धर्म भले ही और चीज़ों में अंतर रखते हों, लेकिन सभी इस बात पर एकमत हैं कि दुनिया में कुछ नहीं, बस सत्य रहता है!’
सत्य यही है कि हम सब इंसान पैदा हुए हैं, अलग-अलग रंगों के लेकिन अंदर से सब एक सामान हैं| तो फिर मेरा धर्म तुम्हारे धर्म से अच्छा या बुरा कैसे? वैसे भी हमारे पूर्व राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम के शब्दों में, ‘किसी भी धर्म ने अपनी प्रगति के लिए जीव-हत्या को अनिवार्य नहीं बताया|’ तो फिर क्यों हम आज तक एक दूसरे के ख़ून के प्यासे हैं? और यह बात सिर्फ हिंदुस्तान-पाकिस्तान पर नहीं बल्कि सारी दुनिया पर लागू होती है! हर तरफ धर्म के नाम पर मार-काट क्यों?
आखिर इंसान को चाहिए क्या होता है? शान्ति जो उसे अच्छे कर्म कर के मिलती है| एक खुश और शांत मन ही उसे उसके भगवन, अल्लाह, गॉड से मिलाने में सहायक होता है| तो फिर स्वामी विवेकानंद की बात क्यों ना मान ली जाए? बड़े ही सरल शब्दों में उन्होंने समझाया है कि, ‘कोई भी धर्म जो तुम्हे ईश्वर प्राप्ति में सहायता देता है, अच्छा है!’
अगर हम धर्म को लेकर इतने संवेदनशील और अति महत्वाकांक्षी ना होते तो शायद देश का बंटवारा ना हुआ होता|
पाकिस्तान एक अलग मुल्क ना हो भारत का हिस्सा होता|
हज़ारों किस्म की हिंसक घटनाओं के हम और वो शिकार ना होते!
आज यह धर्म की आग सारे विश्व को जला के भस्म करने पर उतारू है|
पेट में रोटी नहीं लेकिन ज़बान पर सिर्फ धर्म की रक्षा का सवाल है| क्यों नहीं हम भूखे को खाना, बेघर के सर पर छत और गरीब की ज़िन्दगी में ख़ुशी के पल लाने के लिए कुछ कदम उठाएँ बजाये धर्म के नाम पर एक दूसरे को चोट पहुँचाने के?
सोच के देखिएगा, इंसान को इंसान की ज़रुरत है, भाईचारे की जरूररत है, शान्ति की ज़रुरत है|
धर्म के नाम पर रक्त-पात की नहीं!
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