भारत पृथ्वीराज चौहन जैसे वीरों की धरती हैं।
भारत मां ने बहुत से सुरवीरों को जन्म दिया जिन्होंने समय पड़ने पर देश के लिए अपनी प्राण तक न्योछावर कर दिए। आज हम जिस योद्धा की बात कर रहे है वो आखरी हिंदु योद्धा था। इनके बारे में कहा जात है कि इन्होंने अपने हाथ से शेर का जबड़ा तक फाड़ डाला था।
इतिहास के इस यौद्धा के वीरता को हमेशा ही याद किया जाएगा।
इस योद्धा को पृथ्वीराज चौहन के नाम से जाना जाता हैं। 1149 में अजमेर में जन्में पृथ्वीराज चौहन आखरी हिंदु योद्धा है। पृथ्वीराज चौहान ऐसे वीर थे जिसे हराना आसान काम नहीं थी। मौहम्मद गौरी ने उन्हें 16 बार हराने की कोशिश की लेकिन हर बार हार का मूंह देखना पड़ा। एक गद्दार के कारण गौरी ने 17वीं पार में पृथ्वीराज चौहन को हरा दिया।
पृथ्वी राज तब भी नहीं हारते लेकिन उन्होंने अपने युद्ध के उसूलों से समझौता नहीं किया। युद्ध को लेकर इस हिंदू योद्धा के अपने नियम थे। यह कभी अंधेरे में वार नहीं करते थे। इसी का फायदा उठाकर पृथ्वी राज चौहान को गौरी ने हराया।
पृथ्वीराज चौहन के पास हाथियों की एक विशाल सेना थी जिसका मुकाबला उस समय के किसी योद्धा में करने की हिम्मत नहीं थी।
पृथ्वी राज बचपन से ही सूरवीर थे। उनके बहादुरी के चर्चे पूरी दुनिया में फैले हुए थे। पृथ्वी राज चौहान कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी संयोगिता को अपना दिल दे चुके थे। जयचंद को यह रिश्ता मंजूर नहीं था इसलिए उन्होंने संयोगिता की शादी करने का फैसला किया। पृथ्वी राज ने संयोगिता को एक स्वंवर से उठा लिया और जयचंद कुछ न कर सका।
संयोगिता के प्यार का खामियाजा पृथ्वीराज चौहन को चुकाना पड़ा। अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए जयचंद ने मौहम्मद गौरी के साथ हाथ मिला लिया और उसने युद्ध में मौहम्मद गौरी का साथ दिया और तब जाकर पृथ्वीराज को गौरी हरा पाया।
अगर जयचंद ने हिंदुओं के साथ गद्दारी नहीं की होती और गौरी ने धोखे से वार नहीं किया होता तो पृथ्वीराज चौहन को हराना उसके बस की बात नहीं थी।
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