हिन्दुस्तान से पाकिस्तान की नफ़रत जगजाहिर है.
बात चाहे कश्मीर की हो या हिन्दू-मुस्लिम की, पाकिस्तान हिंदुस्तान की बुराई करने का एक भी मौका हाथ से जाने नही देता हैं.
लेकिन इस बार पाकिस्तानियों ने जिस मामले में हिंदुस्तान पर टिप्पणी करी हैं उससे पाकिस्तान की इंडिया में जितनी आलोचना हो रही हैं उससे कहीं ज्यादा आलोचना पूरी दुनिया में हो रही हैं.
28 जुलाई को भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अबुल कलाम की मौत से जहाँ भारत के साथ पूरा विश्व शोक में डूबा था वही पाकिस्तान के परमाणु अभियान के मुख्य वैज्ञानिक डॉ ए क्यु खान ने अपनी संवेदनहीनता दिखाते हुए एपीजे अब्दुल कलाम के बारें में एक ऐसी टिप्पणी कर दी जिससे पूरी दुनिया और सोशल मीडिया में उनकी जम कर आलोचना हुई.
डॉ ए क्यु खान ने कहा कि “कलाम बहुत ही मामूली वैज्ञानिक थे.”
बीबीसी से बात करते हुए पाकिस्तानी वैज्ञानिक डॉ ए क्यु खान ने कहा कि “उन्हें याद नहीं आता कि एपीजे कलाम ने कोई खास काम किया हैं. भारत का परमाणु कार्यक्रम रूस की सहायता से तैयार किया गया.” इन सब बातों के बाद भी डॉ ए क्यु खान यहाँ नहीं रुके और कलाम की आलोचना में कहा कि इस कार्यक्रम में उनका खास योगदान नहीं था.
आलोचनाओं का सिलसिला जारी रखते हुए उन्होंने बीजेपी को भी इस मामले में घसीटे हुआ कहा कि “2002 में जब बीजेपी हिन्दुस्थान की सियासत पर अपनी साख बचाने में जुटी थी तो केवल मुस्लिम वोट बैंक को अपनी ओर खीचने के लिए उन्होंने एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति बनाया था. अपनी इस कूटनिति में बीजेपी का मकसद सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों का विश्वास जितना था.”
कलाम के बारें में ऐसी सोच रखने के बाद डॉ ए क्यु खान की इंडिया में तो कड़ी निंदा हुई साथ ही सोशल मीडिया के माध्यम से पूरी दुनिया में उन्हें खूब खरीखोटी सुनाई.
वो कलाम ही थे जिन्होंने ने 2020 तक विकसित भारत के सपने को भारतीयों के सामने लाया था.
आधुनिक रक्षा तकनीक में भारत को सबल बनाने के पीछे एपीजे अब्दुल कलाम ही थे. ये कलाम की ही सोच का नतीजा था की आज भारत उपग्रह और बैलिस्टिक मिसाईल प्रोग्राम सक्षम हैं. परमाणु हथियार और हल्के लड़ाकू विमान की तकनीक जैसे कई महत्वपूर्ण सुरक्षा कार्यक्रम भारत में संभव सिर्फ इसलिए हो पाए क्योकि इन सब के पीछे एपीजे अब्दुल कलाम थे.
ये कलाम का ही नजरिया था कि भारत को दुनिया के सामने इतना शक्तिशाली पेश करें कि पुराने समय की तरह अब इस देश पर आंख भी न उठा सके.
इस पूरी सोच का श्रेय अगर किसी को जाता हैं तो वो सिर्फ एपीजे अब्दुल कलाम ही हैं.