राजनीति

कहीं राहुल गांधी वहीं गलती तो नहीं कर रहे जो राजीव गांधी ने की थी?

कांग्रेस के राहुल गांधी – इस साल सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को निरस्त कर दिया।

तीन तलाक पर इस साल 11 से 18 मी तक रोजाना सुनवाई हुई ती और अगस्त के खत्म होते-होते तक इसे सुप्रीम कोर्ट ने अवैध घोषित कर दिया। इस फैसले का कुछ मुस्लिमों ने स्वागत किया तो कुछ ने इस फैसले को मुस्लिमों के खिलाफ साजिश बताई।

खैर, इतने दिनों बाद इस बात क्यों की जा रही है? क्योंकि इस एक मुस्लिमों की आधी आबादी को भाजपा के साथ खड़ा कर दिया है। जबकि देश में पहले एक अनकही सी हवा थी (जो अब भी है) कि मुस्लिम भाजपा को पसंद नहीं करते और भाजपा को भी इससे फर्क नहीं पड़ता। भाजपा शुरू से कट्टर हिंदु पार्टी रही है और वो अपनी इस छवि पर गर्व भी करती है। वहीं कांग्रेस की छवि धर्मनिरपेक्ष पार्टी की रही है और उसके साथ एक पॉजिटिव प्वाइंट भी रही है कि वो जब चाहे राष्ट्रवादी का चोला पहनकर धार्मिक भी बन सकती है।

जबकि कांग्रेस अपने इस पॉजिटिव प्वाइंट को भुनाने की जगह दिन पर दिन नई तरह की गलतियां करते हुए नजर आ रही है। हाल ही में कांग्रेस के राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बने हैं। लेकिन अध्यक्ष बनने के बाद युवाओं को मौके देने की बहस छेड़ने के बजाय उनकी पार्टी ये बहस करते हुए दिख रही है कि राहुल गांधी जनेऊधारी ब्राह्ण हैं।

अरे इससे क्या फर्क पड़ता है कि वो शिवभक्त हैं या जनेऊधारी? लेकिन ये बात ना उन्हें समझ आई ना ही रणदीप सिंह सुरजेवाला को। अब कांग्रेस के राहुल गांधी वहीं गलती कर रहे हैं जो एक जमाने में राजीव गांधी ने की थी और जिसकी भरपाई कांग्रेस अब तक कर रही है।
कैसे?

इसे ऐसे समझते हैं। शाह बानो का केस याद है? 1978 में एक 62 वर्ष की मुस्लिम महिला को उसके पति ने तलाक दे दिया था। उसके पांच बच्चे थे। शाह बानो ने गुजारे भत्ते के लिए अदालत में केस किया और अदालत ने ये माना कि शाह बानो को उसके पति से गुजारा भत्ता मिलना चाहिए। इस फैसले के खिलाफ कई मुस्लिम संस्थाओं ने आंदोलन करने की धमकी दी।

मुस्लिम संस्थाओं की तुष्टिकरण के लिए इससे राजीव गांधी ने एक कानून पास किया और अदालत के फैसले को पलट दिया। उस समय भाजपा लोकसभा में केवल दो सीटों पर थी। इस मामले को भाजपा ने जमकर उठाया। यही एक फैसला है जिसने भाजपा को राजनीति में पैर जमाने में मदद किया। उसके बाद राजीव गांधी ने हिंदुओं के तुष्टिकरण के लिए बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाया। बस ये एक फैसले ने भाजपा को राजनीति के केंद्र में ला दिया।

मतलब की इन दो मामलों से क्या साबित होती है? वहीं कि दुश्मन के मजबूत पक्ष के साथ कभी खेलना नहीं चाहिए। उल्टे उसे उकसाना चाहिए कि वो आपके मजबूत पक्ष के साथ खेले।

पता नहीं कांग्रेस को ये बात समझ आती की नहीं। अगर आती तो कांग्रेस इतने उत्साहित तरीके राहुल गांधी के जनेऊधारी ब्राह्ण होने की बात नहीं उठाती। जब भाजपा ने उसके धार्मिक पहचान पर हमला किया तो कांग्रेस को ये कहते हुए राजनीति की दिशा बदलनी चाहिए थी कि आस्था को एक नीजि चीज मानते हैं। इसलिए अन्य लोगों की तरह वे हिंदुत्व को दिखावे की चीज नहीं मानते। इसलिए राहुल गांधी के धार्मिक पहचान को राजनीति का मुद्दा बनाना भाजपा के डर और हार को दर्शाता है। जबकि भाजपा को अभी रोजगार, वृद्धि और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाना चाहिए।

लेकिन नहीं कांग्रेस तो राहुल गांधी को जनेभधारी ब्राह्ण और शिवभक्त बताने लगी है। जबकि जनता को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कांग्रेस के राहुल गांधी की धार्मिक पहचान क्या है? और जनता के जिस हिस्से को इससे फर्क पड़ता भी है उसके लिए कांग्रेस, भाजपा के सामने कट्टर हिंदु के मामले में कहीं नहीं टिकती।

इसलिए अच्छा होगा कि राहुल गांधी वो गलती ना करें जो कभी राजीव गांधी ने की थी।

Gayatree Verma

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Gayatree Verma

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