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प्रेमचंद की ये 10 रचनायें जो आज के समाज को दिखाती हैं वास्तविकता का चेहरा.!

प्रेमचंद की रचनायें – “हिंदी साहित्य” जैसे सुन्दर शब्द से तो हम सभी लोग परिचित हैं, और हों भी क्यों ना। आज हम जो भी है, जितनी भी तरक्की हमने की है उसका श्रेय हिंदी को ही जाता है।

आपने अक्सर बड़े-बड़े राइटरों के मुंह से सुना होगा और देखा भी होगा कि आज कल रिक्रिएशन का जमाना चल रहा है।  और ये रिक्रिएशन सिर्फ किस्से, कहानियों में ही नहीं बल्कि हमारे डेली रूटीन में भी है।

जैसे कि हम जानते हैं अब सिनेमा को भी साहित्य का हिस्सा माना जाने लगा है। कहानी को फिल्म की अनिवार्य कड़ी के रूप में देखा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस सोच और तरीके को आज-कल के राइटर फॉलो करते है, वह सोच तो कई दशक पहले ही आज से भी अधिक उन्नत रूप में विकसित हो चुकी है। ऐसे में एक प्रसिद्द कथन याद आता है कि अगर किसी चीज को नए तरीके से कहना चाहते हो तो कहने का अंदाज़-ए- बयाँ बदल दो और आज के अधिकतर सफल राइटर इसी कथन को फॉलो करते हुए अपनी मंजिल तक पहुँचते हैं।

खैर आज के इस आर्टिकल में हम उस लीजेंड कहानीकार प्रेमचंद और प्रेमचंद की रचनायें, जिन्हें हम आज के दौर में अलग-अलग तरीके से फिल्म के रूप में देखते हैं।

आज हम बताने जा रहे हैं, हिंदी के उस बेटे के बारे में, जिसे “कलम का सिपाही” कह कर सम्मान दिया जाता है। जी हाँ हम बात करने जा रहे हैं, उपन्यास सम्राट प्रेमचंद की।

प्रेमचंद ने 1907 ने अपने जीवन के तीस वर्षो (1907 -36) के दौरान करीब 300 से अधिक कहानी लिखी, जिन्हें मानसरोवर के 8 खण्डों में संकलित किया गया है।अगर प्रेमचंद की रचनायें पढ़े तो कहानी की रूप-रेखा और वैचारिक दृष्टि के आधार पर इनकी कहानियों को दो पार्ट में बांटा जा सकता है।

  1. आदर्शवाद की तरफ झुकी यथार्थ कहानी – ऐसी कहानियाँ जो घोर गाँधीवादी विचारों से मिलती है, आदर्शवादी कहानियाँ कहलाती है।मतलब कहानी के अंत में किसी करैक्टर का ह्रदय परिवर्तन हो जाना जैसी घटनाएं देखने को मिलती है।

जैसे- पञ्च परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढी काकी, मुक्ति पथ इत्यादि

  1. यथार्थवादी कहानियाँ: प्रेमचंद की इन कहानियों में आदर्शवाद गायब होने लगता है। अगर दो शब्दों में कहें तो गाँधी के विचारों से उनका मोह भंग हो जाता है। प्रेमचंद को समझ में आ जाता है, कि ह्रदय परिवर्तन जैसी घटनाएं सिर्फ सुनने में अच्छी लगती है, वास्तविकता में नहीं। और इसलिए अपने आखिरी पड़ाव में प्रेमचंद यथार्थ पर लिखना शुरू करते हैं। यहाँ गाँधी के विचार नहीं बल्कि विदेशी दार्शनिक कार्ल मार्क्स के विचार प्रेम चन्द्र की कहानी की शोभा बनते हैं।

इसलिए इस दौर में “अलग्योझा, ईदगाह, सद् गति, शतरंज के खिलाड़ी, पूस की रात, कफ़न. जैसी सच्ची यथार्थ कहानियाँ भी लिखते हैं। इसके साथ ही अपने उपन्यास  गौदान, कर्मभूमि, कायाकल्प, के माध्यम से समाज की मानसिकता को दिखाते हैं.

प्रेमचंद की रचनायें – प्रेमचंद का आदर्शवाद से यथार्थवाद तक का सफ़र उस समय की सामाजिक गतिविधियों की देन थी। प्रेमचंद समझते थे कि गांधीजी की नीतियों से देश में ब्रिटिश राज्य ख़त्म होगा, इसलिए प्रेमचंद का शुरुआती साहित्य गाँधी के समर्थन में रहा, लेकिन जब प्रेम चन्द्र को अहसास हुआ कि स्वतंत्रता सिर्फ मार्क्सवादी विचारों से आएगी तब प्रेमचंद ने यथार्थ लिखना शुरू किया। इस तरह प्रेमचंद की रचनायें साहित्य को शून्य से शिखर तक पहुंचाने में प्रेमचन्द का बहुत बड़ा योगदान रहा। वह एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने हिंदी साहित्य की कर्मभूमि ही नहीं बदली बल्कि उसका काया कल्प भी कर दिया.

Kuldeep Dwivedi

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