किराडू मंदिर – मध्यप्रदेश का खजुराहो मंदिर तो देश ही नहीं पूरी दुनिया में मशहूर हैं.
इस मंदिर की कामुक कलाकृतियां बताती हैं कि उस ज़माने के राजा महाराजा भी कितने रंगीन मिजाज़ के हुआ करते थे. कहा जाता है कि खजुराहो जैसा दूसरा कोई मंदिर भारत में नहीं है, लेकिन ये बात पूरी तरह सच नहीं है, क्योंकि खजुराहो की तरह ही राजस्थान में भी एक मंदिर है.
राजस्थान के बाड़मेर जिले में स्थित किराडू मंदिर खजुराहो जैसा है.
किराडू मंदिर राजस्थान की उस रेतीली भूमि पर बना हैं जहां पर कई राज दफन हैं. कई ऐसी मान्यताएं है जिसे सुनकर एक बार के लिए उनपर यकीन करने को कोई भी मजबूर हो जाता है. राजस्थान के कुछ ऐसे किले और मंदिर हैं जिनके लिए ये मान्यता प्रचलित है कि उन जगहों पर भूत रहते हैं या किसी प्रकार की आत्माएं घूमती हैं. आज राजस्थान के एक ऐसे ही रहस्मय के साथ-साथ एक खूबसूरत मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो शायद इतिहास के पन्नों में छुप गया है और वो स्थान है बाड़मेर जिले में स्थित किराडू का मंदिर. ये मंदिर पूरे राजस्थान में खजुराहो मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है और टूरिस्ट को अपनी ओर आकर्षित करता है. इसके साथ ही इस मंदिर के लिए ये कथा भी प्रचलित है कि शाम होने के बाद यहां जो भी ठहरता है वो पत्थर का बन जाता है.
किराडू मंदिर के लिए ये मान्यता वर्षों से चली आ रही है कि शाम होने के बाद यहां जो भी रुकता है वो पत्थर का बन जाता है या उसकी मौत हो जाती है. इसी डर के चलते ये पूरा क्षेत्र विरान हो जाता है. इस मंदिर के सुनसान रहने के पीछे एक कहानी है. यहां के स्थानीय लोगों का मानना है कि बहुत सदियों पहले एक महान ऋृषि अपने अनुनानियों के साथ इस जगह पर आए थे और जब वो घूमने निकले तो उनके सभी अनुनानियों की तबीयत खराब हो गई. इस दौरान उनकी किसी ने भी सहायता नहीं की, बस एक कुम्हारन ने ही उनकी मदद की थी. जब ऋृषि वापस ठीक हुए तो उन्होनें पूरे गांव को श्राप दिया कि जिस जगह इंसानियत नहीं है उन्हें पत्थर का बन जाना चाहिए.
ऋृषि ने पूरे गांव को श्राप दे दिया कि शाम होने तक इस गांव के सभी लोग पत्थर के बन जाएंगे. साथ ही ऋृषि ने उस कुम्हारन को उस गांव से जाने के लिए कहा और साथ ही ये हिदायत दी कि वो वापस मुड़ कर ना देखे. इसके बाद धीरे-धीरे सभी लोग पत्थर के बनते गए और जब कुम्हारन गांव से जा रही थी तो उसने पीछे मुड़कर देख लिया और वो उसी स्थान पर पत्थर की बन गई.। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण 12 वीं शताब्दी में हुआ था और उसके बाद इस श्राप के कारण यहां पर वीरानियत छा गई, अब इस कहानी में कितनी सच्चाई है ये तो पता नहीं, लेकिन हमारे देश में प्राचीन मंदिरों और ऐतिहासिक स्थलों के बारे में कोई न कोई अनोखी कहानी ज़रूर है.
अब क्या सचमुच इस किराडू मंदिर में शाम को रुकने पर कोई पत्थर बन सकता है ये जानने के लिए वहां जाने का जोखिम भला कौन उठाए, इसलिए पुरानी मान्यता की सच्चाई को जाने बिना लोग उसे ही मानते आ रहे हैं.
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