माँ-बाप को क्या पता था कि बेटा, देश के लिए शहीद हो जाएगा.
सपने सजाए जा रहे थे कि बेटे की शादी करेंगे, बेटा हमारा घर-बार बनाएगा. पर बेटा तो आज़ादी को ही अपनी दुल्हन मान चुका था. ना जाने किस मिट्टी से बना था वह.
आज अगर भारत-पाकिस्तान का विभाजन नहीं हुआ होता, तो भगत जी का पैतृक गाँव भारत में होता.
लेकिन यह बड़े ही दुख की बात है कि इस क्रांतिकारी का बलिदान खराब गया.
आज हम भारत की अपनी सरकार से यह निवेदन करते हैं कि वह पाकिस्तान सरकार पर दबाव बनाये और उन्हें समझाये कि भगत सिंह जी के लिए जितना कर्तव्य हमारा बनता है उतना उनका भी बनता है और भगत जी पर जितना अधिकार भारत का है, उतना ही अधिकार पाकिस्तान का भी है क्योकि जब इन्होंने आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी तब भारत और पाकिस्तान अलग नहीं हुए थे, तब हम अखंड थे. इनके बलिदान का जितना फल भारत को मिला है उतना पाकिस्तान को भी मिला है इसलिए यह आपका फ़र्ज़ है कि आप इनके द्वारा दिए गये बलिदान को नमन करें और उनके जन्म-स्थल पर स्मारक बनाये.
भगत जी अक्सर गाते थे कि शहीदों की चिताओं पर हर वर्ष लगेंगे, मैले. क्या शहीदी दिवस पर जहाँ इनको फांसी हुई, वहां कभी मैला लगेगा? क्या पाकिस्तान का कोई फ़र्ज़ नहीं कि इनके जन्म स्थल पर एक बड़े कार्यक्रम का आयोजन हो, जहाँ भारत से भी लोग आयें और पाकिस्तान से भी.
भगत सिंह का जन्म स्थल
भगतसिंह का जन्म 1907 में 27 सितंबर की रात फैसलाबाद (तत्कालीन लायलपुर) के बांगा गाँव में हुआ था. देश के बँटवारे के साथ लायलपुर पाकिस्तान में चला गया और वहाँ की सरकार ने इसका नाम बदलकर फैसलाबाद कर दिया.
क्या विभाजन में बनीं सीमायें, शहीद क्रांतिकारियों पर भी लागू होती हैं?
भगतसिंह किसी धर्म विशेष के नहीं, बल्कि हिन्दू, मुस्लिम और सिख सभी के चहेते क्रांतिकारी थे. बेशक बात चली थीं कि पाकिस्तान,जल्द ही भगत जी का स्मारक का निर्माण करेगा. लेकिन कुछ खास हो नहीं पाया. इतना होने के बाद भी क्यों पाकिस्तान का आवाम, भगत जी के बलिदान को याद नहीं कर पा रहा है?
अंग्रेजों ने सांडर्स हत्याकांड में राजगुरु,सुखदेव और भगत सिंह को 23 मार्च 1931 के दिन लाहौर सेंट्रल जेल में फाँसी पर लटका दिया था.
शहीद ए आजम के भांजे जगमोहन जी कहते हैं कि “वर्ष 2007 में भगत सिंह की जन्म शताब्दी के अवसर पर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के तत्कालीन गवर्नर ने वादा तो किया था कि जिस जगह भगत सिंह को फाँसी दी गई थी वहाँ उनका स्मारक बनाया जाएगा”.
पाकिस्तान में भगत सिंह जी की लोकप्रियता
पाकिस्तान की प्रसिद्ध लेखिका ज़ाहिदा हिना ने अपने एक लेख में उन्हें पाकिस्तान का सबसे महान शहीद करार दे चुकी हैं. गांव बांगा चक नंबर 105 को जाने वाली सड़क का नाम भगत सिंह रोड है. पाकिस्तानी कवि और लेखक अहमद सिंह और शेख़ अय्याज़ जी काफी बार भगत जी की तारीफ़ कर चुके हैं.
लेकिन ना जाने क्यों, पाकिस्तान की सरकार और वहां के लोगों में, भगत सिंह जी के लिए वो आदर नहीं आया, जिसके वह हक़दार हैं. काश पाकिस्तान भी भगत सिंह के बलिदान को याद रखता, क्योंकी बंटवारे का बीज शहीद भगत सिंह ने नहीं बोया था, यह तो दोनों ही देशों के, अन्य कुछ लोगों की राजनीति का बोया बीज है.
काश की बंटवारा, भगत जी पर लागू नहीं होता. दोनों देशों में इनको बराबर आदर प्राप्त होता. पाकिस्तान को यह समझना चाहिए कि मात्र एक रास्ते पर भगत सिंह का नाम लिखने भर से और 1 तस्वीर लगाने भर से, कुछ नहीं होने वाला. शहीद भगत सिंह का यह सीधे तौर पर अपमान ही है.
23 मार्च और 7 सितंबर को, दोनों देशों को सद्भावना दिवस मनाना चाहिए. जहाँ बैठकर हर साल अपने गिले-शिकवों को मिटाने की कोशिश जरुर करनी चाहिए और दोनों ही देशों को, इनके पैतृक गाँव में एक भव्य स्मारक का निर्माण कराना चाहिए.
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