एक चौकानेवाले घटनाक्रम में टाटा संस के अंतरिम चेयरमैन रतन टाटा नागपुर स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस के मुख्यालय पहुंचे.
हालांकि रतन टाटा के 79वें जन्मदिन पर उनकी आरएसएस के राष्ट्रीय मुख्यालय में भागवत से मुलाकात को शिष्टाचार मुलाकात की संज्ञा दी जा रही है. लेकिन खबर वह नहीं है जो बताई जा रही है.
चर्चा भले ही रतन टाटा की नागपुर में सरसंघचालक मोहन भागवत से मुलाकात को लेकर हो रही है लेकिन इसके केंद्र में शिष्टाचार नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी है.
टाटा ग्रुप में साइरस मिस्त्री को लेकर चल रहे विवादों के बीच रजन टाटा की सरसंघचालक मोहन भागवत से नागपुर जाकर मुलाकात करने को लेकर न केवल राजनीतिक गलियारों में बल्कि कॉरपोरेट जगत में भी चर्चा हो रही है.
गौरतलब है कि टाटा संस और उसके पूर्व अध्यक्ष सायरस मिस्त्री के बीच पिछले कई दिनों से कॉरपोरेट व कानूनी लड़ाई छिड़ी हुई है. मिस्त्री को 24अक्टूबर को टाटा संस के चेयरमैन पद से बर्खास्त कर दिया गया था.
मिस्त्री और रतन टाटा की यह कॉरपोरेट वार ने बाद में राजनीतिक रूप ले लिया. चर्चा है कि राइरस मिस्त्री जिस प्रकार रतन टाटा को चुनौती दे रहे हैं उसको देखते हुए रतन टाटा को लगता है कहीं इसके पीछे सरकार तो नहीं है.
क्योंकि प्रधानमंत्री की योजनाओं से लेकर देश में असहिष्णुता जैसे मुद्दों पर प्रधानमंत्री मोदी की रतन टाटा आलोचना करते रहे हैं.
जानकारों का कहना है कि जिस प्रकार रतन टाटा को मिस्त्री की ओर से चुनौती मिल रही है और वे टाटा संस पर पैसे के लेन देन से जुड़ी अनियमिताओं के आरोप लगा रहे हैं उसको देखते हुए टाटा को आशंका है कि कहीं मोदी सरकार उनके खिलाफ इसको लेकर कोई कठोर निर्णय न लेले. यदि ऐसा हुआ तो तो टाटा ग्रुप मुश्किल में पड़ सकता है.
यही वजह हो सकती है कि रतन टाटा संघ प्रमुख मोहन भागवत से अपनी जिस मुलाकात को शिष्टाचार भेंट का रूप दे रहे हों उसके केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हो. आरोप है कि रतन टाटा संघ के जरिए प्रधानमंत्री को साधने की कोशिश कर रहे हैं.
यह कहना कि इसमें इलाके में टाटा ट्रस्ट द्वारा किए जा रहे विभिन्न कार्य को लेकर टाटा भागवत मिलने नागपुर गए थे तर्कसंगत नहीं लगता है. वहीं इस मुलाकात को जिस प्रकार लर्निंग विजिट की संज्ञा दी जा रही है उसको लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिर रतन टाटा लर्निंग विजिट की आड़ में संघ मुख्यालय में जाकर जिस प्रकार कॉरपोरेट मामलों को निपटाना चाहते हैं उससे एक गलत परंपरा की शुरूआत होगी.
वहीं दूसरी ओर संघ को भी ऐसे कॉरपोरेट विवादों से दूर रहना चाहिए जिसमें सरकार और कॉरपोरेट के आमने सामने होने की आंशका हो. क्योंकि इस प्रकार सरकार और औद्योगिक घरानों के बीच में आने से संघ की छवि को भी नुकसान पहुंचेगा.
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