भला कोई रेलवे ट्रैक की पूजा क्यों करेगा?
यह तो कोरा अंधविश्वास है! संभव है इस खबर को पढने से पहले आपके मन में भी यह विचार आया होगा लेकिन पटना से कुछ ही दूर इस बाढ़ प्रभावित इलाके की महिलाओं के लिए रेल की पटरियों को पूजने के पीछे अंधविश्वास नहीं बल्कि नाउम्मीदी वजह है.
यह नाउम्मीदी प्रशासन से है.
अथमगोला इलाका पटना से 55 किलोमीर दूर पड़ता है. इस इलाके में दो गांव हैं, मिल्कीचक और सरवरपुर. ये गांव एक दूसरे के ठीक आमने सामने हैं और हर वक्त इन दोनों गांवों के लोगों को एक दूसरे से जरूरत पड़ती रहती है. पर परेशानी यह है कि इन दोनो गांव के बीच से पटना-कोलकाता मेनलाइन की रेलवे ट्रैक गुजरती है. इस अति व्यस्त रेलवे ट्रैक से बड़ों के साथ-साथ स्कूली बच्चों को भी गुजरना पड़ता है पर यहां पर कोई रेलवे फाटक मौजूद नहीं है.
ऐसा नहीं है कि इस रलवे क्रासिंग पर कभी गेट था ही नहीं. कई वर्ष पहले यहां गेट हुआ करता था लेकिन समय और बाढ़ के चपेट ने इस गेट को जर्जर कर दिया और आज की तारीख में यहां गेट का नामोनिशान भी नहीं है. गेट न होने के कारण हर साल इस क्रासिंग के आस-पास दर्जनों लोग दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं. दोनो गांव वालों ने रेल प्रशासन से यहां गेट लगानेकी मांग की लेकिन उनकी मांग अब तक अनसुनी होती आ रही हैं.
क्रासिंग के पास ही एक मंदिर है.
महिलाएं यहां पूजा करने के लिए जब आती हैं तो रेलवे ट्रैक की पूजा भी करती हैं. प्रशासन से नाउम्मीद महिलाएं रेलवे ट्रैक से ही अब उम्मीद रखती हैं. उनका मानना है कि रेलवे ट्रैक की पूजा करते रहें तो अनहोनी घटनाएं कम से कम होंगी. ये महिलाएं पटरियों से अपने बच्चों और परिवारजनों के सलामती की मन्नत भी मांगती हैं.
गांव वालों ने रेलवे से लेकर केंद्र और बिहार सरकार के मंत्रियों तक से यहां गेट लगवाने की गुहार लगाई है.
धरना-प्रदर्शन किए हैं, अनशन किए हैं लेकिन कोई मदद न मिलने के कारण अब उनका डर आस्था में बदल गया है.
गांव की महिलाएं जिन लोहे की पटरियों से पहले डरती थी अब उन्हीं पर फूल आदि चढ़ाकर रेलवे ट्रैक की पूजा करती है और अपने परिवार के लिए सलामती की दुआ मांगने लगी हैं.
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