रामनाथ कोविंद का सफ़र – रामनाथ कोविंद भारत के 14वें राष्ट्रपति होंगे।
हालांकि अभी उन्होंने राष्ट्रपति पद का शपथ नहीं ली है, लेकिन जब मतगणना में में उन्हें जीत मिली वैसे ही वो काफी खुश दिखाई दिए। इस दौरान उन्होंने अपने पहले भाषण में ये भा कहा कि आज दिल्ली में बारिश हो रही थी। बारिश को देखकर मुझे अपने पैत्रिक गांव की याद आ गई जब मैं वहां हुआ करता था। मेरे घर कच्चे थे और बारिश होने पर वो चूने लगते थे और पारी घर के अंदर घुस जाता था, लेकिन अगर मैं आज भारत का राष्ट्रपति बन सकता हूं तो भारत को कोई भी नागरिक देश का राष्ट्रपति बन सकता है।
आज हम आपको बताएंगे रामनाथ कोविंद का सफ़र – रामनाथ कोविंद ने कैसे तय किया ‘कच्चे मकान से रायसीना हिल्स तक का सफर।’
बचपन से ही कुछ अलग करने का था सपना:
1 अक्टूबर, 1945 को कानपुर के छोटे से गांव परौंखा में जन्मे रामनाथ कोविंद बचपन से ही कुछ अलग करने का सपना देखते थे। कोविंद पर भीमराव अंबेडर का काफी प्रभाव था और उन्हीं से कोविंद जीवन में कुछ हासिल करने की प्रेरणा लेते थे। अपने परिवार में सबसे छोटे कोविंद अपने पिता से सिर्फ 5 रुपये लेकर अपने सपने को पूरा करने निकले थे। दावा ये भी किया जाता है कि कोविंद 12 साल तक किराय के घर पर रहे। इस दौरान उन्होंने वकालत की पढ़ाई की और उसी क्षेत्र में काफी आगे निकल गए। कोविंद 30 मई 1974 को सविता कोविंद के साथ शादी बंधन में बंधे। कोविंद के बेटे का नाम प्रशांत और बेटी का नाम स्वाति है।
कोविंद ने वकालत में छुईं बुलंदियां:
रामनाथ कोविंद ने वकालत में कई सफलता प्राप्त की। कोविंद ने इस दौरान 16 साल तक दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस की। साल 1971 में कोविंद को दिल्ली बार काउंसिल के लिए नामांकित भी किया गया। वहीं वो 1977 से 1979 तक केंद्र सरकार के वकील भी रहे।
1994 में सांसद बने कोविंद:
कोविंद को साल 1994 में सांसद बनने का गौरव प्राप्त हुआ। कोविंद उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए नामांकित हुए थे। कोविंद इस दौरान 12 साल तक सांसद रहे। बतौर सांसद कोविंद ने दलितों के लिए बहुत काम किया और उनके मुद्दों को उठाने से वो बिल्कुल भी नहीं हिचके। कोविंद को संयुक्त राष्ट्र महासाभा को भी संबोधित करने का गौरव प्राप्त है।
दलितों के मसीहा बने कोविंद:
अपने छात्र जीवन से ही कोविंद दलितों की आवाज बन गए थे। कोविंद दलितों के लिए हर समय खड़े रहते थे और उनके हर मुद्दों को उठाते थे। 12 साल तक सांसद रहने के दौरान कोविंद ने हमेशा दलितों के हित में काम किया। ये भी कहा जाता है कि कोविंद ने बौतर वकील कई बार दलितों के मुफ्त केस लड़े। दलितों के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने के दौरान कोविंद कोई पैसा नहीं लेते थे।
बिहार के राज्यपाल बनने का गौरव हुआ प्राप्त:
रामनाथ कोविंद को अगस्त 2015 में बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। कोविंद ने ही तेजस्वी यादव को डिप्टी सीएम की शपथ दिलाई थी और जब तेजस्वी गलत शपथग्रहण कर रहे थे तब कोविंद ने उन्हें बीच में टोककर दोबारा शपथ दिलाई थी।
ये है रामनाथ कोविंद का सफ़र – साफ है राष्ट्रपति बनने के लिए कोविंद को काफी लंबा संघर्ष करना पड़ा है। कोविंद के लिए कच्चे मकान से रायसीना तक का सफर आसान नहीं रहा, लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से ये साबित कर दिया कि अगर आपमें कुछ हासिल करने की चाहत और जुनून है तो आपको आपके लक्ष्य को हासिल करने से कोई बी नहीं रोक सकता।
कोविंद देश के हर उस नागरिक के लिए एक उदाहरण हैं जो अपनी असफलता के पीछे गरीबी को वजह बताते हैं। निश्चित रूप से देश के युवा अपने अगले राष्ट्रपति से काफी कुछ सीख सकते हैं।
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