द्रौपदी ने अश्वत्थामा को छोड़ दिया – महाभारत का युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच लड़ा गया था और इस विनाशकारी युद्ध के बारे में भी हर कोई जानता है. हालांकि इस युद्ध में जीत पांडवों की हुई थी लेकिन इस युद्ध के आखिरी दिन अश्वत्थामा ने पांडवों और द्रौपदी के पांचों पुत्रों की हत्या कर दी थी.
द्रौपदी के पांचों पुत्रों की हत्या के बाद पांडवों ने अश्वत्थामा को पकड़ लिया और उसे द्रौपदी के सामने पेश किया लेकिन द्रौपदी ने ना सिर्फ उसे जीवित छोड़ दिया बल्कि उसे माफ भी कर दिया.
आखिर द्रौपदी ने ऐसा क्यों किया?
चलिए हम आपको बताते हैं क्यों द्रौपदी ने अश्वत्थामा को छोड़ दिया.
द्रौपदी ने अश्वत्थामा को छोड़ दिया –
अश्वत्थामा ने लगा दी थी शिविर में आग
बताया जाता है कि महाभारत युद्ध के दौरान द्रौपदी और दूसरी रानियां एक शिविर में रहती थीं. जिस दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था उस दिन श्रीकृष्ण पांडवों को लेकर शिविर में नहीं लौटे बल्कि वे पांडवों को लेकर शिविर से कहीं दूर चले गए.
महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद जब पांडव अपने शिविर में नहीं लौटे तब इस बात का फायदा उठाकर द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने पांडवों के शिविर में आग लगा दी. जिसके चलते पांडव कक्ष में बचे हुए वीर सोते हुए ही मृत्यु को प्राप्त हो गए और द्रौपदी के पांचों पुत्र भी अश्वत्थामा द्वारा लगाई गई आग के कारण मारे गए.
पुत्रों के शव देखकर पांडव हुए बेहद दुखी
अगले दिन जब श्रीकृष्ण और पांडव अपने शिविर में वापस लौटे तो अपने पांच पुत्रों के शव को देखकर बेहद दुखी हुए. जबकि द्रौपदी की व्यथा का तो कोई अंदाजा ही नहीं लगा सकता था.
पांचों पांडव पुत्रों के शव को देखकर अर्जुन ने द्रौपदी से कहा कि वो अश्वत्थामा को इसका दंड जरूर देंगे और उसके कटे हुए मस्तक को उनके सामने लेकर आएंगे.
द्रौपदी से इतना कहकर पांडव रथ में सवार होकर वहां से अश्वत्थामा को ढूंढने के लिए निकल पड़े. हालांकि पांडवों को देखकर अश्वत्थामा ने बचने की काफी कोशिश की लेकिन उसकी हर कोशिश नाकाम रही. उसने खुद को बचाने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग भी किया बावजूद इसके अर्जुन ने उसे पकड़ लिया.
अपने पुत्रों के हत्यारे को द्रौपदी ने किया माफ और द्रौपदी ने अश्वत्थामा को छोड़ दिया
कहा जाता है कि गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र होने के नाते अर्जुन ने अश्वत्थामा का वध नहीं किया बल्कि रस्सियों से उसे बांधकर द्रौपदी के सामने ले आए. अश्वत्थामा को देखकर भीम ने कहा कि इस दुष्ट को जीवित रहने का अधिकार नहीं है.
जब द्रौपदी के सामने अश्वत्थामा को लाया गया तो वो चाहती तो उसे मृत्युदंड दे सकती थीं लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. अश्वत्थामा को सामने देखकर द्रोपदी ने पांडवों से कहा कि आपने जिस गुरु से अस्त्रज्ञान प्राप्त किया है ये उसी गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र हैं इसलिए अश्वत्थामा को छोड़ दीजिए. द्रौपदी की यह बात सुनकर अर्जुन ने अश्वत्थामा के मस्तक की मणि लेकर उसे छोड़ दिया.
इस तरह द्रौपदी ने अश्वत्थामा को छोड़ दिया – गौरतलब है कि अपने पांच पुत्रों को खो देने के बाद भी द्रौपदी इतनी ज्यादा दयालु थीं कि उन्होंने अपने पुत्रों की हत्या का बदला लेने के बजाय हत्यारे अश्वत्थामा को छोड़ने का फैसला किया और उनके इस फैसले को पांडवों को भी स्वीकार करना पड़ा, कहा जाता है कि अश्वत्थामा आज भी जीवित है और महाभारत काल से ही धरती पर भटक रहा है.