रंगोली का इतिहास और उससे जुड़ी मान्यताएं –
हमारे देश में रंगों का खासा महत्व है.
शादी-ब्याह का मौका हो या फिर व्रत और त्योहारों का पावन अवसर, इन बेहद ही खास मौकों पर भारतीय महिलाएं अपने घर और आंगन को रंगबिरंगी रंगोली से सजाती हैं.
देश के अलग-अलग इलाकों में रंगोली बनाने की शैली में विविधता दिखाई देती है लेकिन इसके पीछे छुपी भावनाओ और संस्कृति में समानता नज़र आती है.
रंगोली को भारत की प्राचीन सांस्कृतिक और लोक कलाओं में से एक माना जाता है. कहा जाता है कि रंगोली का इतिहास और उससे जुड़ी मान्यताएं काफी पुरानी है.
चलिए जानते है रंगोली का इतिहास और उससे जुड़ी मान्यताएं –
रंगोली का इतिहास और उससे जुड़ी मान्यताएं –
सालों से भारत में त्यौहारों पर रंगोली बनाने का रिवाज़ चला आ रहा है. रंगोली एक संस्कृत का शब्द है, जिसका मतलब है रंगों के जरिये भावनाओं को अभिव्यक्त करना.
भारत के कुछ क्षेत्रों में इसे अल्पना के नाम से भी जाना जाता है. अल्पना भी एक संस्कृत शब्द ‘अलेपना’ से बना है, जिसका अर्थ है लीपना अथवा लेपन करना. क्योंकि रंगोली बनाते समय रंगों के प्रयोग से दीवारों पर या फिर ज़मीन पर लेपन ही तो किया जाता है.
– ऐतिहासिक नज़रिये से देखें तो ऐसा माना जाता है कि भारत में रंगोली का आगमन मोहन जोदड़ो और हड़प्पा सभ्यता से जुड़ा है. इन दोनों सभ्यताओं में मांडी हुई अल्पना के निशान मिलते हैं.
– अल्पना वात्स्यायन के काम-सूत्र में वर्णित चौंसठ कलाओं में से एक है. रंगोली का मोहन जोदड़ो से जुड़े होने का एक कारण बंगाल की आधुनिक लोक कला से है. ऐसा माना जाता है कि इस कला का सीधा संबंध 5,000 वर्ष पूर्व की मोहन जोदड़ो की कला से है.
– एक प्रचलित लोक कथा के अनुसार एक बार राजा चित्रलक्षण के दरबार के जाने-माने पुरोहित के पुत्र का अचानक देहांत हो गया. पुरोहित के इस दुख को कम करने के लिए राजा ने भगवान ब्रह्मा से प्रार्थना की. ब्रह्माजी प्रकट हुए और राजा से दीवार पर उस पुत्र का चित्र बनाने के लिए कहा, जिसकी मृत्यु हुई थी.
ब्रह्माजी की बात सुनकर शीघ्र ही राजा चित्रलक्षण द्वारा दीवार पर एक चित्र बनाया गया और देखते ही देखते उस चित्र से ही राजदरबार के पुरोहित के मृत पुत्र का पुन: जन्म हुआ.
– एक और प्रचलित कथा के मुताबिक ब्रह्मा ने सृजन के उन्माद में आम के पेड़ का रस निकाल कर उसी से ज़मीन पर एक स्त्री की आकृति बनाई. उस स्त्री का सौंदर्य अप्सराओं को मात देने वाला था, बाद में वह स्त्री उर्वशी कहलाई. ब्रह्मा द्वारा खींचीं गई यह आकृति रंगोली का प्रथम रूप है.
– लोक कथाओं के आधार पर ऐसा माना जाता है कि लंकेश रावण का वध करने के बाद जब श्रीराम अपनी पत्नी सीता के साथ 14 वर्षों का वनवास व्यतीत करके अयोध्या वापस लौट रहे थे, तब उनके आने की खुशी में पूरे आयोध्या वासियों ने अपने घर-आंगन और प्रवेश द्वार को रंगोली से सजाया था.
– माता सीता के विवाह को भी रंगोली से जोड़ा जाता है. कुछ प्रचलित लोक कथाओं के अनुसार माता सीता के विवाह के समय पूरे नगर एवं विवाह क्षेत्र को खूबसूरत रंगोली के चित्रों से सजाया गया था.
रंगोली से जुड़ी मान्यताएं
– हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रंगोली महज़ एक कलात्मक या फिर सजाने वाली वस्तु नहीं है. बल्कि रंगोली की आकृतियां घर से बुरी आत्माओं एवं दोषों को दूर रखती है.
– रंगोली के सुंदर रंग घर में खुशहाली एवं सुख-समृद्धि लाते हैं. भारत के कई क्षेत्रों में रंगोली बनाते समय कन्याओं द्वारा लोक-गीत भी गाए जाते हैं.
– ऐसा माना जाता है कि रंगोली की गोलाकार, चौकोर एवं विभिन्न प्रकार की आकृतियां नकारात्मक ऊर्जा को मार्ग में ही रोककर वापस बाहर की ओर प्रवाहित कर देती हैं.
– रंगोली अपने भव्य रंगों से घर में सकारात्मक ऊर्जा को आमंत्रित करती है और उसे बाहर नहीं निकलने देतीं. रंगोली का महत्व भारत में तब ज्यादा बढ़ जाता है जब इसे विभिन्न धार्मिक देवियों से जोड़ा जाता है.
– भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु को लेकर ऐसा माना जाता है कि इस क्षेत्र की पूजनीय देवी ‘मां थिरुमाल’ का विवाह ‘मर्गाजी’ महीने में हुआ था. इसीलिए इस पूरे माह के दौरान इस क्षेत्र के हर घर में कन्याएं सुबह उठकर नहा धोकर रंगोली बनाती हैं.
– दक्षिण भारत में रंगोली को कोलम नाम से जाना जाता है. इसके लिए चावल के आटे या घोल का इस्तेमाल किया जाता है. चावल के आटे के इस्तेमाल के पीछे यह मान्यता है कि चींटी को खाना खिलाना चाहिए. कहा जाता है कि कोलम के बहाने अन्य जीव जन्तु को भोजन मिलता है जिससे प्राकृतिक चक्र की रक्षा होती है.
ये था रंगोली का इतिहास और उससे जुड़ी मान्यताएं – गौरतलब है कि बदलते वक्त के साथ-साथ रंगोली बनाने की इस लोककला में भी काफी बदलाव आए हैं. लेकिन हकीकत यह भी है कि ज़माना चाहे कितना भी बदल जाए, पर आज भी सभी धार्मिक अवसरों पर रंगोली बनाई जाती है जो लोगों की खुशियों में चार चांद लगा देती है.
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