जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी दिल्ली ही नहीं पूरे भारत में मशहूर है.
कभी यहाँ से पढ़े हुए महान लोगों को लेकर तो कभी वैचारिक स्वतंत्रता को लेकर. मशहूर होने के साथ साथ ये विश्वविद्यालय कुख्यात भी है यहाँ के छात्रों के व्यवहार को लेकर.
पहले के समय में ये विश्वविद्यालय क्रांतिकारी विचारों का मंच हुआ करता था. लेकिन आज ये बस एक झूठे वामपंथ और दिखावे की क्रांति का प्रतीक बनता जा रहा है. पिछले कुछ समय से शायद ही इस विश्वविद्यालय के छात्रों ने किसी सार्थक मुद्दे के लिए आवाज़ उठाई है.
अधिकतर मामलों में तो लगता है कि जैसे रंग दे बसंती की शूटिंग चल रही हो. फिल्म के संवाद की स्टाइल में भाषण और नारे.
हाथ में झोला बढ़ी दाढ़ी और कुरता पहनकर बुद्धिजीवी बन जाना. मुद्दों से ज्यादा खुद की राजनीती और खुद की साख बनाने में लगे रहना.
जानबूझ कर ऐसा कुछ करना जिससे पूरी दुनिया की नज़र में आ जाये.
सच्चा वामपंथ क्या था ये तो शायद ये छात्र भूल गए है, अब तो इनके लिए वामपंथ का मतलब खुद को मॉडर्न और बुद्धिजीवी साबित करना रह गया है.
अगर अभी के आंकड़ों पर गौर करे तो इस विश्वविद्यालय के अधिकतर छात्र जो कॉलेज के समय क्रांति के कसीदे और नारे लगाते रहते है वो कॉलेज के बात किसी बड़ी कम्पनी में मोती सैलरी पर काम करते पाए जाते है.
ये सब नारे प्रदर्शन एक गुजरे वक्त में सार्थक होता था लेकिन आज तो जमीनी हकीकत से दो चार हुए बिना भी ये बस एक भीड़ की तरह खुद को औरों से अलग साबित करने की मुर्खता करते रहते है.
ख़बरों के अनुसार कल JNU में भारतीय संसद पर हमला करने वाले आतंकी अफज़ल गुरु की फांसी की बरसी मनाई गयी. अगर ये कार्यक्रम फांसी की सजा के विरोध में होता तो कुछ गलत नहीं था.
लेकिन इस कार्यक्रम में एक आतंकी को हीरो की तरह प्रस्तुत किया गया और इतना ही नहीं देश की राजधानी में भारतीय करदाताओं के पैसे से साड़ी सुविधाओं वाले परिसर में पढने वाले कुछ छात्रों ने पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए. अफज़ल गुरु को आज़ादी का सिपाही बताया. यही नहीं भारत के टुकड़े होकर रहेंगे जैसे देशविरोधी नारे लगाए गए.
विरोध प्रदर्शन एक बात है लेकिन इस तरह की नारेबाजी बिलकुल बर्दाश्त करने लायक नहीं है.
आज़ादी के समय हुए बंटवारे के बाद से ही पाकिस्तान की हालत पूरी दुनिया के सामने है, क्या ये नारे लगाने वाले क्रांतिकारी बताएँगे कि पाकिस्तान ने इनके लिए ऐसा क्या कर दिया जो ये पाकिस्तान जिंदाबाद या जंग ए आज़ादी तक लड़ाई चलती रहेगी जैसे नारे लगाये जाए.
इस बात पर सबसे शर्मनाक चीज़ ये है कि बिना कुछ सोचे समझे नतीजों पर कूद जाने वाले तथाकथित बुद्धिजीवी इस मामले पर चुप्पी साधे बैठे है. इतना ही नहीं आज मुंबई हमले के आरोपी हेडली ने कहा कि इशरत जहाँ लश्कर की फिदायीन थी.
आपको शायद याद होगा कि मुस्लिम वोट की राजनीती करने के लिए नीतिश कुमार और केजरीवाल ने इशरत जहाँ को भारत की बेटी तक कह दिया था.
क्या हमारा स्तर इतना गिर गया है कि एक चुनाव की हार की वजह से हम देशविरोधी हो रहे है सिर्फ इसलिए कि हम वोट हासिल कर सके.
JNU में जो हुआ वो बहुत ही गलत है, अगर हमारी युवा पीढ़ी इतनी मुर्ख है तो देश का भविष्य खतरे में है. वामपंथ के नाम पर जो कूल बनते है उन्हें एक बार भारत के उत्तर पूर्वी हिस्से, बिहार उत्तेर प्रदेश के गाँवों और महाराष्ट्र, आन्ध्र और छत्तीसगढ़ के नक्सली क्षेत्रों में जाकर लोगों की हालत देखनी चाहिए. जिन्हें मदद की ज़रूरत है उनकी तरफ देखते भी नहीं और बस प्रचार और नफरत फ़ैलाने के लिए पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने लगते है.
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