अकबरूद्दीन ओवैसी
”हिंदुस्तान तेरी आबादी सौ करोड़ है और हम मुसलमान सिर्फ 25 करोड़ हैं. 15 मिनट के अपनी पुलिस हटा ले हम बता देंगे कि कौन ज्यादा ताकतवर है. तेरा 100 करोड़ का हिन्दुस्तान या हम 25 करोड़ मुसलमान.“ 24 दिसंबर को अदिलाबाद, आंध्र प्रदेश के एक जलसे.
साक्षी महाराज
‘हम दो हमारा एक’ का नारा स्वीकार किया. तब भी इन देशद्रोहियों को संतोष नहीं हुआ है. उन्होंने एक और नारा दे दिया ‘हम दो और हमारे.. मैं हिंदू महिलाओं से आग्रह करना चाहता हूं कि वे कम से कम चार बच्चों को जन्म दें. उनमें से एक साधुओं और संन्यासियों को दे दें. मीडिया कह रहा है कि सीमा पर संघषर्विराम उल्लंघन की घटनाएं हो रही हैं इसलिए एक को सीमा पर भेजें.
अकबरूद्दीन ओवैसी
“मुझमें दम है इसलिए में पूरे देश में जाता हूँ. हमें उद्धव ठाकरे, हैदराबाद वाले कहते हैं. खुद तो आज तक वह पिता की छाया में ही जीये हैं. अगर इनमें दम है तो हैदराबाद आकर दिखाओ.” मुंबई में एक जनसभा के अंदर.
ऊपर जो आपने अभी तक पढ़ा है वह तो बस एक झलकी भर है. अकबरूद्दीन ओवैसी और साक्षी महाराज जैसे व्यक्तियों ने हमेशा अपनी स्वतंत्रता का फायदा उठाते हुए अक्सर विवादों को जन्म देने वाले बयान दिए हैं. वैसे पिछले कुछ समय से इस तरह के बेहुदा विचार खुलकर प्रकट किये जा रहे हैं.
एक तरफ हिंदूवादी नेता 4 बच्चे भी पैदा करने को बोल रहा है यह विवाद खत्म होता नहीं है तो कोई 10 बच्चे पैदा करने की बात कर देता है.
वैसे एक बात तो आपको माननी होगी कि 4 और 10 बच्चे वालों की निंदाओं में संसद तक आवाज़ उठती है. कुछ उत्तर प्रदेश की राजनीतिक पार्टियाँ तो खूलकर हंगामा करती हैं.
पर जब कोई भी बयान ओवैसी परिवार से आता है तब क्यों नहीं किसी भी प्रकार की निंदा की जाती है. पुलिस हटा लो तो हिन्दू खत्म हो जायेगा. यह किस तरह के वक्तव्य हैं?
अभी एक और मुद्दा उठा था कि गोडसे का मंदिर बनेगा? हमारा कानून इस बात पर कुछ भी नहीं कर सका. कानून के हाथ बंधे हुए थे. शर्म आती है कि हम एक ऐसे देश में रहते हैं जो संस्कार और भाईचारे की बस बातें करता है.
भारत को क्या पाकिस्तान बनाना चाहता है कोई? वोट की राजनीति में क्यों नफरत की राजनीति घोल कर लोगों को पिलाई जा रही है?
हमारे मुस्लिम भाई भी वैसे तो हर बात पर बेबाकी से लिखते हैं. खुलकर हिंदुत्व पर विचार प्रकट करते हैं. लेकिन जब इस तरह की बातें कोई मुस्लिम करता है तो क्यों यही लोग चुप्पी रख लेते हैं?
क्या हैदराबाद से नफरत का खेल, कहीं 1947 का भारत से बदला तो नहीं है?
ज्ञात हो कि निजाम ने हैदराबाद पर 17 सितम्बर 1948 तक शासन किया. ओवैसी परिवार वही वंश है जो अब राजनीति में है. 1948 में सरकार के कहने पर जब इन्होनें भारत में शामिल होने से मना कर दिया था तब भारतीय बलों के समक्ष आत्मसमर्पण किया और इनके द्वारा शासित क्षेत्र को भारतीय संघ में एकीकृत किया गया.
क्या यह वही बदला है अब? क्या इनके लिए देश की एकता और अखंडता कोई विषय नहीं है? आक्रोश और नफरत फैलाने से आखिर इनको क्या मिल रहा है?
देश का कानून और हमारा संविधान क्या इतना कमजोर हो चुका है कि ऐसे लोगों को इनसे कोई डर नहीं लगता है? जेल जाना और वहां से मजे से बाहर आना. यह देश के कानून के साथ मजाक नहीं तो और क्या है?
धर्म आज एक अफीम बन चुकी है, धर्मों के हमारे नेता आज कुछ भी बोल रहे हैं. कोई गोडसे का मंदिर तो कोई 10 बच्चे और कुछ लोग पुलिस हटने का इंतज़ार क्र रहे हैं ताकि काटने आम हो सके.
यदि कोई व्यक्ति इस तरह का बयान दे जो धर्मों की एकता को हानि पहुँचता है तो उस व्यक्ति पर हमारा सुप्रीम कोर्ट स्वतंत्र रूप कोई कारवाई क्यों नहीं ले पाता है?
अब वक़्त आ गया है जब हमें देश को पाकिस्तान बनने से रोकने के लिए जल्द से जल्द कोई ठोस कदम उठाने होंगे.
आपकी राय क्या है किस वजह से ओवैसी परिवार इस तरह से बयान दे रहा है, क्या यह हिन्दुओं की गलती है? क्या यह देश की राजनीति की गलती है? कहाँ आखिर भाईचारा खो चुका है?
और यदि कोई गलती है तो उसे क्या सुधारा नहीं जा सकता है?
आपकी राय का इंतज़ार रहेगा.
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