पुष्पवती और गंधर्व माल्यवान – पौराणिक समय की अनेक कथाओं का वर्णन शास्त्रों में मिल जाएगा।
आज हम आपको एक पौराणिक कथा के बारे में ही बताने जा रहे हैं जोकि देवराज इंद्र से जुड़ी है। देवलोक की इस रोचक कथा की शुरुआत इंद्र की सभा से हुई थी और मिलन के लिए दो प्रेमियों को भयंकर श्राप से गुज़रना पड़ा था।
इस प्रेम कथा में नायक माल्यवान हैं और नायिका पुष्पवती हैं। इंद्र की सभा में माल्यवान गायन किया करते थे और पुष्पवती एक गंधर्व की कन्या थी जो सभा में नृत्य किया करती थी। एक समय की बात है जब इन दोनों को ही इंद्र की सभा में एकसाथ अपनी-अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए बुलाया गया था।
पुष्पवती और गंधर्व माल्यवान अपनी-अपनी कला से सभी का मन मोह रहे थे लेकिन कामदेव की ऐसी लीला हुई कि सभा में मौजूद सभासदों का मन मोहते-मोहते दोनों एक-दूसरे की कला और रूप से खुद ही मोहित होने लगे। परिणाम ये हुआ कि दोनों के सुर ताल अचानक से बिगड़ने लग गए।
देवराज इंद्र ने पुष्पवती और गंधर्व माल्यवान की भाव-भंगिमा को देखकर तुरंत जान लिया कि वो दोनों एक-दूसरे के प्रति मोहित हो रहे हैं और अब उनका ध्यान कला से हट रहा है। क्रोधित होकर इंद्र ने दोनों को पिशाच योनि में जाने का श्राप दे दिया। श्राप के कारण दोनों स्वर्ग से बाहर होकर पिशाच बनकर हिमालय पर वास करने लगे।
पुष्पवती और गंधर्व माल्यवान एकसाथ हिमालय पर रह कर अनेक तरह के कष्टों को सहन कर रहे थे। एक दिन माघ के महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि आई और इस दिन संयोग से दोनों को कहीं कुछ भोजन नहीं मिला। रात को दोनों ही भूखे रह गए। इस पर सर्दी के मौसम में दोनों ठिठुर रहे थे और ठंड की वजह से ही दोनों की मृत्यु हो गई।
मृत्यु के पश्चात् दोनों वापिस स्वर्ग में पहुंच गए और वहां इन दोनों को देखकर देवराज इंद्र बहुत हैरान हुए। उन्होंने दोनों से पूछा कि श्राप के कारण तो तुम दोनों पिशाच योनि में चले गए थे फिर तुम्हें वापिस कैसे मुक्ति मिली। तब उन दोनों ने बताया कि अनजाने में ही उनसे जया एकादशी का व्रत हो गया था जिससे भूत, पिशाच की योनि से मुक्ति दिलवाने वाला कहा गया है।
पुष्पवती और गंधर्व माल्यवान ने बताया कि भगवान विष्णु की कृपा से उन्हें फिर से गंधर्व बना दिया गया। ये सब सुनकर इंद्र ने कहा कि जब भगवान विष्णु ने ही तुम्हें क्षमा दे दी है तो मैं कौन होता हूं दंड देने वाला। दोनों प्रेमियों को देवराज इंद्र ने स्वर्ग में साथ रहने का वरदान दिया।
तो कुछ इस तरह इस पौराणिक प्रेम कथा का सुखद अंत हुआ। देखा जाए तो प्राचीन समय में लोग बड़े ईमानदार और सत्य वचन बोलने वाले हुआ करते थे और इसी वजह से उनका श्राप फलित हो जाया करता था।
आज के ज़माने में सभी ने अपने जीवन में कोई ना कोई पाप किया ही होता है और इसी वजह से अब ये श्राप वाली फिलॉस्फी नहीं चलती है। अब आप ऐसे ही गुस्से में आकर किसी को श्राप नहीं दे सकते हैं।
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