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इतिहास को भूल, आओ युवाओं के लिए ‘भारत-पाकिस्तान’ के नये रिश्ते बनाएं

दो सौ वर्षों पहले अंग्रेजों ने जो फूट डालो और राज करो के बीज बोये थे, अब वह बीज से पौधा और पौधे से काँटों से भरा पेड़ बनकर सभी को दर्द दे रहा है, लेकिन आज सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि हम आज तक इन पेड़ों को खाद और पानी देकर बड़ा कर रहे हैं. पहले अंग्रेजों ने हमारी भूमि पर आकर राज किया और आज पश्चिमी देश हज़ारों मील दूर से, हम पर अप्रत्यक्ष रूप से राज कर रहे हैं.

आज के युवाओं की जरूरत, उच्च जीवन-शैली, सामाजिक जागरूकता और शिक्षा एवं स्वास्थ्य है और हम धर्म की जमीन का प्रयोग कर युवाओं का ध्यान, अपनी मंजिल से हटाने की कोशिश कर रहे हैं. कुछ राजनैतिक व आतंकवादी ताकतें युवाओं को आपस में बांटकर, इनको गुमराह करने का काम कर रही  हैं.

हथियार और पैसे देकर क्या ये पश्चिमी देश पाकिस्तान की सच मे सहायता कर रहे हैं? आज हिन्दुस्तान और पाकिस्तान दुनिया के सबसे युवा व बुद्धिजीवी  देश हैं. इन दोनों देशों के साथ आने से चीन एवं पश्चिमी देशो की ताकतों को एक बड़ी चुनौती का डर सताता है. इन्हें पता है कि हम बुद्धिजीव  जरूर हैं परंतु धर्म के नाम पर हमारे दिल बहुत कमजोर हैं, जिसका फ़ायदा दूसरे देश सदियों से उठाते आये हैं.

आज हम जमीनी मतभेदों को भूलाकर, विकास पर ध्यान केन्द्रित करें, तो हमारे युवाओं को एक नई दिशा और जीवन मिल सकता है. लेकिन आज दुर्भाग्य यह है कि कुछ राजनैतिक और आतंकवादी ताकतें भी हमें एक साथ नहीं आने देना चाहती हैं. अगर हम एक होकर आगे बढ़ते हैं, तो इनके पास जो गुमराह करने वाले मुद्‌दे हैं वह सभी खत्म हो जायेंगे और इनका अस्तित्व भी मिट जायेगा. युवाओं की जरूरत है कि वह अपने भविष्य का उचित सृजन करें. क्या आपने कभी यह सोचा है कि हिंदुस्तान एवं पाकिस्तान एक साथ मिलकर विकास की राह पर चलने लगें तो क्या हो सकता है? दोनों देशो के पास अपार क्षमता है, जिससे हम अपनी बुनियादी सुविधाओं को पूर्ण कर, अपने भविष्य का उज्‍जवल निर्माण कर सकते हैं.

आज हमारे देशों के बीच इतनी कटुता आ गयी है कि हिंदुस्तान अगर क्रिकेट मैच जीतता है तो पाकिस्तान मे टेलीविज़न सेट फोड़ दिए जाते हैं. भला इससे हमें क्या हासिल होने वाला है? क्या हम यह नहीं सोच सकते कि हिंदुस्तान एवं पाकिस्तान के हर शहर में न्यूयार्क शहर से बेहतर बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध हों. दोनों देशों के सम्बन्ध इतने मधुर हो जायें, जिससे हम अपने रक्षा खर्चों में कटौती कर, उसे बुनियादी जरूरतों में लगा सकें और एक-दूसरे के सहयोग से युवाओं के उज्‍जवल भविष्य का निर्माण करें.

मित्रों आप एक बार सोचिये, पिछले 68 सालों मे हमने धर्म और जमीन के नाम पर लड़कर क्याक्या खोया है और पाया है ?

Prashant Didwaniya

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