कुछ दिनों पहले बिहार के परीक्षा केंद्र की एक तस्वीर सामने आई थी.
जिसमे छात्रों को नक़ल कराया जा रहा था. पर सिर्फ एक तस्वीर से ही किसी राज्य की शिक्षा पद्धति पर अपना मन बना लेना कितना सही है? बिहार के ही शिक्षा प्रणाली का दूसरा रूप हम आपके सामने रख रहे हैं.
बिहार के गया जिले के मानपुर पटवा टोली को कितने लोग जानते होंगे?
यह बुनकरों की बस्ती है. पर आजकल यहाँ देश के लिए इंजिनियर बुने जा रहे हैं. जी हाँ इस मानपुर पटवा टोली से इस साल 17 छात्रों ने भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान ( आईआईटी ) का प्रवेश परीक्षा पास किया है.
इस बस्ती के लिए ये कोई नयी बात नहीं है.पिछले 5 सालों से हर साल यहाँ से करीब 10 छात्र आईआईटी के लिए चुने जाते हैं. और अब तक इस बस्ती के करीब 150 छात्र आईआईटी के लिए चुने जा चुके हैं.
ये तो हमने आपको सिर्फ आईआईटी में प्रवेश पाने वाले छात्रों की संख्या बताई. यहाँ के बहुत से छात्रों ने भारत के अन्य प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थानों में अपनी जगह बनायीं है.
ये सिलसिला शुरू हुआ 1992 से और अब तक इसने कई आंकड़े पार कर दिए हैं. सबसे पहले जीतेंद्र प्रसाद यहाँ से आईआईटी गए. और फिर बाकियों को भी प्रेरित किया. जीतेंद्र प्रसाद ने साल 2000 में “नवप्रयास” बनाने की पहल की. इसके तहत छात्रो का आईआईटी प्रवेश परीक्षा के लिए मार्गदर्शन किया जा रहा है.
जो छात्र आईआईटी में प्रवेश पा चुके हैं वो अपनी बस्ती के बाकी छात्रों को पढाई में हरसंभव मदद करते हैं. नवप्रयास हर साल एक वर्कशॉप चलाता है जिसमे छात्रों को योजनाबद्ध तरीके से पढाई करना सिखाया जाता है. क्योंकि दसवी के बाद 11वी में अचानक से पढाई का बोझ बढ़ जाता है.
पटवा टोली में करीब डेढ़ हज़ार बुनकर परिवार रहते हैं. कहा जाता है की मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में राजा मान सिंह ने यह मोहल्ला बसाया था. राजा मान सिंह गया से जयपुर वापस जाने लगे तो कुछ बुनकर यहीं रह गए.
80 के दशक के अंत और 90 के दशक के शुरुआत में इनका पेशा बुनकरी ही रहा. पर जब लोगो को मील में बने कपडे पसंद आने लगे, और मंदी छाने लगी तो बुनकर परिवार अपने बच्चों को पढ़ाने पर भी ध्यान देने लगे.
अभी पटवा टोली में 5 स्टडी सेंटर चलाये जा रहे हैं. जो छात्रों का मार्गदर्शन तो कर ही रहा है, साथ ही महंगे कोचीन सेंटर के खर्चे से भी बचा रहा है.
आज पटवा टोली के सफल छात्र माइक्रोसोफ्ट, ओरेकल, सैमसंग, हिंदुस्तान जैसे प्रमुख देशी-विदेशी कंपनियों में काम कर रहे हैं. लेकिन इन छात्रों के कदम सिर्फ इंजीनियरिंग तक ही नहीं रुकने वाली. अब पटवा टोली के छात्रों की नज़र यूपीएससी पर है.
ये टोली फिलहाल “आईआईटी विलेज” के नाम से जरूर जानी जाती है पर वो दिन दूर नहीं जब इसे “यूपीएससी विलेज” कहा जाने लगेगा.
तो यूपीएससी की तैयारी करने वाले छात्रो को एक वैधानिक चेतावनी ” सावधान पटवा टोली के बच्चे आ रहे हैं”..
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