तीर्थ मे स्नान का महत्व – मनुष्य के वह पद सफल है जो गंगा के तट पर पहुंचे हो।
वह श्रवण शक्ति सफल है जिसने गंगा के प्रवाह की ध्वनी सुनी हो।
वह कर सफल है जिसने गंगाजी को छुआ हो और वह व्यक्ति तो अत्यंत सफल है जिसने गंगाजी में स्नान किया हो तथा महाकुंभ के दौरान यह सौभाग्य मिले तो पुण्यफल बढ जाता है।
लेकिन हर व्यक्ति को यह सौभाग्य प्राप्त नही हो पाता। किसी भी कारण शरीर की अक्षमता, रोग या अन्य किसी कारण से वह कुंभ के दौरान यदि गंगा स्नान से वचिंत रह जाता है, तो अपने किसी रिश्तेदार, परिचित या अन्य कोई जानने वाले से यह निवेदन कर सकता है। उसकी जगह वह कुंभ पर्व पर गंगा मे स्नान करे इस तरह निवेदन करने से कुंभ मे जाए बगैर भी स्नान का अठ्ठासी प्रतिशत फल प्राप्त होता है। इसके अलावा कुंभ स्नान करके आए ब्राह्म्ण का भी यदि चरणस्पर्श किया जाए तो कुंभ स्नान का फल मिलता हैं।
इसमे दोनों को लाभ होता है।
यदि किसी निवेदक के लिए कुंभ में जाने वाले व्यक्ति ने स्नान किया है तो उसको उस स्नान का बारह प्रतिशत पुण्य फल प्राप्त होता है।
मातरं पितरं वापि भ्रातरं सुह्रदं गुरुम्। यमुद्दिश्य निमज्जते द्वादशांफलं भवेत्।। ।।अत्रिसंहिता ५१ ।।
मातरं पितरं चापि भ्रातरं सुह्रदं गुरुम्। यमुद्दिश्य निमज्जते द्वादशाशं लभेत् तु स:।। ।। गुरुड पुराड आचार २०५, २२१ ।।
यदि किसी व्यक्ति ने स्नान के लिए निवेदन नही किया है तो भी उसका नाम लेकर गंगा में डुबकी लगाने से उसको स्नान का फल मिल जाता है। पितरों आदि के लिए भी यह किया जा सकता है।
ये है तीर्थ मे स्नान का महत्व – गंगा तट पर जो व्यक्ति स्नान के लिए पहुंचता है उसके समस्त पितर भी वह उपस्थित हो जाते है उनके लिए भी उसको स्नान करना होता है ऐसा नही करने पर पितर खिन्न मन से शाप देते है।
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