इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो हिंदुस्तान में मध्य युग की शुरूआत से ही मुस्लिम शासकों का आगमन हो चुका था.
भारत में अपनी शाख जमानेवाले इन मुस्लिम शासकों को धूल चटानेवाले महाराणा प्रताप और पृथ्वीराज चौहान जैसे भारत के कई वीर राजपूतों की वीरगाथा के इतिहास को तकरीबन हर हिंदुस्तानी ने पढ़ा और सुना होगा.
लेकिन आज हम आपको इतिहास के पन्नों में भूले-बिसरे कई ऐसे राजपूतों की वीरगाथा के बारे में बताना चाहते हैं, जिनके सामने कई मुस्लिम शासकों की विशाल पल भर में घुटने टेकने को मजबूर हो गई.
भूले-बिसरे राजपूतों की वीरगाथा –
– सन 1840 का काबुल युद्ध
इस बात को बहुत कम लोग जानते हैं कि सन 1840 में हुए काबुल युद्ध के दौरान करीब 8000 पठानों की सेना ने 1200 राजपूतों के साथ युद्ध किया,
महज घंटे भर में ही पठानों की विशाल सेना राजपूतों की छोटी सी सेना के सामने पस्त होने लगी. पठानों की ये विशाल सेना वीर राजपूतों के आगे टिक नहीं पाई और उन्हें घुटने टेकने पड़े.
– चित्तौड़ की तीसरी लड़ाई
कई इतिहासकारों का मानना है कि चित्तौड़ की तीसरी लड़ाई में करीब 8000 राजपूत और 60,000 मुगल शामिल थे. कहा जाता है कि अगर 15,000 सैनिकों वाली राजपूत की सेना होती तो अकबर जिंदा ही नहीं बचता.
इस लड़ाई में 48,000 सैनिक मारे गए थे, जिसमें 8000 राजपूत और 40,000 मुगल थे, जबकि 10,000 सैनिक घायल हुए थे.
– गिररि सुमेल की लड़ाई
गिररि सुमेल की लड़ाई 15,000 राजपूत और 80,000 तुर्को के बीच लड़ी गई थी. इस युद्ध में राजपूतों से घबराकर शेर शाह सूरी ने कहा था “मुट्टी भर बाजरे यानी मारवाड़ के लिए हिन्दुस्तान की सल्लनत खो बैठता”.
बताया जाता है कि उस युद्ध से पहले जोधपुर के महाराजा मालदेव जी नहीं गए होते तो शेरशाह ये बोलने के लिए जीवित भी नही रहता.
– हल्दी घाटी की लड़ाई
सन 1576 में हल्दी घाटी की लड़ाई के दौरान मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट अकबर के बीच भीषण युद्ध हुआ. मुट्ठीभर राजपूत सैनिकों के बल पर महाराणा प्रताप ने अकबर की सेना के छक्के छुड़ा दिए थे.
कई सालों तक चली इस लड़ाई में महाराणा प्रताप की वीरता और युद्ध कौशल को देखकर अकबर दंग रह गया था. मेवाड़ को जीतने के लिए अकबर ने तमाम कोशिश की लेकिन न तो वो जीत सका और न महाराणा प्रताप ने कभी हार मानी.
– तराइन की लड़ाई
पृथ्वीराज चौहान के बारे में कहा जाता है कि मुहम्मद गौरी ने 18 बार पृथ्वीराज पर आक्रमण किया लेकिन 17 बार उसे हार का सामना करना पड़ा.
पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी के बीच दो बार तराइन की लड़ाई हुई जिसमें पहली बार पृथ्वीराज चौहान की जीत हुई जबकि दूसरी बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.
हमारे देश के स्कूल और कॉलेजों की किताबों में अक्सर हम इतिहास की राजपूतों की वीरगाथा के बार में पढ़ते आ रहे हैं जिनमें हमारे देश के वीर योद्धा मुगल शासकों के आगे कमजोर रहें.
बल्कि हमारे देश में ऐसे कई वीर योद्धा भी रहे हैं, जिन्होंने मुगलों को अपने आगे घुटने टेकने को बार-बार मजबूर किया था.
– बप्पा रावल और राणा सांगा जैसे योद्धाओं के नाम से ही कई मुगल शासक और मुगल महिलाएं कांप उठती थीं.
– रावत रत्न सिंह चुंडावत की रानी हाडा का त्याग पढ़ाया नहीं गया जिसने अपना सिर काटकर रणभूमि में भेज दिया था.
– पाली के आउला के ठाकुर खुशाल सिंह की गाथा को नहीं पढ़ाया जाता है जिन्होंने एक अंग्रेज अफसर के सिर को काटकर किले पर लटका दिया था.
– दिलीप सिंह जूदेव को नहीं पढ़ाया जाता जिन्होंने एक लाख आदिवासियों को फिर से हिंदू बनाया था.
ये है राजपूतों की वीरगाथा – गौरतलब है कि हमारे देश में कई ऐसे राजपूत वीर योद्धा और वीरांगनाएं भी थी, जिन्होंने मुगलों का डटकर सामना किया और उनके आगे झुकने के बजाय उनसे लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त किया, लेकिन अफसोस की बात तो यह है कि आज उनका नाम इतिहास के पन्नों में कहीं गुम हो गया है.
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