याकूब मेमन की फांसी सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखी है.
कल 30 जुलाई को नागपुर में उसे फांसी दे दी जाएगी.
इस बात से जहाँ मुंबई धमाकों के पीड़ितों में ख़ुशी है वहीँ अकबरुद्दीन ओवैसी जैसे अवसरवादी इस पर भी राजनीति करने से नहीं चूक रहे है.
ओवैसी ने अपने ताज़ा साक्षात्कार में एक बार फिर कहा कि याकूब को फांसी मुसलमान होने की वजह से दी जा रही है.
ओवैसी साहब एक तरफ तो आतंकी हमले होने पर आप कहते है कि आतंक का कोई मज़हब नहीं होता और दूसरी तरफ जब एक आतंकी को सजा मिलती है तो आप उसे अपने फायदे के लिए मज़हबी रंग देने से नहीं चूकते.
क्या सही में याकूब को फांसी इसलिए दी जा रही है क्योंकि वो मुस्लिम है ?
क्या 21 साल जो सुबूत और गवाह मिले कोर्ट में सालों साल जिरह हुयी और टाडा कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट सभी ने याकूब को फांसी का हकदार माना वो सब क्या कोरी बकवास था.
मज़हब के नाम पर लोगों को लड़ाना और घृणा फैलना बंद करो नहीं तो जो लोग इस्लाम से नफरत नहीं करते है वो भी इस्लाम के बारे में धारणा बदल देंगे.
अकबरुद्दीन ओवैसी अगर ज़रा भी अक्ल होती तो आप ये मज़हबी बकवास करने से पहले ज़रूर तथ्यों पर गौर करते कि आज़ादी के बाद से फांसी मिलने वाले अपराधियों में मुसलमान अपराधी मात्र 5% ही थे.
शायद आपको ये बात पता है फिर भी उत्तर प्रदेश और बिहार में आने वाले चुनावों को देखते हुए आपने ये बयान अपने वोट बैंक को बचाने के लिए ही दिया है.
ओवैसी जैसे लोग जानते है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला अब टल नहीं सकता याकूब को तो फांसी होनी ही है पर उससे क्या भोलेभाले लोगों को मज़हब के नाम पर बेवकूफ न बनाने के लिए इस से बेहतर समय और क्या होगा.
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ओवैसी और उनके जैसे और लोगों से एक सवाल क्या कल को अगर दाउद, छोटा शकील और टाइगर मेमन को भारत पकड़ने और सजा देने में कामयाब हो जाता है तो भी क्या वो इसी तरह मुंबई धमाकों में 300 लोगों की जान लेने वाले हत्यारों की पैरवी और उनको बचाने की कोशिश सिर्फ इसलिए करेंगे क्योंकि ये अभियुक्त मुसलमान है.
ओवैसी साहब ज़रा बताइए दाउद और टाइगर भी निर्दोष तो नहीं? क्योंकि वो मुसलमान है ?
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हर वो इंसान जो हत्यारों का समर्थन मज़हब के नाम पर करता है वो खुद भी अपराधी है.
भारत के मुसलमानों को बरगलाना बंद कीजिये अकबरुद्दीन ओवैसी, नहीं तो फिर ये कहकर विदेश भागते फिरेंगे कि मैंने ऐसा कोई बयान दिया ही नहीं.
और आखिर में एक और बात ओवैसी के लिए अगर भारत की जनता को मुसलमानों से इतनी नफरत होती ना तो 125 करोड़ डॉ कलाम के निधन पर इस तरह आंसू नहीं बहा रहे होते. आपने ये तो कभी नहीं कहा कि भारत इसलिए कलाम के निधन पर शोक में डूबा है क्योंकि वो मुसलमान थे.
भारत की जनता भोली ज़रूर है मगर बेवकूफ नहीं आज नहीं तो कल ओवैसी जैसे सियासी पिस्सुओं को मज़ा चखा ही देगी.
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