रामायण की कथा के अनुसार आप सभी जानते हैं कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम अपने छोटे भाई लक्ष्मण से बेहद प्यार करते थे और बदले में लक्ष्मण भी अपने भाई श्रीराम पर अपने प्राण न्योछावर करते थे.
जब भगवान राम को 14 साल को वनवास मिला तो ऐसे में लक्ष्मण ने अपने भाई का साथ नहीं छोड़ा और वो भी उनके इस वनवास के साथी बनें.
लेकिन रामायण की एक कथा के अनुसार भगवान श्रीराम के सामने एक ऐसी विकट स्थिति आ जाती है कि ना चाहते हुए श्रीराम अपने जान से प्यारे भाई लक्ष्मण को मृत्युदंड देने पर मजबूर हो जाते हैं.
आइए जानते हैं कि आखिर श्रीराम के सामने ऐसी कौन सी मजबूरी आ जाती है कि उन्हें अपने भाई लक्ष्मण को मृत्युदंड देना पड़ा.
श्रीराम ने दिया था यम को ये वचन
रामायण की ये घटना उस समय की है जब श्रीराम लंका पर जीत हांसिल करके अयोध्या के राजा बने और एक दिन अचानक यम देवता किसी जरूरी विषय पर चर्चा करने के लिए श्रीराम के पास पहुंचते हैं. लेकिन इस चर्चा को शुरू करने से पहले वो श्री राम से एक वचन मांग लेते हैं. यम ने श्रीराम से यह वचन मांगा कि जब तक हम दोनों के बीच ये चर्चा होगी तब तक हमारे बीच में कोई नहीं आएगा और अगर कोई इस चर्चा के बीच आ भी गया तो आप उसे मृत्युदंड देंगे.
यम को वचन देने के बाद भगवान राम ने इस चर्चा के दौरान अपने भाई लक्ष्मण को द्वारपाल नियुक्त करते हुए उनसे कहा कि जब तक वो यम से बात करेंगे तब तक कोई अंदर ना आने पाए नहीं तो इस गुस्ताखी के लिए उसे मृत्युदंड दिया जाएगा.
अपने बड़े भाई की आज्ञा का पालन करते हुए लक्ष्मण द्वारपाल बनकर दरवाजे पर खड़े हो जाते हैं. इतने में वहां ऋषि दुर्वासा का आगमन होता है. जब लक्ष्मण ऋषि दुर्वासा को श्रीराम से मिलने के लिए अंदर जाने से मना करते हैं तो वो क्रोधित हो जाते हैं.
क्रोध से भरे ऋषि दुर्वासा ने लक्ष्मण से कहा कि अगर उन्हें श्रीराम से मिलने नहीं दिया गया तो वो पूरी आयोध्या को श्राप दे देंगे.
लक्ष्मण ने किया श्रीराम की आज्ञा का उल्लंघन
पूरी आयोध्या नगरी को ऋषि दुर्वासा के क्रोध और श्राप से बचाने के लिए लक्ष्मण ने अपने भाई की आज्ञा का उलंलघन करना ही बेहतर समझा और आयोध्या को बचाने के लिए लक्ष्मण ने अपने प्राणों को दांव पर लगा दिया.
लक्ष्मण ने जरा सी भी देर न करते हुए अंदर जाकर श्रीराम को ऋषि दुर्वासा के आने की सूचना दी. सूचना पाते ही श्रीराम ने यम के साथ जल्दी से अपने वार्तालाप को समाप्त किया और ऋषि दुर्वासा का स्वागत किया.
लेकिन श्रीराम यम को दिए हुए वचन के चलते दुविधा में फंस गए क्योंकि आज्ञा का उल्लंघन करने पर अपने वचन के मुताबिक उन्हें लक्ष्मण को मृत्युदंड देना था.
आखिरकार इस विकट परिस्थिति में श्रीराम ने अपने गुरूदेव को याद किया और उनसे कोई रास्ता दिखाने को कहा.
ऐसी परिस्थिति में उनके गुरूदेव ने उन्हें सुझाव दिया कि अपने किसी प्रिय का त्याग उसकी मृत्यु के समान ही है. इसलिए अपने वचन को पूरा करने के लिए आप अपने भाई लक्ष्मण को मृत्युदंड दें.
लेकिन लक्ष्मण को जैसे ही इसकी जानकारी मिली उन्होंने अपने भाई से कहा कि आपसे दूर रहने से तो अच्छा यही है कि मैं आपके वचन का पालन करते हुए स्वयं मृत्यु को गले लगा लूं और उन्होंने ने जल समाधि ले ली.
गौरतलब है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के लिए उनके वचन से बढ़कर और कुछ नहीं था और इस बात को लक्ष्मण भी बखूबी समझते थे. इसलिए अपने भाई के वचन को पूरा करने के लिए लक्ष्मण ने खुद अपने प्राण त्याग दिए.
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