पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में चुनाव होने वाले हैं और ये चुनाव सिर्फ पाकिस्तान की आवाम के लिए ही नहीं बल्कि भारत के लिए भी काफी महत्वपूर्ण हैं। पाकिस्तान में लोकतंत्र से जितनी भी बार सरकार चुनी गई हमेशा उसे किसी ना किसी बहाने बर्खास्त कर दिया गया।
दरअसल पाकिस्तान में लोकतंत्र से चुनी गई सरकारे कम और सेना का शासन ज्यादा रहा है।
पाकिस्तान में नेशनल और प्रांतीय ऐसेंबली के लिए 25 जुलाई को चुनाव होने वाला है आइए जानते हैं कि पाकिस्तान में कैसे चुनाव होते हैं।
पाकिस्तान में आम चुनाव कार्यवाहक सरकार की निगरानी में किए जाते हैं और इस बार पाकिस्तान के पूर्व मुख्य न्यायधीश नसीर उल मुल्क को कार्यवाहक पीएम बनाया गया है। इस बार के चुनाव में दो प्रमुख पार्टियां पीएमएलएन और पीपीपी का शीर्ष नेतृत्व जहां बदल गया है वहीं क्रिकेटर इमरान खान की पार्टी दोनों दलों को कड़ी टक्कर देते हुए दिख रही है। पाकिस्तान में दूसरी बार लोकतांत्रिक तरीके से सता बदलेगी। पाकिस्तान में 5 जून 2013 को नवाज शरीफ ने पीएम पद संभाला था लेकिन अब नवाज सलाखों के पीछे हैं उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं।
पाकिस्तान में 10 करोड़ 59 लाख वोटर है जो 2013 के मुकाबले 30 फिसदी ज्यादा है। पाकिस्तान में एक देश एक चुनाव का सिद्धांत हैं और यहां 25 जुलाई को देश की कुल 849 सीटों पर चुनाव होने वाला है।
पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में कुछ 342 सीटें है जिनमें 60 सीट महिलाओं और 10 सीट धार्मिक अल्प संख्यकों के लिए आरक्षित है। पाकिस्तान में इस बार त्रिकोणिय मुकाबला है। पाकिस्तान पिपुल्स पार्टी की कमान बिलावल भुट्टो जरदारी के हाथों में तो पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज की कमान नवाज शरीफ के छोटे भाई शहबाज़ शरीफ के हाथों में हैं। वहीं पाकिस्तान तहरीक- ए -इंसाफ पार्टी की कमान पूर्व क्रिकेटर इमरान खान के हाथों में हैं। इन 3 बड़ी पार्टियों के अलावा धार्मिक पार्टियां भी मैदान में जिन्में सबकी निगाहें आतंकी हाफिज सईद की पार्टी मिल्ली मुस्लिम लीग समर्थित पार्टी पर है। सभी पार्टियों के मुखिया एक से ज्यादा सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं।
पाकिस्तान में चुनाव का मुख्य मुद्दा कश्मीर और भारत है।
पाकिस्तान में भ्रष्टाचार भी चरम पर है इसलिए आम चुनाव में पार्टियां इस मुद्दे को भी खूब भुना रही है। पाकिस्तान के चुनावों में सेना पूरी तरह से हस्तक्षेप करती है और भ्रष्टाचार के मुद्दे को हथियार बनाकर कई बार देश की सत्ता पर काबिज हो चुकी है। पाकिस्तान के कई पूर्व पीएम जैसे- बेनजीर भुट्टो, नवाज शरीफ आदि भी भ्रष्टाचार के आरोपों में सीट गंवा चुके हैं। न्यायपालिका पर भी सेना के दबाव में फैसले देती रही हैं यहीं कारण है कि पाकिस्तान में लोकतंत्र सिर नहीं उठा पा रहा है।
पाकिस्तान की पार्टियां चुनावी घोषणा पत्र में तो भारत के साथ शांति समझौते पर जोर देती है लेकिन चुनावी भाषणों में भारत के खिलाफ ज़हर उगलती है।
पाकिस्तान में चुनाव बाद सत्ता किसकी बनेगी और नेता कौन होगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
लेकिन वहां कि जनता को समझना होगा कि उनकी भलाई लोकतांत्रिक शासन में है ना कि सैन्य शासन में। जब तक पाकिस्तान में सेना का दखल सत्ता में रहेगा तब तक राजनैतिक उठा-पटक चलती रहेगी। बहरहाल 25 जुलाई को चुनाव के बाद पाकिस्तान में किसकी सरकार बनती है और पाकिस्तान की जनता की बागडोर कौन संभालता है।