खुद को क्या गामा पहलवान समझता है…
बड़ा आया गामा पहलवान..
ये सब बातें आपे भी अपने जीवन में कभी ना कभी किसी से सुनी होगी जब आप कुछ ज्यादा ही हीरो बन रहे थे.
क्या आप जानते है जिस गामा पहलवान के नाम से मज़ाक बनाया जाता है वो कोई ऐसा वैसा किस्से कहानी वाला नाम नहीं है. गामा पहलवान तो एक ऐसे सच्चाई है जिस पर हम सबको गर्व है.
अभी फिल्म अभिनेता जॉन अब्राहम ने गामा पहलवान के जीवन से आम लोगों को रूबरू करवाने के लिए गामा की ज़िन्दगी पर फिल्म बनाने का फैसला किया है.
आइये आज हम आपको बताते है पंजाब के शेर गामा पहलवान से जुडी कुछ बातें जो आपको आश्चर्यचकित कर देगी.
गामा पहलवान का बचपन में नाम गुलाम था और उनका जन्म पंजाब के अमृतसर में हुआ था. गुलाम बच्चे ही थे जब उनके पिता की मौत हो गयी थी. गामा के पिता भी पहलवान थे, उनकी मृत्यु के बाद गामा की जिम्मेदारी दतिया के महाराज ने ली. दतिया में रहकर गामा ने पहलवानी के गुर सीखे.
जैसे जैसे गामा बड़े होते गए वैसे वैसे उनकी पहलवानी और हुनर के किस्से फैलते रहे. जब गामा मात्र 17 वर्ष के थे तो उनका मुकाबला देश के सबसे प्रसिद्द पहलवान रुस्तम ए हिन्द की पदवी से सम्मानित रहीम बक्ष से हुआ.
रहीम दिखने में किसी बड़े दैत्य से कम नहीं थे करीब 7 फीट लम्बाई के रहीम के सामने मात्र 5 फीट 7 इंच के गामा किसी बच्चे की तरह लग रहे थे.
दोनों में मुकाबला शुरू हुआ जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था. रुस्तम ए हिन्द पर गामा 21 नहीं तो उनसे 19 भी नहीं थे. अंत में मुकाबला बराबरी का घोषित किया गया.
17 साल की उम्र में रुस्तम ए हिन्द को पसीने छुडवा देने वाले गामा का नाम पूरे देश में प्रसिद्द हो गया. इस कुश्ती के बाद गामा ने देश के करीब हर बड़े पहलवान के साथ कुश्ती की और कभी भी नहीं हारे.
1907 तक अगले 9 वर्षों में गामा देश के सबसे प्रसिद्द पहलवान बन गए, गामा का नाम शक्ति का पर्याय बन गया था.
1910 में एक बार फिर रहीम और गामा का सामना हुआ लेकिन नतीजा इस बार भी ड्रा ही हुआ. भारत में रुस्तम ए हिन्द बनने के बाद गामा ने विदेशों का रुख किया लेकिन लम्बाई कम होने की वजह से वहां गामा को कुश्ती में हिस्सा नहीं लेने दिया गया.
लेकिन गामा ने हार नहीं मानी और उन्होंने खुद अलग अलग विजेताओं को चैलेंज देना शुरू कर दिया.
गामा की चुनौती स्वीकर की स्टैनिसलॉस जबिश्को ने जो उस समय दुनिय के एक नम्बर के पहलवान थे. स्टैनिसलॉस जबिश्को के साथ गामा की कुश्ती ढाई घंटे से भी अधिक चली लेकिन दोनों में से कोई भी पहलवान दुसरे को चित नहीं कर सका.
10 दिन बाद फिर से मैच घोषित किया गया लेकिन स्टैनिसलॉस जबिश्को उस मैच में नहीं आये और इस तरह गामा भारत से पहले विश्व हैवीवेट चैंपियन बने.
इसके बाद गामा फिर भारत आ गए यहाँ आने के बाद उनका मुकाबला रहीम बक्श से तीसरी बार हुआ और इस बार गामा ने रहीम को धुल चटा दी.
1927 में गामा ने अपनी आखिरी कुश्ती लड़ी और उसे जीतकर कुश्ती से संन्यास ले लिया.
आज़ादी के समय भारत के बंटवारे के समय गामा पाकिस्तान चले गए और अपनी मृत्युपर्यन्त वो वहीँ रहे. 1963 में बीमारी से जूझते हुए गामा की मौत हो गयी थी.
आज भी गामा का रिकॉर्ड कोई नहीं तोड़ पाया है. अपने पूरे जीवन में गामा एक भी मुकाबला नहीं हारे थे.
अपने 30 साल से लम्बे पहलवानी कैरियर में किसी ने न हारना अपने आप में एक आश्चर्यचकित कर देने वाली उपलब्धि है.
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