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ये था रतन टाटा की जिंदगी का सबसे बड़ा सबक, जो आपको देगा विश्वास

रतन टाटा की जिंदगी का सबक – 28  दिसंबर 1937 को जन्मे रतन टाटा ने अपनी जिदंगी में कभी आर्थिक परेशानियां नहीं देखी, पर कहते है ना कि शरीर पर लगे जख्मों से ज्यादा दिल पर लगे घाव दर्द देते है।

रतन टाटा जब महज 7 साल के थे। रतन टाटा को नाम, पैसा, शोहरत ये सब तो विरासत में मिल गया, पर जो नहीं मिला वो था पूरे परिवार का साथ।

रतन टाटा की जिंदगी में काफी उतार चढ़ाव आए, पर उनके इरादे इतने बुल्द रहे कि वह उन्हें पार करते हुए आगे की तरफ ही बढ़ते रहे।

1971 में रतन टाटा को राष्ट्रीय रेडियो और इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी लिमिटेड (नेल्को) का डाईरेक्टर-इन-चार्ज नियुक्त किया गया, एक कंपनी जो कि सख्त वित्तीय कठिनाई की स्थिति में थी। रतन ने सुझाव दिया कि कम्पनी को उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स के बजाय उच्च-प्रौद्योगिकी उत्पादों के विकास में निवेश करना चाहिए

क्या था जिंदगी का सबसे बड़ा सबक

एक समय की बात है जब रतन टाटा लगातार घाटे में जा रही टाटा ग्रुप ऑफ कम्पनी को नए कारोबार को बेचना चाहते थे, जिसके लिए वह अमेरिका की जगुआर कम्पनी को अपनी समूह के नये गाड़ी फोर्ड के कारोबार को बेचने गए। लोकिन उस समय रतन टाटा और उनकी कम्पनी को जगुआर के कडवे शब्दों का अपमान झेलना पड़ा। साल 1999 में अमेरिका के डेट्रायट में फोर्ड के अधिकारियों के साथ रतन टाटा के दौरान उन्होंने कहा कि “जब आपको कुछ आता ही नहीं हैं, तो आखिर आपने यात्री कार खंड के कारोबार में कदम रखा ही क्यों?”….. इन शब्दों की चोट इतनी गहरी लगी रतन टाटा को कि उन्होंने अपनी 9 घंटे की हवाई यात्रा के दौरान यह फैसला कर लिया कि अब वह अपनी कम्पनी नहीं बेचेंगे।

इसी विश्वास के साथ उन्होंने अपने काम को एक बार फिर पूरे विश्वास के साथ शुरू किया।

रतन टाटा की जिंदगी का सबक – कहते है ना, जिद के आगे तो भगवान भी झुक जाते है। ये जगुआर के ही शब्द थे जिसकी कड़वाहट ने रतन टाटा को एक नया आयाम हासिल करने की जिद्द दी। ठीक 9 साल बाद रतन टाटा ने साल 2008 में अमेरिका कंपनी के प्रमुख ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर को खरीदकर जगुआर कंपनी पर एहसान किया। शब्द उनके थे कि वो एहसान करेंगे पर घड़ी की सुईयों ने उन्हें आइना दिखा दिया और रतन टाटा ने उनकी कंपनी खरीदकर उन पर ही एहसान कर दिया। ये था रतन टाटा की जिंदगी का सबक !

व्यवहार, परिवार और रिश्ते

रतन टाटा एक शर्मीले व्यक्ति हैं, समाज की झूठी चमक दमक में विश्वास नहीं करते हैं, सालों से मुम्बई के कोलाबा जिले में एक किताबों एवं कुत्तों से भरे हुये बेचलर फ्लैट में रह रहे हैं। रतन टाटा महज 7 साल के थे जब उनके माता-पिता ने तलाक लेकर रतन टाटा की जिंदगी को पहला झटका दिया था। पिता साइमन नवल टाटा ने साइमन दुनोएर से दुसरी शादी की, जिससे उन्हें एक सतांन भी है।

हाल ही में चुना उत्तराधिकारी

रतन टाटा ने अपना नया उत्तराधिकारी चुन लिया है। सायरस मिस्त्री रतन टाटा का स्थान लेंगे लेकिन पूरी तरह उनकी जगह लेने से पहले वो एक साल तक उनके साथ काम करेंगे। दिसंबर 2012 में वो पूरी तरह समूह की जिम्मेदारी संभाल लेंगे। पलौनजी मिस्त्री के छोटे बेटे और शपूरजी-पलौनजी के प्रबंध निदेशक सायरस मिस्त्री ने लंदन के इंपीरियल कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक एवं लंदन बिजनेस स्कूल से प्रबंधन में डिग्री ली है। फिलहाल वो टाटा संस की सबसे बड़ी शेयर धारक कंपनी शापूरजी पैलनजी के प्रबंध निदेशक हैं। सायरस 2006 से ही टाटा समूह से जुड़े हैं, मिस्त्री साल 2006 से ही टाटा संस के निदेशक समूह से जुड़े हैं।

रतन टाटा की जिंदगी का सबक – रतन टाटा को साल 2000 में भारत सरकार ने उद्योग एवं व्यापार क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। इसी के अलावा रतन नावेल टाटा अन्य कई बड़े पदों पर भी सम्मानित है।

Kavita Tiwari

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