मणिकर्णिका घाट श्मशान काशी में स्थित है जो की दुनिया भर में सीधा मोक्ष प्राप्त करने के लिए मशहूर है.
यहाँ की श्मशान घाट पर जो भी चिता जलाई जाती है वह सीधे परलोक जाती है. इस श्मशान की सबसे खास बात ये है की यहाँ की चिता कभी ठंडी नहीं पड़ती और ना ही यहाँ लाशों और चिता का आना थमता है.
आपको जानकर हैरानी होगी की साल में एक दिन इस मणिकर्णिका घाट श्मशान पर जश्न की रात आती है. यदि आपको यहाँ घुंघरू बजने और ढोलक की थाप पर ठमुरी का नाच दिखाई दे तो समझ लीजिए की यह वही रात है जब श्मशान में जश्न मनाया जाएगा.
तो आइए जानते हैं आखिर क्यों यहाँ मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओ के बीच वैश्याए नाचती व गाती हैं.
बहुत ही शुभ अफसर पर आती है ये रात
ये रात चैत्र नवरात्रि अष्टमी को आती है जो की 350 साल पुरानी एक परंपरा है. इस परंपरा के अनुसार श्मशान घाट पर वैश्याए पूरी रात नाचती गाती हैं. ये एक ऐसा मंजर होता है जब काशी का मणिकर्णिका घाट महफिल और चिता दोनों का ही लुफ्त उठाती है. देखने वाले लोगों को ये रात डरने से ज्यादा हैरान कर देती है.
इसके पीछे छिपा है ये राज
चिताओ के चारो ओर नाचती तवायफ ना तो जबरन लाई जाती हैं ना ही इन्हें पैसे दे कर बुलाया जाता है. तो फिर आखिर क्या राज है जो ये तवायफ फ्री में महफिल जमाने आ जाती हैं? दरअसल जिस तरह यहाँ लाशों को मोक्ष प्राप्त करने के लिए जलाए जाता है ठीक वैसे ही ये तवायफ यहाँ जीते जी मोक्ष प्राप्त करने आती हैं. मान्यता है कि अगर ये तवायफ सारी रात जी भर के नाचेंगी तो उन्हें अगले जन्म इस कलंक से छुटकारा मिल जाएगा.
यहाँ से शुरु हुई थी ये परंपरा
सैकड़ों साल पुरानी ये परंपरा काशी में यू ही नहीं शुरू हो गई बल्कि इसकी मान्यता कई सौ साल पुरानी है. इसकी शुरुआत हुई थी राजा मान सिंह के दरबार से, राजा ने अपने दरबार में नर्तकियो और कलाकारो को बुलाया था लेकिन जहा उन्हें जौहर करना था वह मंदिर श्मशान के बीचों बीच मौजूद था, जिसके कारण तब की चोटी के तमाम कलाकारों ने यहाँ आकर जौहर करने से इनकार कर दिया था.
इस कार्यक्रम का एलान पूरे शहर में करवा दिया गया था जिस कारण राजा अपनी बात से पीछे नहीं हट सकते थे. लेकिन अभी-भी सवाल वही का वही था की आखिर अब श्मशान के बीचों बीच नाच और संगीत करवाया जाए तो किस से?
समय बीता चला जा रहा था और किसी को कोई सुझाव समझ नहीं आ रहा था. इसी जल्द बाजी में किसी ने उपाय दिया की क्यों ना शहर की बदनाम तवायफो को बुलाकर यहाँ उनसे जश्न करवाया जाए. इतनी मुश्किल में राजा मान सिंह को कुछ और समझ नहीं आया और उन्होंने न्योता भेजने को कहा. तवायफो ने भी इसे स्वीकार लिया और महाश्मशान के बीच डांस करने पहुंच गई. बस तभी से ये परंपरा चली आ रही है. कलकत्ता, बिहार, मऊ, दिल्ली, मुंबई तक से आती हैं यहाँ तवाफय मोक्ष प्राप्त करने.
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