एक किस्सा सुनोगे
कल रात बहुत तेज़ बारिश थी,और वो अपनी बाइक पर चला जा रहा था,सिग्नल के पास रुका तो देखा एक लड़की हाथ दिखा कर रुकने को बोल रही है. वो रुका और लड़की को देखा, लड़की काफी परेशान दिख रही थी तेज़ बारिश में शायद उसे कोई सवारी नहीं मिल रही थी, सडक पर न ऑटो था ना कोई टैक्सी.
उसने एक बार उस लड़की की तरफ देखा और अपनी मोटर साइकिल के स्पीड बढ़ाई और निकल गया.
क्या हुआ गाली देने का मन कर रहा है ना उस लड़के को, कैसे एक लड़की को परेशानी में छोड़ कर भाग गया.
चलिए अब एक और किस्सा सुनिए
ये वही लड़की है जो उस दिन बारिश में मदद मांग रही थी, ये किस्सा उस दिन से कुछ रोज़ पहले का है एक लड़का रात को करीब 10 बजे थक हार कर अपने दफ्तर से आ रहा था. ट्रेन खचाखच भरी हुयी थी और किस्मत से उसे एक सीट मिल गयी. ये लड़की अगले स्टेशन पर ट्रेन में चढ़ी और लड़के को इस तरह देखा कि जैसे सीट पर बैठ कर उसने गुनाह कर दिया है. लड़की ने लड़के को सुनाते हुए कहा कि “एक लड़की कड़ी है और लड़के को देखो कैसे पसर कर बैठा है, इंडिया में तो लड़की की कोई इज्ज़त ही नहीं है ”
बेचारा लड़का ये सुनकर जवाब दे बैठा “मैडम अगर मैं बैठा हूँ तो इसमें गलत क्या है ? ये कोई आरक्षित सीट नहीं और मैं भी पूरे दिन काम करके थकाहारा हूँ ऐसे में सीट पर बैठना कोई गुनाह तो नहीं और आप भी स्वस्थ दिख रही है तो मुझे नहीं लगता कि आप आधा घंटा बैठेगी नहीं तो कुछ हो जायेगा, वैसे भी जब समानता की बात करती है तो उसे जीवन में भी तो उतारो सिर्फ कहने के लिए समानता की बात और अपने फायदे के लिए अबला नारी बन जाती हो ”
बस लड़के का ये कहना था कि लड़की तुनक पड़ी “मुझे लेक्चर देता है रुक अभी बताती हूँ तुझे ” ये कहकर उसने धडाधड तीन चार फोटो खिंची और उसके बाद लम्बे चौड़े निबंध लिख कर सोशल मीडिया पर डाल दी. ये है छद्म नारीवाद का उदहारण.
नतीजा लड़का रातोंरात खलनायक बन गया, किसी ने नहीं पपूछा कि असली बात है क्या? बस सबने उसे तरह तरह के विशेषणों से नवाज़ दिया. क्या सोशल मीडिया, क्या आम जनता और क्या समाचारपत्र और चैनल.
सब के सब उस लड़के के पीछे गए, जीना हराम हो गया उसका.
इन दोनों किस्सों से क्या समझ आता है? आजकल ये एक बहुत आम बात हो गयी है कि दो पल की प्रसिद्धि के लिए लोग तरह तरह के हथकंडे अपनाते है. नारी सम्मान और नारिवादिता के नाम पर उनका एकमात्र लक्ष्य विपरीत लिंग को लक्ष्य करके उसे गलत साबित करना ही रह गया है. इस प्रकार के लोग नारीवादी नहीं ये लोग तो बस छद्म नारीवाद की बढ़ावा देने वाले होते है. जो नारीवाद के नाम से अपना उल्लू सीधा करते है. और सबसे बुरी बात ये है कि इस प्रकार के मामलों में लोग कोर्ट कचहरी पुलिस कानून से पहले ही फैसला सुना देते है.
पिछले कुछ दिनों में प्रसिद्धि के लिए खुद को शिकार दिखाकर लोगों की सहानुभूति और ट्विटर पर फोलोवेर्स बटोरने का काम जोर शोर से चल रहा है. रोहतक बहनें,जसलीन कौर, यहाँ तक की आम आदमी पार्टी की विधायक भी इस तरह के काम कर चुकी है. देर सवेर सच का पता चल ही जाता है पर तब तक ये लोग प्रसिद्धि और सुर्खियाँ बटोर चुके होते है.
इन सब घटनों का सबसे बुरा असर होता है पुरुष और महिलाओं के बीच सम्बन्ध को. जहाँ हम लोग प्रयास कर रहे है कि दोनों समान रूप से एक दुसरे के पूरक बनकर रहे वहीँ इस प्रकार की घटनाएँ दोनों लिंगों के बीच की खायी को और बढ़ा देती है और आपसी घृणा पैदा करती है. इस वजह से बहुत बार ज़रूरतमंद की सहायता भी नहीं करते ये सोचकर कि कहीं ये भी कोई हथकंडा तो नहीं.
आप ही बताइए क्या आप किसी की मदद करेंगे जब आपके मन के किसी कोने में ये बात घर कर गयी हो कि कहीं शायद मदद करने पर आपका ही बुरा हो जाये….
प्रसिद्धि के लिए पागल चंद महिलाओं और पुरुषों की वजह से पूरा माहौल ख़राब हो रहा है. अब के कुछ किस्से देखने पर तो ये लगता है कि आप कुछ सही करें या गलत वो तो दूर आपको बिना कुछ किये भी बलात्कारी से लेकर वहशी दरिंदा तक सब बना दिया जा सकता है. सिर्फ सोशल मीडिया पर चार लाइन लिखकर.
ये सब हथकंडे और ज्यादा फैले इससे पहले ही हमें इन पर रोकथाम लगानी चाहिए. इन सबको रोकने के लिए सबसे पहले हमें आँख बंद कर भरोसा करना बंद करना होगा और दोनों तरफ की कहानी जानने के बाद ही कुछ निर्णय लेना चाहिए. सोशल मीडिया और समाचारपत्र एवं समाचार चैनल की जिम्मेदारी ये है की वो खुद ही जज बनना बंद करे और कोर्ट,पुलिस के निर्णय से पहले ही किसी को भी जल्दबाजी में अपराधी घोषित ना करे. जसलीन कौर मामले ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि कैसे एक पक्ष की बात सुनने पर हम कभी कभी गलत को भी सही मान कर किसी को अपराधी घोषित करने में देर नहीं लगाते.
हमें एक ऐसे स्वस्थ समाज का निर्माण करना है जहाँ मर्द और औरत एक दुसरे के पूरक हो, ना कि ऐसा समाज जहाँ पर ये कहा जाये कि आपका सबसे बड़ा अपराध ये है कि आप एक पुरुष है
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