भगवान परशुराम जी के बारे में बताया जाता है कि वह आज भी धरती पर अवतार रूप में मौजूद हैं.
भगवान परशुराम जी को विष्णु के छठा अवतार बताया जाता है. ये चिरंजीवी होने से कल्पांत तक स्थायी हैं. कुछ लोगों को बेशक यह बात अजीब लग सकती, लेकिन हर साल परशुराम जी झारखंड के एक मंदिर में आते हैं.
जगंल में स्थित यह मंदिर लोगों की नजर से इसलिए बचा हुआ है क्योकि यह एक नक्लवादी इलाका है. पुलिस और नक्सलियों के बीच आये दिन यहाँ झड़प होती हैं.
यही कारण है कि झारखंड के टांगीनाथ धाम के बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं.
लेकिन इस शक्तिशाली मंदिर में जाने से गाँव वालों की बड़ी से बड़ी बीमारियाँ चंद दिनों में ख़त्म हो जाती हैं. गाँव वालों के लिए परशुराम जी डॉक्टर भी हैं और दोस्त भी. सबसे बड़ी बात यह है कि नक्सलवादी लोग भी यहाँ आकर अपनी कामयाबी की प्रार्थना करते हैं.
क्या है मंदिर की सबसे बड़ी बात
प्राप्त जानकारी के अनुसार टांगीनाथ धाम में आज भी परशुराम जी का फरसा जमीन में गढ़ा हुआ है. टांगीनाथ मंदिर झारखंड के गुमला शहर से करीब 75 km दूर और रांची से करीब 150 km दूर घने जंगलों के बीच स्थित है. झारखंड में फरसा को टांगी कहा जाता है, इसलिए इस स्थान का नाम टांगीनाथ धाम पड़ गया.
सबसे बड़ी और आश्चर्यजनक बात यह है कि यहाँ आज भी भगवान परशुराम के पद चिह्न मौजूद हैं. हजारों सालों से यह फरसा यहाँ है और इस पर नाम मात्र की भी जंग नहीं लगी है. इस फरसे के लिए यह भी बोला जाता है कि यह जमीन के नीचे कितना है यह भी किसी को नहीं मालूम.
कैसे और कब आये थे यहाँ परशुराम भगवान
इस कथा के बारे में बताया जाता है कि जब श्री राम जी ने सीता से विवाह के समय शिव का धनुष तोड़ दिया था तब परशुराम जी वहां गये थे. श्री राम जी को भला-बुरा भी कहा था. लेकिन जब परशुराम जी को पता चला कि वह भी विष्णु के अवतार हैं तो इन्हें बुरा लगा था. वह इस बात से दुखी होकर वह झारखंड के जंगलों में चले गये थे. ऐसा बोला जाता है कि यहीं पर बैठकर परशुराम जी ने सालों तक तपस्या की थी.
आज भी आते हैं यहाँ परशुराम जी
गाँव के लोग बताते हैं कि मंदिर में साल में एक बार परशुराम जी जरूर आते हैं.
उनका आगमन कई बार साधू रूप में होता है तो कई बार रात के समय साक्षात् यहाँ आते हैं. इस बात के कई बार सबूत भी मिले हैं कि यहाँ परशुराम भगवान आये थे. कई बुजुर्ग लोगों ने इनके दर्शन भी किये हैं ऐसा दावा करने वाले भी गाँव में मौजूद हैं.
तो सच कुछ भी हो लेकिन मंदिर में जमीन में गढ़ा फरसा जरूर एक रहस्य है. लोहे के फरसे पर जंग ना लगना, क्या यह एक चमत्कार नहीं है? लोगों के लिए यह फरसा ही भगवान से कम नहीं है. लोग यहाँ आते हैं फरसे की पूजा करते हैं और बदले में इनके दुःख-तकलीफ कम हो जाते हैं.
तो आप भी एक बार यहाँ जरूर जाएं किन्तु यहाँ जाने के लिए आपके साथ किसी लोकल व्यक्ति का होना जरूरी है.
नक्सलवाद यहाँ एक सबसे बड़ी समस्या है.
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