राम मंदिर पर सुनवाई में अदालत ने पूरी विवादित जमीन और सरकार द्वारा अधिग्रहित 70 एकड़ जमीन को तीन हिस्सों में विभाजित करने का आदेश दिया है.
कोर्ट के आदेश के अनुसार जमीन को तीन हिस्सों में सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला पक्ष को बराबर बांट के उसका हक़ दिया जाना था. लेकिन हाईकोर्ट के इस फैसले पर रोक लगा दी है.
केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने इस मुद्दे पर ब्यान दिया कि बीजेपी के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है, इसलिए राम मंदिर के निर्माण के लिए कानून बनाने के वास्ते संसद में प्रस्ताव लाना इस बार संभव नहीं होगा.
लेकिन क्यों बीजेपी इस बार भी नहीं बना पायेगी, राम मंदिर आइये जानते हैं-
इस मुद्दे पर शुरूआत से ही कांग्रेस, सपा और बसपा जैसी पार्टियाँ राजनीति करती आई हैं. आपको इस बात का ज्ञान होना चाइये कि कांग्रेस के ही एक बड़े नेता, जो प्रधानमंत्री रह चुके हैं वह इस मुद्दे को हिन्दू पक्ष में देना चाहते थे किन्तु वोटों की राजनीति की खातिर उनको रोका गया था. बाद में बीजेपी ने इस मुद्दे को उठाया था.
अभी भारतीय जनता पार्टी लोकसभा में तो पूर्ण बहुमत से आई हुई है, कोई भी कानून लोकसभा में तो पारित हो जाता है कितु राज्यसभा में वह रोक दिया जाता है.
अगर पार्टी को यहाँ बहुमत मिलता ही तो यह काम आसान हो जाता है.
प्रधानमंत्री मोदी नहीं चाहते हैं कि अब देश का धर्म के आधार पर बंटवारा हो. सभी धर्म के लोगों को जीने का अधिकार हमारा संविधान देता है और जब देश विकास की राह पर है तो ऐसे में देश को बाटना नहीं चाहते प्रधानमंत्री.
इस तरह के कामों से विश्व में एक गलत संदेश जायेगा जो देश की छवि को खराब करता है. अभी पूरे विश्व में प्रधानमंत्री मोदी जी को बड़ी उम्मीदों के साथ देखा जा रहा है, जो मंदिर निर्माण के बाद होने वाले खराब हालातों के बाद सही नहीं होगा.
अभी 2 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, बिहार और उत्तर प्रदेश. और यही दो राज्य पूरे देश की राजनीति को निर्धारित करते हैं. अभी अगर दोनों राज्यों में बीजेपी को बहुमत मिल जाता है तब राज्यसभा में पार्टी को बहुमत मिलेगा और पार्टी इस मुद्दे पर काम कर पायेगी किन्तु अभी ऐसा होना निश्चित नहीं लग रहा है.
राम मंदिर पर पार्टी में कुछ लोग, एक अलग स्टैंड भी रखते हैं. पार्टी सूत्रों के मुताबिक़ कुछ नेता नहीं चाहते हैं कि मोदी जी इस मुद्दे को उठाये. यह मुद्दा कहीं पार्टी के लिए गले की फास ना बनकर रह जाए.
पार्टी के कुछ बड़े लोग और आलाकमान नेता नहीं चाहते हैं कि वह इतने अच्छे चुनावी मुद्दे को खत्म कर दे. हर बार बीजेपी चुनावों में इस मुद्दे को जरूर उठाती आई है.
तो अब ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि क्या मोदी जी इस मुद्दे को भी अपने एजेंडे में शामिल करेंगे और जनता का इंतज़ार खत्म हो पायेगा. लेकिन यह काम इतना आसान है नहीं जितना की यह दिखता हैं.
आपकी राय का इंतज़ार रहेगा.
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