एक तरफ हमारे देश के प्रधानमंत्री पदक विजेताओं को सन्मान देने की बात कर रहे है, तो वही दुसरी ओर देश का नाम रौशन करने वाले पदकधारी एक-एक पैसे के मोहताज़ बने हुए है.
आपको यकीन ना हो पर ये सच है – हमारे देश का एक ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट इस वक्त सडको पर स्टॉल लगाकर सामान बेचता फिर रहा है ताकि वो अपने घर का खर्चा चला सके और अपने छोटे भाई को पढ़ा सके.
हम बात कर रहे है दिल्ली के पहाडगंज इलाके में रहने वाले राजकुमार तिवारी की, जिन्होंने साल 2013 में दक्षिण कोरिया में हुए स्पेशल ओलंपिक वर्ल्ड विंटर गेम्स में भारत के लिए स्केटिंग में गोल्ड मेडल जीता था.
राजकुमार तिवारी आर्थिक तंगी से गुज़र रहे है.
ऐसे में उनकी मदद करनेवाला कोई नहीं है. गोल्ड मेडल जितने के बाद जो भी पैसे मिले थे वो सारे पिता के बीमारी में खर्च हो गए. तब से वे पिता और छोटे भाई के साथ रेहडी बेच रहे है.
गोल्ड मेडलिस्ट राजकुमार कहते है कि ‘जब मै ओलंपिक में जीता था तो सरकारी अधिकारी और राजनेताओं ने मुझे शुभकामनाएं तो दी थी, साथ ही ज़रूरत पड़ने पर मदद देने का आश्वासन भी दिया था, लेकिन अब कोई कुछ जवाब ही नहीं देता’
अपना पेट भरने के लिए राजकुमार ने क्या कुछ नहीं किया. इलाके के बच्चो को स्केटिंग की ट्यूशन दी, आर्टिफिशियल ज्वेलरी बेची, और फोटो फ्रेम की दूकान भी लगाई. यहाँ तक कि टीवी रियालिटी शो ‘इंडिया गॉट टेलेंट’ में भी हिस्सा लिया, हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली.
राजकुमार पैसो के मामले में कमज़ोर भले ही है पर वे फिर एक बार फिर भारत देश के लिए ओलंपिक मैडल लाने की ताकत और इच्छा रखते है.
राजकुमार तिवारी साल 2018 में होने वाले ओलंपिक में हिस्सा लेना चाहते तो है पर आर्थिक स्थिति से मजबूर है.
दरअसल गोल्ड मेडल जीतने के लिए राजकुमार को अमेरिका ट्रेनिंग के लिए जाना है, जिसमे कम से कम 25 लाख रुपए का खर्चा है. राजकुमार कहते है कि उनके पास अभी कोई कोच भी नहीं है और ना ही मॉडर्न स्केटिंग के सामान, हालाकि वे रोज़ ट्रेनिंग करते है.
राजकुमार तिवारी ने ख़त के जरिए आर्थिक मदत की गुहार प्रधानममंत्री दफ्तर में लगाईं है, लेकिन अभी तक वहा से कोई जवाब नहीं आया है.
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