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रानी ने जब राजा को अपना सर काट कर युद्ध भूमि में भिजवाया!

सैनांण पड्यो हथलेवे रो,हिन्लू माथै में दमकै ही |
रखडी फैरा री आण लियां गमगमाट करती गमकै ही |
कांगण-डोरों पूंछे माही, चुडलो सुहाग ले सुघडाई |
चुन्दडी रो रंग न छुट्यो हो, था बंध्या रह्या बिछिया थांई |

इस कविता को जब आप पूरा समझने की कोशिश करेंगे तो आपको यहाँ एक बड़ी रोचक कहानी नजर आएगी.

तब देश पर इस्लामिक कब्ज़ा हो रखा था. राजस्थान पर राजपूतों का राज चल रहा था. लेकिन तब मुस्लिम शासकों की नजर राजस्थान के खजानों और राजतख़्त पर होने लगी थी. रावत चुण्डावत (राज सिंह) नाम के राजा से उसका सिंहासन छीनने के लिए औरंगजेब की सेना आ चुकी थी.

राजा का मोह रानी के प्रति…

तब राजा रावत चुण्डावत की शादी को कुछ ही दिन हुए थे और वह रानी के प्रति अपना मोह नहीं छोड़ पा रहा था.

यह रानी बूंदी के हाडा शासक की बेटी थी और उदयपुर (मेवाड़) के सलुम्बर ठिकाने के रावत चुण्डावत की रानी थी. जिनकी शादी का गठजोड़ा खुलने से पहले ही उसके पति रावत चुण्डावत को मेवाड़ के महाराणा राज सिंह का औरंगजेब के खिलाफ मेवाड़ की रक्षार्थ युद्ध का फरमान मिला.

नई-नई शादी होने और अपनी रूपवती पत्नी को छोड़ कर रावत चुण्डावत का तुंरत युद्ध में जाने का मन नही हो रहा था. यह बात रानी को पता लगते ही उसने तुंरत रावत जी को मेवाड़ की रक्षार्थ जाने व वीरता पूर्वक युद्ध करने का आग्रह किया.

युद्ध में जाते रावत चुण्डावत पत्नी मोह नही त्याग पा रहे थे सो युद्ध में जाते समय उन्होंने अपने सेवक को रानी के रणवास में भेज रानी की कोई निशानी लाने को कहा. सेवक के निशानी मांगने पर रानी ने यह सोच कर कि कहीं उसके पति पत्नीमोह में युद्ध से विमुख न हो जाए या वीरता नही प्रदर्शित कर पाए. इसी आशंका के चलते इस वीर रानी ने अपना शीश काट कर ही निशानी के तौर पर भेज दिया ताकि उसका पति अब उसका मोह त्याग निर्भय होकर अपनी मातृभूमि के लिए युद्ध कर सके और रावत चुण्डावत ने अपनी पत्नी का कटा शीश गले में लटका औरंगजेब की सेना के साथ भयंकर युद्ध किया और वीरता पूर्वक लड़ते हुए अपनी मातृभूमि के लिए शहीद हो गया.

इतिहास में दफन हो गयी यह कहानी.

कहते हैं कि राजा को जब रानी का कटा हुआ सर मिला तो वह इस को अपनी ही गलती समझता है. अगर वह रानी की निशानी नहीं मांगता तो शायद ऐसा नहीं होता. लेकिन उसके बाद इतिहास में लिखा गया है कि राजा एक जोरदार लड़ाई लड़ा था.

लेकिन इस कहानी को इतिहास में इतना नीचे दबा दिया गया है कि आसानी से खोजने पर नहीं मिल सकती है.

Chandra Kant S

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Chandra Kant S

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