सूबेदार जोगिंदर सिंह – बॉलीवुड में पिछले कुछ सालों से बायोपिक बनाने का बड़ा क्रेज चला है, अपने दौर के कई महान और विवादित लोगों पर अब तक बायोपिक बनाई जा चुकी है.
किसी भी फिल्मकार के लिए बायोपिक बनाने के भी अपने ही फायदे होते है, एक तो अच्छी खासी कहानी मिल जाती है दूसरा उस शख्सियत के नाम से फिल्म की पब्लिसिटी भी आसानी से हो जाती है. तो बायोपिक बनाने का सीधा सा मतलब है फिल्म व्यवसाय को सफल बनाना.
खैर बायोपिक से दर्शकों को भी उस दौर और उस हीरो के बारे में जानने को मिलता है.
बायोपिक बनाने की इसी कड़ी में इन दिनों एक नई फिल्म आ रही है जिसका नाम ‘सूबेदार जोगिंदर सिंह’ है. इस फिल्म में पंजाबी फिल्मों के सुपरस्टार गिप्पी ग्रेवाल जोगिंदर सिंह के किरदार में नज़र आने वाले है. फिल्म पंजाबी भाषा के अलावा हिंदी, तमिल और तेलुगु में है जिसे आगामी 6 अप्रैल को रिलीज किया जाएगा.
फिल्म की कहानी सूबेदार जोगिंदर सिंह के जीवन पर आधारित है जो 1962 के भारत-चीन युद्ध के वार हीरो है. उन्हें मरणोपरांत भारत के सबसे बड़े वीरता पुरूस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था.
सूबेदार जोगिंदर सिंह : एक परिचय-
जोगिंदर सिंह का जन्म 26 सितम्बर 1921 को पंजाब के एक गाँव मेहाकलन में हुआ था. जोगिंदर सिंह का परिवार बहुत समृद्ध था लेकिन फिर भी उनकी पढ़ाई पूरी नहीं हो पाई थी. तब उन्होंने सोचा सेना ही अब उनके लिए एक बेहतर जगह हो सकती है. उन्होंने सेना ज्वाइन करली, पहले वे ब्रिटिश आर्मी में रहे फिर आज़ादी के बाद उन्हें भारतीय सेना का हिस्सा बनाया गया. सेना में रहते हुए उन्होंने अपनी प्रतिभा का विकास किया और कई आर्मी एजुकेशन परीक्षाएं पास करके उन्होंने भारतीय सेना में अपनी ख़ास जगह बनाई.
भारत और चीन युद्ध 1962-
ये बात भारत के शुरूआती समय की है जब साठ के दशक में भारत में विकास का दौर चल रहा था और उस समय किसी ने भी इस बात का अंदाज़ा नहीं लगाया था कि चीन भारत पर अचानक आक्रमण करके उसे चौंका देगा. उस समय भारत की सैन्य ताकत और तैयारी तो कमजोर थी ही साथ ही राजनैतिक दृष्टि से भी भारत उतना परिपक्व नहीं हुआ था. लिहाज़ा भारत को इस युद्ध में हार का मुँह देखना पड़ा.
सूबेदार जोगिंदर सिंह की भूमिका-
बात 1962 की है जब चीनी सेना ने भारत पर हमला कर दिया. चीनी सेना नमखा चू सेक्टर और लद्दाख से होते हुए पूर्वी सीमा के अन्य हिस्सों पर एक साथ हमला कर चुकी थी.
सिर्फ तीन ही दिनों में चीनी सेना ने भारत की बहुत सारी जमीन पर कब्ज़ा कर लिया था. अब चीन का अगला मिशन था तवांग पर कब्ज़ा करना, चीन को तवांग में रोकने का काम दिया गया भारतीय सेना की सिख बटालियन को. सूबेदार जोगिंदर सिंह इस सिख बटालियन का नेतृत्व कर रहे थे. इस लड़ाई में जोगिंदर सिंह ने अपने अदम्य साहस का परिचय दिया था. गिनती में सिर्फ एक डिवीज़न की सिख बटालियन ने चीनी सेना को जबरदस्त टक्कर दी. 20 अक्टूबर 1962 की बात है, सुबह साढ़े पांच बजे चीन की सेना ने जबरदस्त हमला कर दिया. चीनी सैनिकों ने लगातार तीन दौरों में हमला किया हर बार उनकी संख्या 200 थी.
पहला हमला सिख बटालियन आसानी से झेल गई और उसने चीनी सैनिकों को आगे बढ़ने नहीं दिया. चीनी सैनिकों का भारी नुकसान हुआ और उनको रुकना पड़ा. लेकिन थोड़ी देर के बाद दुश्मन ने फिर हमला बोल दिया, सिख बटालियन ने इस हमले को भी रोक दिया लेकिन इस दूसरे हमले में जोगिंदर सिंह की आधी फौज ख़त्म हो गई. जोगिंदर सिंह को भी जांघ में गोली लग गई लेकिन वे पीछे नहीं हटे तभी चीनी सेना ने तीसरा हमला बोल दिया. अब जोगिंदर सिंह ने खुद मशीनगन लेकर गोलियां दागना शुरू कर दी. उन्होंने कई चीनी सैनिकों को ढेर कर दिया लेकिन भारी संख्या में होने के कारण वे लोग आगे बढ़ते रहे.
सिख बटालियन के पास अब गोलियों का भण्डार ख़त्म हो चूका था अब बारी थी संगीन खंजर की तरह इस्तेमाल करके दुश्मन से लड़ना. सूबेदार और उनकी सेना दुश्मन से आखिरी सांस तक पूरी हिम्मत के साथ लड़ते रहे. आखिर घायल जोगिंदर सिंह और उनके बचे हुए सैनिक दुश्मन के कब्जे में आ गए.
शहादत और परमवीर चक्र-
अपनी आखिरी साँस तक लड़ने वाले सूबेदार जोगिंदर सिंह गंभीर रूप से घायल होने के बाद चीनी सेना के कब्जे में आ गए. कहा जाता है कि इसके बाद सूबेदार जोगिंदर सिंह शहीद हो गए, बाद में उनकी आस्थियाँ भारत सरकार को सौंपी गई. भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत भारत के सबसे बड़े वीरता सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया.
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