राहुल गाँधी और अखिलेश यादव – राजनीति में कोई किसका सगा नहीं होता ।
अगर हाथ मिले तो आप “जैसा कोई नहीं” और हाथ छूट जाए तो आप “जैसा कोई हो ही नहीं सकता “ । शब्द वहीं लेकिन मतलब बदल जाते हैं । और अगर बात करें भारत की राजनीति की तो । तो यहां की राजनीति की कहानियां किसी हिंदी फिल्म से कम नहीं है जहां कब कौन हीरो बन जाए और कब कौन विलेन कुछ पता ही नहीं चलता ।
वैसे पिछले साल यूपी चुनाव से पहले भी बहुत सी राजनीति फिल्मे हिट हुई थी। जिनमें से चाचा भतीजा और दो शहजादे थी । अब समझ ही गए होंगे कि मेरा इशारा किस तरफ हैं ।
राहुल गाँधी और अखिलेश यादव की तरफ –
यूपी के पूर्व अखिलेश यादव अपने खुद के घर इतना ड्रामा देखने को मिला कि कुछ लोगों ने तो इसे तुनाव जीतने के लिए लिखी स्क्रिप्ड तक कह दिया । चुनाव से पहले सपा जहां अपने पार्टी के अंदर के मतभेद से परेशान थी । वहीं दूसरी तरफ 2014 में मिली बुरी हार के बाद कांग्रेस पार्टी के हाथ को किसी के सहारे की जरुरत थी । क्योंकि भाजपा जहां अपनी जीत की ओर बड़ रही थी.
वहीं कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों को अपनी हार साफ नजर आने लगी थी । ऐसे में भाजपा को हराने के लिए सपा और कांग्रेस शहजादों यानी अखिलेश यादव और राहुल गाँधी ने एक दूसरे का हाथ थामा और हाथ को साइकिल का सहारा दिया ।
अब रोड शो से लेकर रैलियों तक हर जगह राहुल गाँधी और अखिलेश यादव साथ नजर आने लगे । लेकिन इन दोनों शहजादों का साथ भाजपा की मोदी पावर के आगे फेल हो गया । चुनाव के बाद इस बात को खुद सपा के प्रवक्ताओं ने भी स्वीकारा था । हालांकि अखिलेश यादव ने इस पर खुलकर कभी कुछ नहीं कहा । जिस वजह से कयास लगाई जा रही थी कि हो सकता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर इन शहजादों की दोस्ती देखने को मिले ।
लेकिन हाल ही में दिए अपने इंटरव्यू में अखिलेश यादव ने साफ कर दिया की वो अब कभी कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेंगे ।
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि “ 2019 में वो कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेगे । अखिलेश यादव के अनुसार कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने से उनकी पार्टी को विधआनसभा चुनाव में काफी नुकसान उठाना पड़ा था ।”
अखिलेश ने ये भी कहा कि राहुल गाँधी के साथ हमारे अच्छए संबंध है लेकिन अभी वो अपनी लोकसथा के चुनावों के लिए अपनी पार्टी को मजबूत बनाने में ध्यान देना चाहते हैं ।और अब हम कोई गंठबंधन नहीं करना चाहते । इसलिए सीटों पर बातचीत करना सिर्फ वक्त की बर्बादी है ।
आपको बता दें राहुल गाँधी और अखिलेश यादव ने मिलकर 2017 के यूपी चुनाव में कुल 403 सीटों पर चुनाव लड़ा था । और 2017 के यूपी चुनाव में 325 सीटें बीजेपी ने जीती थी। जबकि 403 सीटों में से केवल 47 सीटें सपा और 7 सीटें कांग्रेस ने जीती थी । यानी की अगर सपा ने कांग्रेस से गठबंधन नहीं किया होता तो शायद सपा की हालत फिर भी कुछ बेहतर हो सकती थी ।
खैर ये राजनीति हैं या कब कौन अपना और कौन पराया हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता ।
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