ओशो या विवेकानंद
आप सब अचंभे में पड़ गए होंगे की ये तुलना कैसे जायज है.
मगर बदलते जमाने को देखते हुए, यह तुलना करना बेहद जरुरी है.
युवा देश का भविष्य होता है और ये किससे प्रभावित होते है, यह बात महत्वपूर्ण है. बदलते समाज को देखते हुए कोई अंदाजा नहीं लगा सकता की आज की तारीख में युवा किसको अधिक पसंद करते है. अत्याधुनिक युग में लोगों को सोचने का तरीका आत्म केंद्रित हो गया है. अब लोग जीवन में उन विचारों को अपनाने लगे है जिन विचारों से उनका जीवन सहज होता है. किसी एक को वो अपना गुरु शायद ही मानेंगे. अपनी सहूलियत से चलने वाले लोगों की तादात सब से ज्यादा है.
इस लिए यह तुलना करना जरुरी है कि, कौन है युवाओं की पसंद?
ओशो
ओशो के प्रारंभिक दिनो में आचार्य रजनीश के नाम से जाने जाते थे. वे एक प्रख्यात प्रवक्ता थे, जो एक नए धर्म लाने के नियोजन में सक्रीय थे. प्यार, ध्यान और खुशी को जीवन के प्रमुख मूल्य मानने वाले ओशो खुद प्रेरित थे. उनके उस विश्व प्रसिद्ध व्यक्तित्व को बनने में सबसे बड़ा कारण उनकी नानी रही.
बचपन के कुछ महत्वपूर्ण वर्ष अपने नानी के पास गुजारते वक़्त नानी ने उनको सभी परंपराओं से मुक्त रखा. किसी भी रुढ़िवादी शिक्षाओं का प्रभाव ओशो पर उनके नानी ने गिरने नहीं दिया.
यही वजह थी जिस कारण ओशो एक नए धर्म की स्थापना करने के कार्य में जगह जगह व्याख्यान देते थे.
उनकी कुछ बाते जो वो हमेशा लोगों को बताते थे :-
१. कभी किसी की आज्ञा का पालन नहीं करे, जब तक की वो आपके भीतर से भी नहीं आ रही हो.
२. अन्य कोई ईश्वर नहीं हैं, सिवाय स्वयं जीवन (अस्तित्व) के.
३. सत्य आपके अन्दर ही है, उसे बाहर ढूंढने की जरुरत है.
४. प्रेम ही प्रार्थना हैं.
५. शून्य हो जाना ही सत्य का मार्ग है. शून्य हो जाना ही स्वयं में उपलब्धि है.
६. जीवन यहीं अभी हैं.
७. जीवन होश से जियो.
८. तैरो मत – बहो.
९. प्रत्येक पल मरो ताकि तुम हर क्षण नवीन हो सको.
१०. उसे ढूंढने की जरुरत नहीं जो कि यही हैं, रुको और देखो.
रजनीश चन्द्र मोहन उर्फ़ ओशो (११ दिसम्बर १९३१ – १९ जनवरी १९९०)
जन्म – कुच्वाडा गांव, रायसेन शहर, मध्य प्रदेश
स्वामी विवेकानंद
एक आधी शताब्दी बीत गई मगर आज भी स्वामी सबके बीच में इस कदर छाए है, मानो वो आज भी जिन्दा है. स्वामी एक वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे और उनको युवागुरु भी मना जाता है. स्वामी बचपन से ही अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि के थे और इतने नटखट की अपने शिक्षकों के साथ वो शरारत कर बैठते थे. उनके एक सक्षम इंसान बनाने में दो व्यक्तियों का योगदान रहा, उनकी माँ और गुरु रामकृष्ण परमहंस. उनकी माँ ने उनको सिखाया था की किसी भी बात को आँखे बंद करके विश्वाश मत करो. अनुभव् क्या कहता है उस पर तुम अपनी राय बनाओ.
स्वामी के गुरु ने उनको ध्यान सिखाया और स्वयं से रुबरु करते हुए अपनी शक्ति का इस्तमाल जनहित में करने की प्रेरणा दी.
चाहते तो स्वामी वकालत करके आराम से अपना घर बसाते, किंतु उनका देश और धर्म प्रेम उनको विश्व प्रसिद्ध युवागुरु बनाया.
उनके कुछ युवओं के लिए विचार :-
- उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये.
- ब्रह्मांड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं. वो हम हैं जो अपनी आंखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है!
- सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही है.
- इस दुनिया में सभी भेद-भाव किसी स्तर के हैं, न कि प्रकार के, क्योंकि एकता ही सभी चीजों का रहस्य है.
- हम जितना ज्यादा बाहर जायें और दूसरों का भला करें, हमारा ह्रदय उतना ही शुद्ध होगा, और परमात्मा उसमे बसेंगे.
नरेन्द्रनाथ विश्वनाथ दत्त (१२ जनवरी,१८६३ – ४ जुलाई,१९०२)
जन्म – कोलकाता
युवा किसको अधिक फ़ॉलो करते है ?
ओशो और स्वामी के बारे में सभी लोग जानते है. अब बात आती है युवा किसको अधिक पसंद करते है.
देश के युवा २ हिस्सो में बट हुए है, एक भारत और दूसरा इंडिया. भारत और यहा की संस्कृति से जिनको लगाव है उनको स्वामी के आदर्श से प्यार है. जिनको परंपराओं से मुक्त रहना है और खुद को आधुनिक समझते है वे ओशो के दीवाने है.
देखा जाए तो दोनों ही परम पूज्य गुरुओं ने बेहतरीन विचारों का भंडार अपने पीछे छोड़ गाए है. किंतु आज की पीढ़ी उन विचारों का अर्थ कुछ और समझ कर अपने तरीके से जीना चाहती है.
जब जिसके विचार से जीवन आसान हो सकता है, तब वह बाते उनके लिए मत्वपूर्ण होती है.
यही एक वजह है ओशो के नाम से अधिकतर विवाद होते है और स्वामी के नाम से युवाओं की छाती गर्व से भर जाती है.