शनि एक ऐसा ग्रह है जिसके प्रकोप से कोई नहीं बच पाया है।
लेकिन फिर भी लोग शनि से बचने के लिए कई तरह के उपाय और पूजा-पाठ करते रहते है।
अक्सर कहा जाता है कि शनि को प्रसन्न करने के लिए शनिवार को पीपल के पेड़ की पूजा करनी चाहिये। लेकिन क्या आप जानते है कि शनि के प्रकोप से बचने के लिए शनिवार को पीपल के पेड़ की पूजा क्यों की जाती है।
दरअसल शनिवार को पीपल के पेड़ की पूजा के पिछे एक पौराणिक कथा है.
तो चलिए आज हम बताते है कि शनि को प्रसन्न करने के लिए शनिवार को पीपल के पेड़ की पूजा क्यों की जाती है।
ये बात त्रेता युग की है जब पृथ्वी के एक हिस्से में घोर अकाल पड़ गया था, जिसकी वजह से लोग पलायन करने पर मजबूर हो गये थे। उसी हिस्से में कौशिक मुनि भी अपने परिवार के साथ रहा करते थे। अकाल की वजह से उनके बच्चों का पेट भरना मुश्किल हो गया था। ऐसे में मुनि अपने बच्चो को लेकर दूसरे राज्य के लिए निकल पड़े। लेकिन रास्ते में एक बच्चे का भूख के मारे बुरा हाल हो गया और इस विषम परिस्थिति में मुनि ने अपने एक बच्चे को रास्ते में ही छोड़ दिया।
वो बच्चा रोते हुए एक पीपल के पेड़ के नीचे रह गया और पीपल के फल खाकर बड़ा होने लगा।
तब एक दिन नारद जी वहां से गुजरे तो उनसे उस बच्चे की हालत देखी नहीं गई और नारद ने उस बच्चे को शिक्षा दी और उसे विष्णु भगवान की पूजा का विधान बताकर चले गए।
अब वो बालक लगातार भगवान विष्णु की तपस्या करने लगा।
एक दिन भगवान विष्णु ने आकर बालक को दर्शन दिए और कहा मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूँ बताओ तुम क्या चाहते हो। तब बालक ने भगवान विष्णु से भक्ति और योग का वरदान माँगा। बाद में वो बालक उसी पीपल के पेड़ के नीचे एक बहुत बड़ा ज्ञानी और योगी बनकर उभरा। फिर एक दिन नारद जी फिर से उस बालक के पास आये तब बालक ने अपने परिवार और उससे बिछड़ने की वजह नारद से पूछी तब नारद ने कहा कि ये सब शनि के प्रकोप से हुआ है।
तुम्हारे परिवार की हालत का ज़िम्मेदार शनैश्चर ही है।
तब बालक ने शनि को क्रोध से देखा और आसमान से नीचे गिरा दिया जिसके कारण शनि का पैर टूट गया और शनि असहाय हो गया। शनि की ये हालत देखकर ब्रह्माजी स्वयं वहां प्रकट हुए और बालक से शनि को छोड़ने की प्रार्थना करने लगे। ब्रह्मा जी ने बालक से कहा तुमने शनि को जीत लिया है और आज से तुम्हे पीपल के पेड़ के नीचे रहने की वजह से ऋषि पिपलाद के नाम से जाना जायेगा। आज से जो भी ऋषि पिपलाद को याद करेगा उसके सात जन्म के पाप नष्ट हो जायेंगे।
उस दिन से आज तक यह परम्परा है कि जो भी ऋषि पिपलाद को याद करके शनिवार को पीपल के पेड़ की पूजा करेगा उसको शनि की साढ़े साती, शनि की ढैया और शनि की महादशा कष्टकारी नहीं होगी।
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