मानसरोवर यात्रा – राजनीति में धर्म का क्या स्थान है ये हम सब भलीभांति जानते है । भारतीय संविधान के अनुसार कभी भी कोई किसी भी व्यक्ति के धर्म पर टिप्पणी नहीं कर सकता और ना ही धर्म का उपयोग चुनाव प्रचार के लिए किया जा सकता है हालांकि ये हम सब जानते है कि भारत की राजनीतिक पार्टियां बिना धर्म, जाति का उपयोग किए कोई भी चुनाव नहीं लड़ती है ।
जिस वजह से कई बार अगर कोई राजनेता किसी धर्म की रीतियों में आस्था भी रखता है तो कोई यकीन नहीं कर पाता । ऐसा ही कुछ इन दिनों कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के साथ भी हो रहा है । जो काम से छुट्टी लेकर मानसरोवर यात्रा पर निकले हुए है राहुल गाँधी की मानसरोवर यात्रा 12 सितंबर तक पूरी हो जाएगी ।
मानसरोवर हिंदु समुदाय के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है । लेकिन राहुल गाँधी के मानसरोवर यात्रा को लेकर सियासत गरमाई हुई है । भाजपा नेताओं का कहना है कि राहुल गाँधी की मानसरोवर यात्रा केवल दिखावा है । वही दूसरी तरफ कांग्रेस भाजपा पर ये कहकर तंज कस रही है कि भगवान सिर्फ उनके तो नहीं हो सकते । लेकिन य़हां ये सवाल जरुर उठता है कि क्या सच में राहुल गाँधी की मानसरोवर यात्रा का कोई राजनीतिक महत्व है या नहीं ? लेकिन इसे पहले ये जानना जरुरी है कि कांग्रेस राहुल गाँधी के अनुसार वो इस यात्रा पर क्यों गए
राहुल गाँधी की मानसरोवर यात्रा का कारण
दरअसल कर्नाटक चुनाव के प्रचार के दौरान राहुल गाँधी के प्लेन में खराबी आ गई थी जिस वजह से उनका प्लेन एक तरफ झुक गया था लेकिन बाद पायलट ने स्थिति को संभाला और राहुल गाँधी को सुरक्षित पहुंचाया ।
इसके बाद राहुल गाँधी कर्नाटक चुनाव के प्रचार रैली के दौरान कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने की घोषणा की । राहुल गाँधी ने कहा था कि कर्नाटक चुनाव के बाद वो मानसरोवर यात्रा पर जाएंगे । हालांकि उस वक्त भी उनकी इस बात को कर्नाटक चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा था । अब अपनी बात को पूरा करने के लिए राहुल गाँधी मानसरोवर यात्रा पर गए राहुल गाँधी ने हाल ही में मानसरोवर यात्रा से एक ट्वीट करते हुए लिखा है कि इंसान कैलाश मानसरोवर यात्रा पर तभी जाता है जब उसे बुलावा आता है और मैं खुश हूं कि मुझे ये मौका मिला । अब राहुल गाँधी के ट्वीट से ऐसा प्रतीत होता है कि उनकी आस्था की कोई सीमा नहीं है वो सच में बहुत ही धार्मिक है । लेकिन कोई कहानी इतनी सीधी भी नहीं होती, जितनी हमें प्रतीत हो होती है ।
दूसरी पार्टियां भले ही अपने फायदे के लिए राहुल गाँधी की मानसरोवर यात्रा को राजनीति से जोड़ रही हो, लेकिन यहां ये समझना भी बहुत जरुरी है कि क्या कही राहुल गाँधी की मानसरोवर यात्रा के पीछे कहीं सच में कोई राजनीति मनसा तो नहीं है ।
2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की छवि बदलने की कोशिश
रिपोर्टस के अनुसार साल 2014 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद हुए राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत की एक बड़ी वजह धार्मिक आस्था उभर कर आई थी । साथ ही भाजपा की जीत एक मंत्र ये भी रहा है कि उसने सभी चुनावी प्रचारों के दौरान कांग्रेस को हिंदू विरोधी पार्टी बताया ।
हालांकि कांग्रेस हिंदू विरोधी पार्टी है या नहीं इस पर हमें टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है । लेकिन इतना जरुर कहा जा सकता है कि भाजपा की कोशिशों ने लोगों के बीच कांग्रेस की हिंदू विरोधी होने की छवि कही ना कही बना दी । जिस वजह से एक बड़ा समुदाय का वोट बैंक कांग्रेस के हाथों से चला गया । और यही कारण है कि साल 2014 से पहले जो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी शायद ही कभी किसी मंदिर या तीर्थायात्रा पर जाते नजर आए हो वो पिछले कुछ समय में कई मंदिरों के दर्शन कर चुके है । लिहाजा उनकी मानसरोवर यात्रा को भी लोकसभा चुनावों से जोड़कर देखा जाना लाजमी है ।
कांग्रेस क्यों चाहती है अपनी छवि बदलना
राहुल गाँधी की इस यात्रा से ये सवाल भी जरुर उठता है कि आखिर कांग्रेस को अपनी छवि क्यों बदलने की जरुरत क्यों पड़ रही है जिस पार्टी में कभी महात्मा गाँधी, सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल, पंडित जवाहर लाल नेहरु, राजेंद्र प्रसाद जैसे नाम रहे हो जिन्हें हर जाति, धर्म का भरपूर साथ मिला । जिन्हें कभी अपना धर्म बताने की जरुरत नहीं पड़ी । जिन्होनें अपने धर्म का पालन भी किया और दूसरे धर्म की इज्जत भी की ।
फिर आज वही पार्टी अपनी अस्तित्व की लड़ाई क्यों लड़ रही है । क्या इसके लिए कांग्रेस पार्टी के मौजूदा नेतृत्व को जिम्मेदार माना जा सकता है ?
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