हिन्दू धर्म की कई कहानियों में पारसमणि का नाम सुनने में आता है.
पारसमणि का स्पर्श पाते है हर चीज सोने की होने लगती है. कई लोग इसमें यह भी जोड़ते हैं कि हर निर्जीव चीज को पारसमणि सोने की बना देता है.
लेकिन आज तक यह एक रहस्य ही बना हुआ है कि क्या पारसमणि जैसी कोई चीज होती है? या यह मात्र एक मजाक किया गया था.
इस सच को जानने की कोशिश में हमको पता चला कि भारत के अन्दर एक तालाब है जहाँ बताया जाता है कि पारसमणि को छुपाया गया था.
तो आइये जानते हैं क्या है रहस्य पारसमणि का-
शास्त्रों की कहानी बताती है कि हिमालय के जंगलों में बड़ी आसानी से पारसमणि मिल जाती हैं. बस कोई व्यक्ति उनकी पहचान करना जानता हो. क्योकि यह के पत्थर की ही भांति होती हैं बस रात के अँधेरे में यह चमकने लगती हैं. कहानियों के अन्दर जिक्र आता है कि कई संत पारसमणि खोजकर लाते थे और अपने भक्तों को दे देते थे.
किन्तु फिर अचानक से ना जाने क्यों संतों ने पारसमणि लाना बंद कर दिया. लेकिन इस बात के कुछ सबूत हमारे इतिहास में भी हैं क्योकि कई विदेशी शासक हमारे देश में पारसमणि की खोज में ही आ रहे थे.
अब मोहम्मद गौरी को ही देख लीजिये, उसको इस बात की खबर थी कि देश में एक राज्य में पारसमणि है. इसलिए वह मरने तक उसको खोजता रहा था.
वहीँ चंदेल के एक राजा के बारें में बोला जाता है कि उसको खबर लग चुकी थी कि मोहम्मद गौरी पारसमणि लेने आ रहा है इसलिए उसने इसको कहीं तालाब में फेंकवा दिया था.
मध्यप्रदेश का एक कुआं, जिसमें हैं मणि
मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में जहां हीरे की खदान है, वहां से 70 किलोमीटर दूर दनवारा गांव के एक कुएं में रात को रोशनी दिखाई देती है. लोगों का मानना है कि कुएं में पारसमणि है. कई बार इस पारसमणि को खोजने की कोशिश की गयी है किन्तु वह नहीं मिलती है.
रात के समय लोग जब इसके पानी को देखते हैं तो ऐसा लगता है कि जैसे पानी ने नीचे कोई लैंप जल रहा हो. आसपास के लोग बताते हैं कि सालों पहले एक संत यहाँ आये थे और जब लोगों को पता चला कि उनके पास पारसमणि है तो चोरी के डर से वह यहाँ इसे फ़ेंक देते हैं.
आज भी लोग चाहते हैं कि कुँए की मणि उनको मिल जाये.
एक पक्षी जो पारसमणि पहचानता है
कौवे को ऐसा जीव माना जाता है जो पारसमणि को अच्छी तरह से पहचानता है. हिमालय पर्वत पर रहने वाले संत महात्मा इसी का प्रयोग कर मणि को प्राप्त करते हैं.
तो कुलमिलाकर बोला जा सकता है कि पारसमणि होती है इसकी उम्मीद तो की जा सकती है क्योकि शास्त्रों में और इतिहास के अंदर कुछ भी व्यर्थ नहीं लिखा गया है.