पब्लिक स्पीकिंग – हममें से हर कोई चाहता है कि जब वो बोले तो हर कोई सुने.
लेकिन जब सार्वजनिक मंच पर बोलने की बारी आती है तो ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है, पसीना आने लगता है और हमारे हाथ-पैर कांपने लगते हैं. चाहे आपको अपने कॉलेज में क्लास प्रेजेंटेशन देना हो या संस्था में बतौर टीम लीडर या फिर आंत्रप्रेन्योर बनना हो, तब आपका बिना बोले काम नहीं चल पाएगा.
इसीलिए हमें स्कूल-कॉलेजों में मिले मौकों का भरपूर इस्तेमाल करना चाहिए और ऐसे बोलने की आदत डालनी चाहिए कि हर कोई आपको बिना सुने रह न पाए .
पब्लिक स्पीकिंग में सबसे पहली बात जो लोगों का अपनी ओर ध्यान आकर्षित करती है वो है विषय संबंधी जानकारी व तथ्यों का मज़बूत होना. इसी के साथ अगर आप सीधे-साधे अंदाज़ में भी अपनी बात रखेंगे तो तारीफ़ मिलेगी. सुनने वाले कौन हैं इस बात से भी कंटेंट के क्रम में बदलाव करना होता है. ध्यान रहे जब आप किसी अनुभवी शख्स से बात कर रहें हैं तो सीधे विषय के तकनीकी पहलुओं पर बात कर सकते है. वहीं, अगर आप आम लोगों से कोई जानकारी साझा करना चाहते हैं तो आपको विषय की बारीकियों को समझकर ही तकनीकी पहलुओं पर पहुंचना चाहिए. अपनी बात को कम शब्दों में ही रखें जिससे आपकी बात लोगों को रुचिकर लगे.
पब्लिक स्पीकिंग में जब विषय चुनने की बारी आती है तो हम अमूमन कठिन विषयों को चुन लेते हैं जो हम दूसरों को ठीक से समझा भी नहीं पाते.
इसीलिए पब्लिक स्पीकिंग – सार्वजनिक मंच पर बोलने से पहले हमें अपने विषय पर जमकर पकड़ बना लेनी चाहिए. कहने का आशय ये है कि विषय व आपके व्यक्तित्व में परिपक्वता दिखनी चाहिए. वहीं, देखा गया है कि अक्सर लोग बोलते-बोलते अपने विषय से भटक जाते हैं जिससे श्रोताओं की रूचि ख़त्म हो जाती है. इसी तरह कई बार सवाल कुछ पूछा जाता है और व्यक्ति जवाब किसी और संदर्भ में दे देता है इसलिए भी व्यक्ति का लोगों से संवाद टूट जाता है.
प्रतियोगिता में बोलने की बात हो या फिर अपनी क्लास में प्रेजेंटेशन देने की बात, सबसे बड़ी चिंता हार मिलने की होती है. एक हार से युवा खुदको नाकाबिल समझ लेते हैं जबकि हर बार प्रयास करते रहना ही सफलता की निशानी है. इसी से आत्मविश्वास में भी बढ़ोत्तरी होती है. बोलते वक़्त कहीं अटक जाना हो या गलत बोल देना हो ये एक आम बात है. लेकिन एक बेहतर वक्ता की खासियत यही है कि वो इन नाज़ुक स्थितियों में भी खुदको संभाले रहता है. इसके लिए प्रयास के साथ कुछ गलतियां करना भी आवश्यक होता है.
बोलने जाने से पूर्व कुछ देर गहरी सांसें लेकर या 10-15 मिनट ध्यान लगाकर स्वयं को एकाग्रचित करना चाहिए जिससे बोलते समय किसी भी तरह की आप जल्दबाज़ी न करें. पब्लिक स्पीकिंग में बात तबतक प्रभावी नहीं हो सकती जबतक कि शारीरिक भाषा उसे सहयोग न करे. इसीलिए हमें कोशिश करनी चाहिए कि जब हम बोलें तो हमारे शारीरिक हावभाव से भी बातों का संचार हो. शब्दों के साफ़ उच्चारण के साथ ही आवाज़ को किन शब्दों में बढ़ाना है व कहां धीमा करना है मालूम होना चाहिए इससे आपके बात रखने का अंदाज़ प्रभावी बनेगा.
वहीं, दूसरे व्यक्ति की योग्यता से तुलना करके हम अक्सर अपना ही नुकसान करते हैं. हमें ये समझना चाहिए कि हम उसकी अच्छी चीज़ों से सीखें और उन्हें अपनाएं. इससे खुदको बेहतर बनाने में आसानी होगी. दूसरों से राय लेकर ये जानने का प्रयास करें कि आपकी कौन सी बात लोगों को बेहतर या कमज़ोर लगी. इससे आप अपने कमज़ोर पक्ष को सुधार पाएंगे और अपने मज़बूत पक्ष को और बेहतर कर पाएंगे. अच्छा वक्ता बनने के लिए खुद से प्रतियोगिता करना ज़्यादा हितकारी होगा.
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