आपने समाचार चैनल और अखबारों में पढ़ा ही होगा कि ज़ीशान अली खान नामक, MBA कर चुके एक युवा को एक कंपनी ने उसके मुस्लिम होने के कारण नौकरी नहीं दी. अब एक और ऐसी खबर सुनने में आई है. लेकिन इस बार यह घटना हिन्दुस्तान में नहीं बल्कि पकिस्तान में हुई है.
पाकिस्तान के पेशावर शहर में संध्या दास नामक एक युवती को नौकरी नहीं मिली क्योंकि वह हिंदू धर्म से ताल्लुख रखती है.
अब आप ही कहिए कि कोई भला धर्म की वजह से भूखा क्यों मरे?
वैसे पकिस्तान, हमारी नक़ल तो खूब करता है लेकिन इस घटना की बात करें तो ऐसा लगता है कि भई अब तो हद हो गई!
ज़ीशान अली खान और संध्या दास की हम दाद देतें हैं कि वे इस मामले को लेकर सबके सामने आए, लेकिन क्या सरकार इनकी सुनेगी?
क्या नरेंद्र मोदी, और नवाज़ शरीफ की सरकारें इस मामले में दखल देंगी?
शायद दे भी दें, क्योंकि अगले इलेक्शन में वोट जो कमाने हैं!
देखिये, इन सब मामलों में फंडा बहुत ही सरल होना चाहिए!
किसी भी कंपनी को यह सोचना चाहिए कि एक एम्प्लोयी उसे कितना फायदा दिलाएगा, यह नहीं कि वह किस धर्म का है?
है न?
कितनी विडंबना की बात है कि जिस देश का राष्ट्रपति मुसलमान रह चुका है, उस देश के एक युवा को नौकरी नहीं मिलती क्योंकि वह एक मुसलमान है! अब आप ही कहिए, ये कहाँ का इंसाफ है? लेकिन ज़ीशान अली खान के केस में ऐसा सुनने में आया है कि ह्यूमन राइट्स डिपार्टमेंट इस केस की छान-बीन में लगा हुआ है!
सिर्फ हिन्दुस्तान और पकिस्तान में नहीं बल्कि दुनिया के अन्य देशों में भी धर्म के नाम पर नौकरी ना देने का चलन काफी समय से चला आ रहा है! आप सुनकर हैरान हो जाएंगे कि इंग्लैंड जैसे विकसित देश में यह चलन सन 2005 से चला आ रहा है! मुसलामानों को इस देश में नौकरी ना मिलना एक आम सी बात बन चुकी है!
जब इस देश के युवा ऐसे धार्मिल भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाएंगे, तभी ही कुछ सुधार होने की संभावना रहेगी वरना मुझे नहीं लगता इस तरह का भेदभाव रुकनेवाला है!
नीचे कमेंट करके अपनी राय हमें दें और अगर आपके साथ भी ऐसा ही कोई धार्मिक भेदभाव हुआ है तो कृपया हामारे साथ अपना अनुभव शेयर करें.