राजनीति – आपने महाभारत में द्रोणाचार्य और अर्जुन की कहानी तो सुनी होगी.
इन्ही गुरु-शिष्य की जोड़ी को आज भी दुनिया याद करती है. लेकिन महाभारत युद्ध में द्रोणाचार्य ने कौरवों का साथ दिया था और अपने ही प्रिय शिष्य अर्जुन से युद्ध किया था. लेकिन आज के राजनीतिक महाभारत में कुछ चेले ऐसे हैं, जिन्होंने राजनीति का ककहरा सिखाने वाले अपने ही गुरुओं को दरकिनारे कर दिया. कहा जाता है कि राजनीति ऐसा युद्ध है जहां पर कोई किसी का सगा नहीं है.
सत्ता पाने के लिये भाई-भाई, बाप-बेटे, चाचा-भतीजे तक में तकरार हो जाती है. जिन लोगों ने उन्हें राजनीति का पहाड़ा पढ़ाया हो अगर वहीं उन्हें तल्ख तेवर दिखाने लगे तो राजनीति में भूचाल आना संभव है.
आज के राजनीतिक माहौल में कई ऐसे उदाहरण है जिनको देखकर आप यही कहेंगे कि ‘गुरु गुड़ रह गए और चेले शक्कर हो गए’. इसमें पहला नाम आता है दिल्ली के पूर्व जल मंत्री कपिल मिश्रा का, फिर दूसरा नाम आता है दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल का,तीसरा नाम है टीपू कहने जाने वाले यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव का, लिस्ट काफी लंबी है तो हम आपको क्रमबद्ध नाम बताते जाएंगे. जिन्होंने कभी अपने ही गुरुओं पर आरोप लगाया तो किसी ने अपने ही गुरु को राजनीति के लायक न होना भी बताया. तो आज हम आपको कुछ ऐसे ही मामलों के बारे में बताते हैं, जिनमें भारतीय राजनीति गुरु-चेले की अदावत का गवाह बनी.
१ – कपिल मिश्रा- अरविंद केजरीवाल
लिस्ट में पहला नाम है दिल्ली के पूर्व जल मंत्री कपिल मिश्रा का. अन्ना हजारे की अगस्त क्रांति से अरविंद केजरीवाल और कपिल मिश्रा की दोस्ती हुई थी. दोनों ने आंदोलन में साथ काम किया लेकिन जब केजरीवाल अन्ना से अलग हुए तो कपिल मिश्रा ने अरविंद केजरीवाल का साथ दिया.
जिन्होने अपने ही राजनीतिक गुरु अरविंद केजरीवाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी. साथ ही कहा था कि जिन केजरीवाल से उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना सीखा आज दोनों की राहें अलग-अलग है. वहीं अब कपिल मिश्रा को कुमार विश्वास का नजदीकी बताया जा रहा है.
२ – अरविंद केजरीवाल-अन्ना हजारे
भारत में अगस्त क्रांति लाने वाल गांधीवादी अन्ना हजारे ने आंदोलन किया मगर राजनीति से हमेशा दूर रहे. वहीं ये विडंबना रही कि उनके आंदलोन में सबसे आगे रहे उनके शिष्य अरविंद केजरीवाल आज दिल्ली के सीएम पद पर आसीन है. और राजनीति में बड़ा मुकाम हासिल कर चुके हैं.
आपको अन्ना हजारे के आंदोलनों में अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम के साथी कई बार साथ खड़े दिखाई दिये होंगे.लेकिन एक समय ऐसा आय़ा कि जब केजरीवाल ने कहा कि राजनीति को बदलना है तो पार्टी बनानी होगी. इस पर अन्ना हजारे और केजरीवाल के रास्ते अलग-अलग हो गये. केजरीवाल ने अपनी पार्टी ‘आप’ बना ली. और अन्ना हजारे हमेशा के लिये अकेले हो गये.
३ – मुलायम सिंह यादव- अखिलेश यादव
इस लिस्ट में केजरीवाल ही नहीं बल्कि बाप-बेटे की जोड़ी भी सामने आती है. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के कर्ताधर्ता मुलायम सिंह यादव और उनके पुत्र अखिलेश यादव के बीच साल 2017 में शीतयुद्ध चला. जहां मुलायम ने अखिलेश को उत्तर प्रदेश के सीएम के नाकाबिल बताया वहीं अखिलेश यादव ने अपने पिता और राजनीतिक गुरु मुलायम को पार्टी अध्यक्ष के पद से इस्तीफा देने की सलाह दे डाली थी. यूपी के विसचुनाव से पहले बाप-बेटे का मतभेद जनता के सामने खुलकर पेश हुआ था. नौबत तो चुनाव चिन्ह पर अपनी भागीदारी दिखाने तक की आ गई थी. परिणामस्वरूप यूपी के विस चुनाव 2017 में सपा की हार हुई.
