एक बहुराष्ट्रीय कंपनी की भारतीय इकाई, हिन्दुस्तान यूनीलीवर पब्लिक लिमिटेड कंपनी ने भारत में 1888 से काम शुरू किया था.
इसके कई सालों बाद भी यह उतना नहीं कमा पाई है जितना बाबा रामदेव ने कुछ ही सालों में कमा लिया है.
साल 2016 में पतंजलि की सकल बिक्री कुछ 5 हजार करोड़ हो गयी है.
विदेशी कंपनियां जिस बात से डर रही थीं वह डर सच साबित हुआ है. क्योकि जो कंपनी 20 वी सदी में खुली है वह कैसे कुछ 10 से 12 सालों में, सन 88 की कम्पनी से ज्यादा का व्यापार कर सकती है. वैसे इतना तो है कि बाबा रामदेव ने वह कर दिखाया है जिसे 47 की आजादी के बाद कोई भी भारतीय नहीं कर पाया है. आज तक सभी सिर्फ बोलते थे कि स्वदेशी को अपनाओ लेकिन विकल्प के लिए हमारे पास कुछ नहीं था. वहीँ बाबा रामदेव ने भारत के लोगों को अच्छे और विश्वास के प्रोडक्ट दिए और इससे हुआ यह कि भारतीय लोग अपने देश की चीजें खरीदने लगे हैं.
वैसे इस पूरे प्रकरण में कुछ नेता और विदेशी कंपनियां जरुर बाबा रामदेव की दुश्मन बन गयी हैं.
बाबा रामदेव को शुरुआत में ही फंसाने के लिए कुछ नेताओं ने तो तैयारी भी कर ली थी.
आज हम आपको बताते हैं कि कैसे बाबा रामदेव के खिलाफ एक ही दिन में 83 केस दर्ज किये गये थे-
अचानक से दर्ज हुए थे बाबा के खिलाफ केस –
वैसे जब बाबा रामदेव ने एक ख़ास पार्टी के कार्यकाल की तानाशाही के खिलाफ आन्दोलन किया तो तभी वह नेताओं के निशाने पर आ गये थे. जैसे ही बाबा ने काले धन का मुद्दा उठाया था तो अचानक से जैसे बाबा के ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था. बाबा ने दिल्ली के अन्दर अपना आन्दोलन किया तो उसके तुरंत बाद उत्तराखंड की तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के निर्देश पर बाबा की पतंजलि के खिलाफ एक ही दिन में कुछ 83 केस पुलिस ने दर्ज कर लिए थे. वैसे पूरी पतंजलि की बात करें तो बाबा के साथ-साथ उनके सहायकों के खिलाफ कुछ 200 केस दर्ज किये गये थे. इस पूरे प्रकरण से साफ़ हो जाता है कि कैसे पुलिस और उनके जैसी संस्थायें, नेताओं के अधीन काम करती हैं. यदि यह केस सच थे तो अब उनपर कार्यवाही क्यों नहीं हो रही हैं और यदि यह केस झूठे थे तो इससे साफ़ हो जाता है कि कैसे नेता किसी को भी बर्बाद करने का दम रखते हैं.
यह नेता था जो पतंजलि को कराना चाहता था बंद –
साल 2005 में माकपा की नेता वृंदा करात ने बाबा की पतंजलि को बंद कराने के लिए अपनी कमर भी कस ली थी.
ध्यान दें कि इस समय में कांग्रेस को माकपा का समर्थन था और दोनों मिलकर देश की सरकार चला रहे थे.
बाबा की दवाओं में हड्डियों का चूरन मिलने लगा था. बाबा के कोलगेट में मांस मिलने लगा था. मसालों में रेत के सैंपल निकलने लगे थे. कुल मिलाकर बाबा की पतंजलि को बंद कराने का ब्ल्यू प्रिंट भी बना लिया गया था. नेताओं की एक टीम ऐसी थी जो बाबा को किसी भी हालत में जेल में भेजना चाहती थी.
यहाँ तक की वृंदा करात के आंदोलन का असर बंगाल में ऐसा छाया था कि बंगाल में तो पतंजलि के स्टोर ही बंद करा दिए गये थे. नेताओं की एक पूरी टोली हरिद्वार में जाकर बैठ गयी थी और बाबा की गिरफ़्तारी का प्लान बना रही थी.
अब या तो बाबा का वक़्त अच्छा था या इन नेताओं का प्लान झूठा था कि बाबा जेल नहीं जाते हैं और इतने में सरकार भी बदल जाती है. लेकिन सवाल यह है कि अगर इन नेताओं के आरोप सच्चे थे या हैं तो उसकी जांच अब कब होगी?
क्या फिर से इसी सरकार के आने का इंतजार किया जा रहा है? ताकि तभी पुराने केसों को फिर से खोला जाए.
ऐसे कई सवाल हैं, जो मुंह खोले बस खड़े हुए हैं. लेकिन बाबा आज जिस गति से तरक्की कर रहे हैं उसको देख लग रहा है कि जल्द कई विदेशी कंपनियों के बंद होने का भी समय आ चुका है. बाबा को ध्यान रखना होगा कि प्रोडक्ट की क्वालिटी ही सबकुछ है अन्यथा उनके ऊपर कई विदेशी ताकतों की गन्दी नजर आज भी बनी हुई है.