उत्तर प्रदेश की हवा में इस समय काफी गर्मी है.
चुनावों की वजह से चाय और पान की दूकान पर बस राजनीति की ही बातें की जा रही हैं.
वहीँ दूसरी तरफ कुछ दिन पहले तक जो जनता मोदी का नाम नहीं ले रही थी वही जनता राम के बहाने ही सही बीजेपी पर बात कर रही हैं.
लखनऊ में इन दिनों उत्तर प्रदेश में राम मंदिर की बातें जोरों पर हो रही हैं. असल बात यह है कि काम इस समय नहीं बोल रहा है बल्कि अभी उत्तर प्रदेश में राम मंदिर बोल रहा है. बच्चे-बच्चे की जुबान पर राम मंदिर का नाम छाया हुआ है. बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में जैसे ही राम मंदिर बनाने का जिक्र किया तभी कांग्रेस और सपा दोनों का घबराहट के साथ जी मिचलाने लगा था. उल्टियों का दौर शुरू हो इससे पहले ही अखिलेश यादव और राहुल गाँधी ने प्रेस कांफ्रेंस कर अपने गठबंधन की आधिकारिक घोषणा भी कर दी है.
ज्ञात हो कि यंगिस्थान ने उत्तर प्रदेश में जिस तरह का सर्वे दिसंबर और जनवरी में किया था उससे यह बात तो साफ़ थी कि जनता राम मंदिर को याद कर रही है.
दिनांक 8 जनवरी को ही यंगिस्थान ने खबर प्रकाशित की थी जिसका टाइटल था कि ‘यूपी में केवल और केवल राम मंदिर ही बना सकता है मोदी की सरकार . लेकिन तब शायद बीजेपी को राम नाम लेने से कोई रोक रहा था. अचानक से चुनाव से चंद दिन पहले पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को राम मंदिर की याद आती है और वह घोषणा कर देते हैं कि यदि उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार आती है तो संवैधानिक तरीके से राम मंदिर का निर्माण होगा.
बेशक अंत में ही सही किन्तु मोदी को उत्तर प्रदेश में राम मंदिर मुद्दे पर आना ही पड़ा है. सच तो यह है कि संघ के कई बड़े नेताओं ने पार्टी को राम मंदिर का मुद्दा उठाने का सुझाव चंद दिन पहले बोला है.
अब आगामी कदम क्या है बीजेपी का
संघ के एक बड़े और वरिष्ठ नेता के अनुसार अब बीजेपी के पास समय नहीं है. उत्तर प्रदेश की हार इस बार बीजेपी का चेहरा ही बदल सकती है. जो लोग अभी तक हवा में थे इस बार वह लोग जमीन पर धराशाही हो सकते हैं. इसलिए आगामी दिनों में नरेन्द्र मोदी को ही प्रदेश में चुनाव प्रचार की बागडौर सौपी जाने वाली है. आगामी दिनों में जनता के सामने सामाजिक मुद्दों को उठाना और अपने मुख्य एजेंडे को रखना ही पार्टी के पास एक मात्र काम होगा. जी तरह से अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने हाथ मिलाया है उसको देखकर साफ़ है कि यह दोनों युवा नेता भी इस बार हार के भूत को देख पा रहे हैं.
खासकर अगर समाजवादी पार्टी का काम बोल रहा होता तो किसी भी हालत में अखिलेश अपनी थाली का भोजन राहुल के साथ शेयर नहीं करते. किन्तु बड़े बुजुर्गों की बद्दुआ से बचने के लिए अखिलेश यादव ने इस गठबंधन को स्वीकार किया है. वैसे इस गठबंधन को मात देने के लिए अब बीजेपी के पास अपने ब्रह्मास्त्र नरेन्द्र मोदी का ही सहारा है.
आने वाले दिनों में यह साफ़ हो जायेगा कि क्या उत्तर प्रदेश में राम मंदिर के नाम पर बीजेपी के पाले में आएगी या फिर प्रदेश की जनता यह समझ गयी है कि उत्तर प्रदेश में राम मंदिर अब चुनावी मुद्दा बन चुका है.
वैसे इस बार बीजेपी उत्तर प्रदेश में राम मंदिर बनाने के पक्ष में तो है लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या उत्तर प्रदेश की जनता बीजेपी के इस मन्त्र पर इस बार विश्वास कर पायेगी?
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