४ – नरेंद्र मोदी- लाल कृष्ण आडवाणी
जनता पार्टी के जमाने से बीजेपी के सबसे बुजुर्ग नेता लाल कृष्ण आडवाणी को कभी भी पीएम पद का दांवेदार घोषित नहीं किया गया. साथ ही उन्हें साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मंत्रीमंडल विस्तार में केवल एक मार्गदर्शक के रूप में चुना गया. हालहि में जब बाबरी मस्जिद विध्वंस का मामला में सुप्रीम कोर्ट ने आडवाणी पर केस चलाने को कहा तो कई लोगों ने इसका जिम्मेदार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही बताया. अक्सर जनसभाओं में पीएम मोदी कहते रहते हैं कि उनके राजनीतिक गुरु लाल कृष्ण आडवाणी ही हैं और उनके बीच कोई मतभेद नहीं है. लेकिन केंद्र में भाजपा सत्ता होने पर भी आडवाणी को वो स्थान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे.
५ – शशिकला- पलानीस्वामी
एमजी रामचंद्रन यानि मरूथुर गोपालन रामचंद्रन की पार्टी AIADMK दक्षिण भारत की राजनीति में एक बड़ी पार्टी के रूप में हमेशा ऊपर रही है. स्वर्गीय जे जयललिता के निधन के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर पन्नीरसेल्वम और पार्टी की महासचिव रहीं शशिकला के बीच रेस हुई. आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरु हुआ और तमिलनाडु की राजनीति में एक बड़ा भूचाल आया. इस बीच सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार एआईडीएमके पार्टी की महासचिव शशिकला को आय से अधिक मामले में 4 साल की सजा मिली. शशिकला के जेल जाते ही तमिलनाडु की एआईडीएमके पार्टी के विधायक दल के नेता ई. पलानीसामी चुने गए. पलानीस्वामी शशिकला खेमे के नेता माने जाते हैं. वहीं वर्तमान में ई.पलानीस्वामी तमिलनाडु के सीएम के रूप में विराजमान है.
६ – नीतीश कुमार- जीतन राम मांझी
लोकसभा चुनाव 2014 में बिहार में नीतीश कुमार की हार के बाद जीतन राम मांझी को बिहार की बागडोर सौंपी गई. लेकिन जीतन राम मांझी को हमेशा नीतीश कुमार के हाथ की कठपुतली ही कहा गया.इसके बाद मांझी ने एक से एक बयान और फैसले लिए, जिससे धीरे-धीरे दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगीं. इसके बाद जीतन राम मांझी ने जेडीयू से नाता तोड़कर खुद की पार्टी बना ली. वहीं नीतीश ने भी मांझी को सीएम बनाए जाना एक बड़ी भूल मानी. विसचुनाव 2015 में नीतीश और मांझी आमने-सामने खड़े हुए और जीत नीतीश की पार्टी जेडीयू की हुई. नीतीश ने एनडीए का साथ छोड़ गठबंधन का दामन थाम लिया लेकिन 2017 में एक बार फिर नीतीश एनडीए में शामिल हो गए.
७ – राहुल गांधी- दिग्विजय सिंह
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के ‘राजनीतिक गुरु’ का तमगा अगर किसी को मिला है तो वो सिर्फ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और कांग्रेस रणनीतिकार दिग्गी राजा यानी दिग्विजय सिंह को मिला है. आपको बता दें कि राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष और भारत का पीएम बनाने का आइडिया सबसे पहले दिग्विजय सिंह के दिमाग में ही आया था. तब दिग्वजिय सिंह ने अपने पॉलीटीशियन के अनुभव की भट्टी में कांग्रेस अध्यक्ष को तपाकर नए दौर की राजनीति के सांचे में ढाला था. राहुल गांधी के साथ तमाम दौरों में दिग्विजय सिंह उनके साये की तरह रहते थे.
लेकिन ये विडंबना ही रही कि जब राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिये नामांकन भरा तब दिग्विजय सिंह गैर मौजूद थे. दिग्विजय सिंह उस वक्त नर्मदा यात्रा पर थे.अब जब राहुल गांधी ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी की नई टीम बनाई तो उस टीम में दिग्गी के नाम को गायब ही कर दिया वहीं उन्होंने मोतीलाल वोरा को तरजीह दी. दिग्विजय सिंह ने ही राहुल को राजनीति का ककहरा सिखाने का काम किया है. लेकिन दिग्विजय सिंह को ऐसी गुरु-दक्षिणा की उम्मीद नहीं रही होगी.
तो दोस्तों, अब एक बात साफ हो गई है कि राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं है और न ही कोई किसी का सौतेला. जब जहां फायदा नज़र आया, उसी तरफ हो गए.
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