फिल्म पद्मावत – दो महीने तक रिलीज डेट टलने के बाद औऱ बहुत सारे विरोधों के बाद आखिरकार पद्मावती रिलीज हो गई।
उर्फ पद्मावती नहीं, पद्मावत।
केवल नाम बदला और दीपिका के दिखने वाले पेट को ढककर पद्मावत रिलीज हो गई। इससे पहले फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ का काफी विरोध किया गया था। लेकिन इन विरोध से हासिल क्या होता है? कैसे किसी की भावना इतनी आहत हो जाती है कि लोग दूसरों को नुकसान पहुंचाने की हद तक पहुंच जाते हैं।
फिल्मों को लेकर होने वाले विरोधों को लेकर फिल्म डायरेक्टर अनुराग कश्यप ने कहा है पद्मावत के बहाने कहा है कि ये समय कलाकारों के लिए कठिन है। इन्होंने हाल ही में एक मीडिया हाउस को दिए इंटरव्यू में कहा है कि मुझे हैरानी होती यदि मैं आज ‘अछूत कन्या’ या ‘आंधी’ जैसी फिल्म रिलीज होते देख सकता। चीजें अब डरावनी हो गई हैं। हर कोई तुरंत अपमानित हो जाता है। ये कलाकारों के सामने बड़ी समस्या हो गई है।
असहमति और विरोध
लोगों को मालूम होना चाहिए कि खुद की असहमति जताने और विरोध करने में बहुत फर्क होता है। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या में राष्ट्रपति ने ये बात अपने भाषण में भी कही थी। उन्होंने अपने भाषण में कहा था ‘किसी दूसरे नागरिक की गरिमा और निजी भावना का उपहास किए बिना, किसी के नजरिए से या इतिहास की किसी घटना के बारे में हम असहमत हो सकते हैं पर इस दौरान उदारतापूर्ण व्यवहार करना चाहिए। इसे ही भाईचारा कहते हैं।’
स्कूल बस पर पथराव
राष्ट्रपति भाईचारा की बात करते हैं… लोग यहां इंसानियत तक नहीं दिखा रहे हैं तो भाईचारा तो दूर की बात है। गुरुग्राम (गुड़गांव) में लोगों ने फिल्म पद्मावत के विरोध में बच्चों के स्कूल बस पर पथराव किया। बच्चों ने कैसे किसी की भावनाओं को आहत कर दिया?
क्या हो पाती अछूत कन्या रिलीज़?
इन्हीं सारे विरोध के तरीकों को देखते हुए फिल्म डायरेक्टर अनुराग कश्यप ने कहा है कि क्या आज के समय में ‘अछूत कन्या’ औऱ ‘आंधी’ जैसी फिल्म रिलीज़ हो पाती। उन्होंने सवाल बिल्कुल सही किया है। पिछले जमाने में शुद्र से लेकर अर्थ जैसी फिल्म तक रिलीज़ हुई हैं। अगर किसी को उनका सब्जेक्ट नहीं पसंद आता था तो वो फिल्म फ्लॉप हो जाती थी। लेकिन इस तरह से तोड़-फोड़ करना… किसी को नुकसान पहुंचाना, ये कहां तक सही है।
काम करना हुआ चैलेंजिंग
अनुराग कश्यप ने एक मीडिया हाउस को दिए इंटरव्यू में आज काम करना चैलेंजिंग बताया है। अनुराग कश्यप ने कहा है कि स्वतंत्र रूप से फिल्म बनाना चैलेंजिंग हो गया है। लोग किसी भी बात पर आपत्ति जता सकते हैं। मुझे हैरानी होती यदि मैं आज अछूत कन्या या आंधी जैसी फिल्म रिलीज होते देख सकता। चीजें अब डरावनी हो गई हैं। हर कोई तुरंत अपमानित हो जाता है. ये कलाकारों के सामने बड़ी समस्या हो गई है।
पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या कर दी जाती है क्योंकि वो किसी एक समुदाय की भावनाओं को आहत कर रही थीं। किसी एक्ट्रेस को नाक काटने की धमकी दी जाती है क्योंकि उसकी किसी फिल्म से एक समुदाय की भावना आहत हो जाती है। भावना है कि तवे में रखी रोटी… जो थोड़ी सी आंच होने से ही जल उठती है।
हद है। भावनाएं आहत भी हो रही हैं तो असहमित जताओ भाई… नुकसान मत करो। सही कहा ना !!
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