गणेश चतुर्थी के बाद पितर पक्ष शुरू होता हैं.
अपने बुजुर्गों और पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए इस 16 दिन में उनके श्राद की पूजा की जाती हैं.
हिन्दू धर्म में कई सदियों से यही मान्यता चली आ रही हैं कि अपने पितरों का श्राद् पूजन घर का मर्द ही करता हैं लेकिन यह मान्यता हर परिस्थिति में लागु नही होती हैं.
किसी परिवार में यदि कोई लड़का नहीं हैं तो उस स्थिति में श्राद् पूजन करने के लिए घर की महिलाओं को छुट दी जाती हैं.
इस बात की पुष्टि हमें हिन्दूधर्म की किताब ‘धर्म सहिंता’ और ‘मनु स्मृति’ सहित ‘गरुड़ पुराण’ जैसे चर्चित पुस्तकों में भी लिखा गया हैं कि यदि किसी भी परिवार में ऐसी कोई परिस्थिति आती हैं तो घर की बेटी या महिलाओं को अंतिम संस्कार और श्राद कर्म पूरा करने की छुट दी गयी हैं.
अभी कुछ दिन पहले काशी के पाण्डेयपुर में रहने वाली वंदना जयसवाल ने अपने स्वर्गीय पिता अरविन्द जयसवाल एवं अपनी माता उषा जयसवाल की मृत्यु के बाद न सिर्फ अपने माता पिता को मुखाग्नि दी बल्कि काशी के मणकर्णिका घाट में मुखाग्नि के बाद पुरे विधि विधान से उनके श्राद की पूजा भी संपन्न कराया. वंदना द्वारा उठाये गए इस कदम के बाद काशी में रहने वाले कुछ तथाकथित धर्म विशेषज्ञ और विद्वानों के समूह में मानो जैसे भूचाल ही आ गया हो.
हालाँकि वंदना जयसवाल ने यह सब कुछ किसी परंपरा या रीति रिवाज की अव्हेलना करने के उद्देश्य से नहीं किया था बल्कि उनका मकसद सिर्फ इतना था कि माँ बाप की इकलौती संतान होने की वजह और अपनी माँ उषा जयसवाल की ख्वाहिश पूरी करने के उद्देश्य से दोनों का अंतिम संस्कार खुद कर के श्राद की पूजा भी खुद ही संपन्न करें. वंदना द्वारा उठाये इस साहसिक कार्य के बाद और कई लड़किया ने भी आगे आकर वंदना का समर्थन किया, साथ ही उन लोगों ने अपने पितरों का श्राद कर्म को पुरे रीति रिवाज़ से पूरा भी कराया.
वैसे हिन्दुओ के कई पुराणों में यह नियम बनाया गया हैं कि यदि किसी परिवार में कोई लड़का नहीं हैं तो घर की सबसे बड़ी लड़की को अपने पूर्वजों का श्राद करने का पूरा अधिकार दिया गया हैं. इन नियमों में एक और बात कही गयी हैं कि घर की बेटी के पति/दामाद भी लड़की के माता पिता का श्राद कर्म पूरा कर सकता हैं.
काशी समेत और कई स्थानों में जहा गुरुकुल परंपरा आज भी कायम हैं अब वह अपने नियमों में बदलाव करते हुए लड़कियों को भी पांडित्य कर्म और वेद पाठ की शिक्षा दी जा रही हैं.
एक तरह से यह बात सही भी हैं क्योकि नियमों में यही एक सबसे बड़ी खासियत होती हैं कि यदि इसमें परिवर्तन की लोचता नहीं होगी तो नियमों को रूढ़ीवादिता बनने में वक़्त नहीं लगता हैं. वक़्त के अनुसार इसमें परिवर्तन ज़रूरी हैं.
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