जन्माष्टमी – विश्व में भारत धर्म और संस्कृति का देश माना जाता है. जहां पर वेद-पुराण, रामायण महाभारत जैसे ग्रंथ लिखे गए और उन्हीं ग्रंथों में भगवान के चरित्रों और लीलाओं का वर्णन किया गया.
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भगवान विष्णु ने सतयुग में श्रीराम का अवतार लिया और द्वापरयुग में श्रीकृष्ण का. वहीं माता लक्ष्मी ने सतयुग में सीता मईया का और द्वापरयुग में राधारानी का रूप लिया.
मां काली और भगवान शिव का रूप है राधा-कृष्ण
साथ ही महाभारत में भी श्रीकृष्ण और राधारानी का उल्लेख किया गया है.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि देवी पुराण में मां काली को श्रीकृष्ण का अवतार और भगवान शिव को राधारानी का अवतार बताया गया है. यहीं नहीं भगवान विष्णु को अर्जुन का अवतार बताया गया है. इसका जीता जागता सुबूत है हरिद्वार के कनखल के पास स्थित एक मंदिर में शिव-पार्वती का राधा-कृष्ण रूप विराजमान है.
तो चलिए आज जन्माष्टमी पर हम आपको शिव-पार्वती के राधा-कृष्ण बनने की कहानी सुनाते हैं..
भगवान शिव की इच्छापूर्ति के लिये माता पार्वती ने लिये कृष्ण रूप
देवी पुराण के अनुसार, एक बार माता पार्वती और भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर विहार कर रहे थे. उस वक्त भोलेबाबा माता पार्वती के रूप को देखकर काफी मोहित हो गये. उन्होंने माता पार्वती से अजब-सी इच्छा व्यक्त की. उन्होंने पार्वती मइया से कहा कि वे चाहते हैं कि एक बार पृथ्वीलोक में माता पार्वती पुरुषरूप में और महादेव स्त्रीरूप में अवतरित हों और दोनों दुबारा प्रेम करें. महादेव की यह बात सुनकर माता पार्वती ने उनकी इच्छा पूरी करने की बात कही.
उसी समय पृथ्वीलोक पर असुर राजाओं का साम्राज्य फैला था, जिससे चिंतित होकर ब्रह्मा और सभी देवतागण भगवान शिव और पार्वती मइया के पास आए और मदद मांगने लगे. तब माता पार्वती के मन में एक युक्ति सूझी और उन्होंने कहा कि वे नारीरूप में असुर राजाओं का वध करने में असमर्थ हैं. और उन्होंने भद्रकाली के रूप में उन सभी राजाओं को अभयदान दिया हुआ है. इसलिये वह अबकी बार वासुदेव और देवकी के 8वें पुत्र के रूप में जन्म लेंगी और कंस का संहार करेंगी. साथ ही उनकी सहायता के लिये भगवान विष्णु पांडु पुत्र अर्जुन के रूप में जन्म लेकर कौरव सेना का नाश करेंगे. वहीं महादेव की इच्छा को पूरा करने के लिये वह वृषभानु पुत्री राधारानी के रूप में अवतरित होंगे. भगवान ब्रह्मा ने उनकी बात मान ली और द्वापरयुग में मां काली श्रीकृष्ण बनीं और राधारानी महादेव बने. उन्होंने कृष्ण-राधा बनकर कई रासलीलाएं भी की. और भगवान शिव की इच्छा भी पूरी हो गई.
महाभारत में भी पांडवों को विजयश्री का वरदान दिया
जब महाभारत का युद्ध होने वाला था तो पांडवों ने मां भगवती का पूजन किया, जिससे प्रसन्न होकर मां काली ने उनके युद्ध में उनका साथ देने का वचन दिया और महाभारत में श्रीकृष्ण के रूप में अर्जुन के सारथी बनकर उन्हें विजय दिलाई. महाभारत युद्ध के बाद श्रीकृष्ण और राधा ने समुद्र की ओर रुख कर लिया. उस वक्त नंदी, सिंह द्वारा खींचा जाने वाला रत्नजड़ित रथ लेकर कैलाश लोक से वहां आ गए. तब श्रीकृष्ण ने मां काली का रूप धारण किया और सिंह पर सवार हो गईं. वहीं राधारानी महादेव के रूप में पहले से ही विराजमान थी.
देवी पुराण में ये भी उल्लेख किया गया है कि श्रीकृष्ण की आठ पटरानियां रुक्मिणी, सत्यभामा आदि भी महादेव का ही अंश थीं. माता पार्वती की सखियां जया-विजया द्वापरयुग में श्रीदाम और वसुदाम नामक ग्वालों के रूप अवतरित हुईं थी.
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